छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: महंगे पेंसिल बॉक्स, टिफन और बॉटल बच्चों का पढ़ाई से ध्यान भटका रहे हे हैं। अपने हाई स्टैण्डर्ड के चक्कर मैं पैरेंट्स भी महंगे आइटम्स देकर बच्चों को स्कूल भेज देते हैं, लेकिन बच्चे दिनभर इनके साथ खेलने में ही बिजी हो जाते हैं। स्थिति ये है कि टीचर्स को ये सामान बच्चों से जमा करवाना पड़ता है। ऐसे करने पर बच्चे रोना धोना शुरू कर देते है और टीचर्स के लिए असहज स्थिति पैदा कर देते हैं। हालात को देखते हुए कुछ स्कूलों ने महंगे पेंसिल और बॉक्स को ही बैन कर दिया है

पैरेंट्स को ध्यान देना चाहिए

मनोवैज्ञानिक की राय है कि बच्चों को स्कूल ले जाने वाले आइटम्स पर पैंरेंट्स और टीचर्स का रवैया सख्त होना चाहिए, क्योंकि बच्चों के दिमाग पर इस का नेगटिव प्रभाव पड़ता है। कभी कभी बच्चे हिंसक भी होने लगते हैं। वे कभी कभी दूसरे बच्चे के सामान को भी नुक्सान पहुंचाते है। इसके लिए स्कूल और पैरेंट्स दोनो को बच्चों को समझाना चाहिए।

केस स्टडी-1

रिया कक्षा एक की छात्रा एक दिन फैंसी डबल डेकर पेंसिल बॉक्स लेकर स्कूल पहुंची। टीचर ने देखा कि वह उसी को उलट पलट रही है तो उसने पेंसिल बॉक्स ले लिया। रिया रो रोकर घर पहुंची। नौबत यहां तक आ पहुंची कि अगले दिन पैरेंट्स को स्कूल आना पड़ा। टीचर ने पैरेंट्स को बताया कि जबसे रिया को महंगा पेंसिल बॉक्स दिया है, वो क्लास में इसी से खेलती रहती है

केस स्टडी-2

मोहित कक्षा 4 का छात्र है, वो जब भी बाजार जाता है तो पैसिल बॉक्स, टिफिन, वाटर बॉटल मंगाता है। जिद बढ़ती तो मां दिला देती कुछ दिन से मां ने नोटिस किया कि उसके पास लगभग 40 से ज्यादा पेंसिल बॉक्स है और एक दर्जन से ज्यादा वाटर बॉटल, तब उसकी मां को काउंसलर की सलाह लेनी पड़ी।

बच्चे बन रहे सॉफ्ट टारगेट

सोशल मीडिया मार्केटिंग और टीवी कार्टून से बने फ्रोजन की बॉटल, पेंसिल बॉक्स, छोटा भीम बार्बी जैसी चीजें बच्चे बेहद पंसद कर रहे हैं। टीवी कार्टून का बच्चों पर बेहद गहरा प्रभाव पड़ रहा है। वो अपनी पंसद के कार्टून्स के ही पेंसिल बॉक्स आदि लेने की जिद करते हैं। इसका फायदा मार्केटिंग वर्ग के लोग उठा रहे हैं।

वर्जन

आज के समय में उपभोक्ता हो या सोशल मीडिया, मार्केटिंग में बच्चे सबसे ज्यादा सॉफ्ट टारगेट होते है। मां बाप को स्टैण्डर्ड के दिखावे से बचना चाहिए, क्योकि बच्चों पर इसका निगेटिव प्रभाव पड़ता है। स्कूलों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के सामान का बाजारीकरण ना हो पाए।

डॉ निधि श्रीवास्तव, मनोवैज्ञानिक

क्या कहते हैं टीचर्स

दिखावे के चक्कर में अक्सर मां बाप अपने बच्चों को महंगे आइटम्स लेकर देते है। मां बाप को अपने बच्चों को समझाना चाहिए ना कि उसकी हर जिद पूरी करनी चाहिए

मिथिलेश श्रीवास्तव, प्रिंसिपल, डैफोडिल्स स्कूल

महंगे आइटम लाने वाले बच्चे इन सबमें ही उलझकर रह जाते हैं। बच्चे स्कूल में भी अपने लंच टाइम पर उनके साथ ही खेलते है। पैंरैंट्स को बच्चों को हिदायत देनी चाहिए और उनको सामान का महत्व समझाना चाहिए।

सुशीला टोपो, प्रिंसिपल, जेपी स्कूल