लेकिन यदि नए शोध निष्कर्षों की मानें तो ये धारणा गलत साबित होती है.

नॉर्वे के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की ओर से कराए गए एक शोध के मुताबिक बिजली से चलने वाले वाहन पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से कहीं ज्यादा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.

अध्ययन में कहा गया है कि यदि बिजली उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल होता है तो इससे निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसें डीजल और पेट्रोल वाहनों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं.

यही नहीं, जिन फैक्ट्रियों में बिजली से चलने वाली कारें बनती हैं वहां भी तुलनात्मक रूप में ज्यादा विषैली गैसें निकलती हैं.

हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि इन खामियों के बावजूद कई मायनों में ये कारें फिर भी बेहतर हैं.

तुलना

शोधकर्ताओं ने परंपरागत वाहनों और बिजली से चलने वाले वाहनों के जीवन-चक्र का तुलनात्मक अध्ययन किया.

इसमें वाहनों के निर्माण, उपभोग और फिर उन्हें नष्ट करने के बाद वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है, जैसी चीजों को शामिल किया गया.

अध्ययन दल में शामिल प्रोफेसर हैमर स्ट्रोमैन इस बारे में बताते हैं, “बिजली से चलने वाले वाहनों के निर्माण की प्रक्रिया अपेक्षाकृत ज्यादा लंबी होती है. इन वाहनों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसें डीजल और पेट्रोल वाहनों की तुलना में लगभग दोगुनी होती हैं.”

यही नहीं, बिजली चालित वाहनों के लिए बैटरी और इलेक्ट्रिक मोटरों के निर्माण के लिए निकेल, कॉपर और एल्यूमिनियम जैसी विषैली धातुओं की बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ती है.

इसीलिए इनका संपूर्ण प्रभाव वायुमंडल के लिए कहीं ज्यादा हानिकारक होता है.

रिपोर्ट के मुताबिक सड़क पर उतरने से पहले ही इन कारों के निर्माण पर पर्याप्त प्रदूषण फैल चुका होता है.

इसलिए जब ये कारें सड़क पर दौड़ती हैं तो इनसे कम कार्बन निकलने के बावजूद वायुमंडल में प्रदूषण से बचाव में कोई बहुत मदद नहीं करती है.

लाभ

लेकिन रिपोर्ट में ये कहा गया है कि ये कारें उन देशों के लिए फायदेमंद हैं जहां बिजली का उत्पादन अन्य स्रोतों से होता है.

यूरोप में बिजली का उत्पादन कई अन्य तरीकों से होता है, इसलिए वहां इलेक्ट्रिक कारें वायुमंडल के लिए हितकर हो सकती हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, “यदि एक वाहन की आयु दो लाख किमी तक चलने की मानी जाए तो इस अवधि में बिजली से चलने वाली गाड़ी वैश्विक गर्मी में पेट्रोल की तुलना में 27-29 फीसदी और डीजल की तुलना में 17-20 फीसदी ज्यादा योगदान होता है.”

हालांकि पेट्रोल और डीजल वाहनों में लगातार सुधार हो रहा है और ऐसी स्थिति में हो सकता है कि आने वाले दिनों में ये अनुपात और बढ़ जाए.