-अपनों की सलामती की आस में कट रही भूकंप पीडि़तों की जिंदगी

-अपने बीच आई नेक्स्ट टीम को पाकर छलक उठा पीडि़तों का दर्द

- डीडीयूजीयू कैंपस के राहत कैंप में जारी है भूकंप पीडि़तों के आने का सिलसिला

GORAKHPUR: अब तो बस तस्वीर ही सहारा है। पता नहीं मेरा परिवार कहां और किन हालात में है। कुछ नहीं पता चल रहा है। फोन करने पर संपर्क भी नहीं हो रहा है। भूकंप ने इस कदर जिंदगी में भूचाल लाया दिया है कि इस भंवर से निकल नहीं पा रही हूं। मुझे प्रशासन अगर जाने देता तो शायद मैं अपने पति और बच्चे को ढूंढ लाती। यह दर्द है काठमांडू की रहने वाली राधा का। राधा ने बताया कि वह पिछले पांच दिनों से राहत कैंप में हैं। लेकिन उसके पति बुद्धि बहादुर, बेटा सचिन और बेटी स्नेहा कहां हैं और किन हालात में है उसे नहीं मालूम। उसे अपने परिवार की चिंता सता रही है। डीडीयू के राहत कैंप में रो-रोककर अपने दर्द बयां कर रही राधा प्रशासन से सिर्फ यही गुहार लगा रही है कि उसका परिवार बस किसी तरह से मिल जाए। यह सिर्फ राधा का ही हाल नहीं है। राहत कैंप पहुंचने वाले अधिकांश पीडि़तों का कोई न कोई अपना बिछड़ गया है। सैटर्डे को आई नेक्स्ट टीम जब डीडीयूजीयू कैंपस में बनाए गए राहत कैंप पहुंची तो पीडि़तों का दर्द छलक उठा।

एक झटके में सबकुछ हो गया तहस नहस

सैटर्डे की सुबह राहत कैंप पहुंची तुलसी ने बताया कि उनका मायका काठमांडू में है। वह और उनकी पूरी फैमिली काठमांडू में रहते हैं। बड़ा कारोबार है। लेकिन भूकंप के झटके ने सबकुछ तहस नहस कर दिया। पांच दिनों तक हमनें नेपाल के राहत कैंप में रात बिताई। अब तो बस किसी तरह अपने ससुराल केरल पहुंच जाएं। उन्होंने बताया कि पति माधवन के साथ वो किसी तरह निकल आई हैं। लेकिन पिता टेक बहादुर और बहन देवी अभी भी नेपाल में ही है। हालांकि वे लोग सुरक्षित हैं। तुलसी ने बताया कि भूकंप की दहशत दिलोदिमाग पर छाई हुई है। इस त्रासदी को वो कभी नहीं भूल पाएंगी।

बताना शुरू किया तो सहम गए लोग

वहीं आपबीती बताते हुए काठमांडू की रहने वाली सुनीता रौनियाल के आंखों से आंसू झलक पड़े। उन्होंने जब खतरनाक मंजर को बताना शुरू किया तो आस-पास मौजूद लोग भी सहम गए। सुनीता ने बताया कि उनका तीन साल बेटा है। जब भूकंप आया तो वह पांचवीं मंजिल पर थीं। उन्हें यह समझ नहीं आया कि वह कैसे नीचे उतरे। भूकंप के झोरदार झटके लग रहे थे और तीन महीने के बच्चे के साथ मैं कमरे में थी। बच्चे के सिर पर काफी चोंटे भी आईं, लेकिन किसी तरह से मैंने बाहर निकलकर जान बचाई। बाहर सबकुछ तहस नहस हो चुका था। लोग इधर-उधर भाग रहे थे। मैं और मेरे हसबैंड मनोज किसी तरह अपनी जान बचाए। सुनीता ने बताया कि पांच दिन तक नेपाल के राहत कैंप में रहे। वैसे तो हम लोग अक्सर रक्सौल होकर बिहार जाते थे, लेकिन इस बार गोरखपुर से गई राहत वाली बस से वह गोरखपुर आ गई।

जारी है पीडि़तों के आने का सिलसिला

डीडीयूजीयू कैंपस में बनाए गए राहत कैंप में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, एसएसपी, एडीएम सिटी, सिटी मजिस्ट्रेट, एआरटीओ समेत कई आला अधिकारी भूकंप पीडि़तों की मदद में रात दिन लगे हुए हैं। सैटर्डे को भी नेपाल से पीडि़तों के आने का सिलसिला जारी है। प्रशासन की तरफ से उन्हें सकुशल घर भेजा जा रहा है।