अब वह 'मजाÓ नहीं रहा
सिटी के सोशल वर्कर अशोक नागपाल कहते हैं- हमारी यादों का सिनेमाघर अब गुम हो गया है। साल 1956 में रतन टॉकीज में आन पिक्चर लगी थी उस समय मैं सुबह चार बजे लालटेन लेकर टिकट खरीदने गया था, क्योंकि उस समय रांची में स्ट्रीट लाइट नहीं हुआ करती थी। 12 आने में मैंने टिकट खरीदा और एक-एक आने में गुलाब जामुन, चाय और पकौड़ी का लुत्फ उठाया था। मैं मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने नहीं गया, क्योंकि एक तो इसका टिकट बहुत  महंगा होता है, दूसरा इसमें वह मजा नहीं आता।

टिकट के लिए पैरवी भी होती थी
अशोक नागपाल बताते हैं कि पहले फिल्म देखने का क्रेज क्या होता था, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि जब 1957 में सिटी के श्रीविष्णु सिनेमा हॉल में अनारकली मूवी लगी थी। तब भीड़ इतनी थी कि लगता था कि पूरी सिट मूवी देखने आ गई है। पहले लोग टिकट पाने के लिए सिनेमा हॉल के मैनेजर से पैरवी करते थे। जिनको फस्र्ट डे फस्र्ट शो का टिकट मिल जाता था, वे खुद को खुशनसीब समझते थे। एसएसजे फाइनेंस के वीपी और जोनल हेड शशांक भारद्वाज बताते हैं- मुझे याद है कि जब सुजाता सिनेमा हॉल में कयामत से कयामत तक मूवी लगी थी। मैं यह मूवी देखने गया था। उस समय टिकट लेने के लिए मारामारी होती थी और फिल्म देखना फैमिली फेस्ट हुआ करता था। पर। अब फिल्म देखना लग्जरी से जुड़ गया है। यह पहले से ज्यादा खर्चीला भी हो गया है।

Viewers को चाहिए comfort
सुजाता सिनेमा हॉल के ओनर दुष्यंत जायसवाल कहते हैं- सिटी में सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल का क्रेज खत्म नहीं हुआ, बल्कि अब व्यूवर्स को बढिय़ा चीज चाहिए। पहले लोग 10 और 20 रुपए में सिनेमा देखना चाहते थे, पर अब वह ट्रेंड बदल गया है। लोग अब सिनेमा देखने के लिए 100 से 500 रुपए तक खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं। वे कम्फर्टेबल सीट चाहते हैं, एसी चाहते हैं और हर फैसिलिटी चाहते हैं। यही वजह है कि मैं भी सुजाता सिनेमा हॉल को यंग व्यूवर्स की रिक्वायरमेंट्स के अनुसार अपग्रेड करने में लगा हुआ हूं। इस सिनेमा हॉल में रांची की अब तक की सबसे बड़ी सिंगल स्क्रीन रहेगी। हमने व्यूवर्स को सिंगल स्क्रीन में मल्टीप्लेक्स वाली फैसिलिटी प्रोवाइड कराने की सोची है। सुजाता सिनेमा हॉल नए रूप में जयपुर के राज मंदिर सिनेमा हॉल की तरह होगा। फिल्मों के लिए Žलैक में टिकट बेचने का ट्रेंड खत्म होने पर दुष्यंत कहते हैं कि अब तो सिनेमा हॉलवाले ही टिकट्स Žलैक करने लगे हैं, तो Žलैक करनेवाले दूसरे लोग कहां रहेंगे? पहले 20 में टिकट लेकर लोग 100 में टिकट बेचते थे अब तो मल्टीप्लेक्स का टिकट 80 से 150 रुपए में मिलता है। फिल्म अच्छी रहती है, तो टिकट 150 में बिकना शुरू हो जाता है। एवरेज  फिल्म रहती है, तो 80 में टिकट बिकता है ऐसे में Žलैकर्स के लिए गुंजाइश कहां रहती है।
बदलाव होने से अच्छा business
दुष्यंत जो उपहार सिनेमा हॉल को अपग्रेड कर बने गैलेक्सिया मॉल के भी ओनर हैं, कहते हैं कि लोग अब भी उपहार सिनेमा हॉल को याद करते हैं। लोगों को अगर किसी जगह का पता बताना होता है, तो वे उपहार सिनेमा को माइलस्टोन के रूप में लेते हैं। वे बताते हैं कि उपहार सिनेमा की बाद वाली गली में या उसके पीछे। दुष्यंत कहते हैं कि यह बदलते वक्त की जरूरत है, इसलिए हमने उपहार सिनेमा हॉल को गैलेक्सिया मॉल में अपग्रेड किया और अब यह अच्छा बिजनेस कर रहा है।

'मीनाक्षीÓ भी बंद हो सकता है
व्यूवर्स के मल्टीप्लेक्सेज की तरफ ज्यादा इंट्रेस्ट लेने के कारण सिटी के सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल्स का एग्जिस्टेंस खतरे में पड़ गया है। इनके बिजनेस में बहुत असर पड़ रहा है। सिंगल स्क्रीन वाले मीनाक्षी सिनेमा हॉल के मालिक रवि अग्रवाल बताते हैं- हम मीनाक्षी सिनेमा हॉल की जगह एक मॉल बनाने की सोच रहे हैं। अब लोगों में हॉल में सिनेमा देखने का इंट्रेस्ट कम हो गया है। पहले मूवी लगते ही लोग इसे सिनेमा हॉल में देखने के लिए बेचैन रहते थे, पर अब लोग अपने घरों में सिनेमा देखना ज्यादा पसंद करते हैं।

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