-एनीमिया में डिलीवरी करना बेहद खतरनाक

-मेरठ में 52 फीसदी महिलाओं में पाई जा रही है खून की कमी

-शहर में 60 फीसदी महिलाओं का एनीमिया, खान-पान दुरुस्त न होना वजह

sunder.singh

Meerut: महिला के लिए मां बनना खास होता है, लेकिन कुछ महिलाएं मां बनने से पहले ही भगवान को प्यारी हो रहीं हैं। इसका मुख्य कारण ज्यादातर महिलाओं में खून की कमी है। एक सर्वे के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में आने वाली हर दूसरी मां के शरीर में खून की कमी पाई जा रही है। साथ ही सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में आने वाली लगभग 60 फीसदी महिलाओं खून की कमी की शिकार हैं, जिसके चलते सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर्स डिलीवरी करने में आना-कानी करते हैं। ताकि बाद में आने वाली परेशानी से बचा जा सके।

 

जांच में चलता है पता

महिलाएं नौ महीने तक इलाज के लिए नहीं आती। जब अचानक डिलीवरी के लिए ये महिलाएं यहां आती हैं तब चेकअप के दौरान पता चलता है कि इनके अंदर खून की कमी है। डफरिन में डॉ। प्रमिला गौड़ का कहना है कि हमारे पास आने वाली अधिकतर महिलाओं में कमजोरी और खून की कमी होती है। वहीं कुछ महिलाएं तो इतनी कमजोर होती हैं कि ऑपरेशन करना उनकी जान के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

 

शहरी महिलाएं ज्यादा पीडि़त

डॉ। गौड़ ने बताया कि गांव से आने वाली महिलाओं में तो यह बीमारी 52 फीसदी ही मिलती है, लेकिन शहर से प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं में यह आंकड़ा 60 के पार है। इसका मुख्य कारण है गांव की ज्यादातर महिलाएं कामकाजी होती हैं, जिसके चलते उनकी बॉडी की वर्जिश होती होती रहती है। वर्जिश से भी गर्भवती महिलाओं के खून का संचार होता रहता है। शहरी तबके की महिलाएं खाली बैठकर दिन बिताती हैं, जो गर्भवती महिला के लिए बेहद खतरनाक होता है।

 

ये है देश का हाल

भारत में 40 प्रतिशत मातृत्व मृत्यु दर का कारण एनीमिया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के हिसाब से 52 परसेंट महिलाओं में एनीमिया की शिकायत है। वहीं बच्चों में भी एनीमिया तेजी से बढ़ रहा है। देश में करीब 80 प्रतिशत बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। 52 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के दौरान एनीमिया से ग्रसित हो जाती हैं।

 

एनीमिया के लक्षण

-थकान

-सुस्ती

-चिड़चिड़ापन

-सांस फूलना

-मुंह में छाले निकलना

-धड़कन तेज हो जाना

-सिर में तेज दर्द का होना

-शारीरिक श्रम करने की क्षमता कम होना

-शरीर में लाल चकत्ते पड़ना

 

 

क्यों होता है एनीमिया?

-वजन कम होना

-विटामिन ए की कमी

-मलेरिया होना

-ब्लड लॉस

-पौष्टिक भोजन न मिलना

-किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन

-बच्चों में जंक फूड और उनका ओवरवेट होना

 

कैसे बचा जा सकता है?

एनीमिया से लड़ने का बस एक ही तरीका है कि डाइट में बैलेंस बनाया जाए। दवाइयों से एनीमिया में कुछ समय की राहत मिल सकती है, मगर इससे छुटकारा केवल बैलेंस डाइट से मिल सकता है।

 

क्या खाएं गर्भवती महिलाएं?

खाने में पालक, सरसो, मेथी, गुड, केला, बैंगन, खजूर , सेब चुकंदर, रेड मीट, अंडे, खट्टे फल, नींबू, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट शामिल करने चाहिए।

-सब्जियों को लोहे की कढ़ाई में बनाएं, इससे बॉडी में आयरन पहुंचता है।

-अंकुरित दालें जिनमें काबुली चना लोबिया, सोयाबिन, गेहूं डाइट में शामिल करें।

-खमीर वाले फूड के जरिए आयरन मिलता है।

 

गर्भवती में एनीमिया से होती हैं समस्याएं

-इम्यून सिस्टम वीक

-हार्ट फेल

-खून चढ़ाने की संभावना बढ़ जाती है।

-ब्रेन फंक्शनिंग पर असर

-समय से पहले डिलीवरी होने के चांस बढ़ जाते हैं।

-गर्भपात की संभावना

-नवजात बच्चे को भी इन्फेक्शन हो सकता है।

-बच्चा के एनिमिक होने की संभावना बढ़ जाती है।

-हीमोग्लोबिन 2.3 ग्राम से कम होने पर बेहोश होने की स्थिति भी होती है।

 

एनीमिया के प्रकार

न्यूट्रीशियन एनीमिया

बैलेंस डाइट न लेना और खाने में आयरन की कमी न्यूट्रीशियन एनीमिया की वजह है।

मेंगगोएट एनीमिया

ये एनीमिया विटामिन बी 12 की कमी, मलेरिया व पेट में कीडे़ होने की वजह से होती है।

 

हेमोलैटिक एनीमिया

इसमें खून बनने की प्रक्रिया सही नहीं होती यानि इसमें जी 65 डी की कमी, मलेरिया, पेट में कीड़े होना होना इसकी वजह है।

एप्लास्टिक एनीमिया

ये एनीमिया मुख्य रूप से ब्लड कैंसर में पाया जाता है।

 

यहां रोज आती हैं महिलाएं

अस्पताल रिकॉर्ड के अनुसार: डफरिन-150

मेडिकल कॉलेज-100

 

 

एनीमिया एक महामारी की तरह फैल रहा है। दवाइयों की जगह सूझ-बूझ से गर्भवती महिलाओं को इससे बचा जा सकता है।

डॉ। प्रमिला गौड़, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ