पिताओं के संघर्ष की कहानी उनके बच्चों की जुबानी

खुद मेहनत कर बच्चों को दिखाई सफलता की राह

Meerut। पिता के पसीने की एक भी बूंद की कीमत औलाद ताउम्र अदा नहीं कर सकती। फादर्स डे के मौके पर जी-तोड़ मेहनत, संघर्ष, त्याग से अपनों बच्चों की सफलता की इबारत लिखने वाले कुछ पिताओं से आपको रूबरू करवा रहे हैं।

पिता किसान, बेटा बना इंटरनेश्ानल शूटर

इंटरनेशनल शूटर रवि कुमार के पिता अजय कुमार भैंसा गांव में छोटे से किसान हैं। बेटे को शूटर बनाने के पीछे उनका बहुत बड़ा योगदान है। वह बताते हैं कि रवि को बचपन से ही बंदूकों से खेलने का शौक था। थोड़ा बड़ा हुआ तो पिता के सामने शूटिंग सीखने का सपना रख दिया। पिता अजय की परिस्थितियां ऐसी नहीं थी कि बेटे के सपने को पंख मिल सकें। किसानी से घर-परिवार का गुजारा ही मुश्किल से चल रहा था, फिर भी रवि के पिता ने हार नहीं मानी। जोड़-तोड़ कर बेटे का एडमिशन एक राइफल एसोसिएशन में करवाया। एडमिशन दिलाने के बाद बिना रायफल दिलवाए बेटे का शूटर बनने का सपना कहां पूरा होने वाला था। रवि के पिता अजय बताते हैं कि रवि के लिए शूटिंग रायफल खरीदने की बात वह सोच भी नहीं सकते थे। पर बेटे की आंख में शूटर बनने का सपना चमकता देख उन्होंने एक लाख रूपये का कर्ज लिया और रवि को वेपन दिलवाया। पिता अजय के त्याग और संघर्ष की वजह से ही आज रवि ने नेशनल, ओलंपिक, कॉमनवेल्थ जैसे गेम्स में देश के लिए कई पदक हासिल ि1कए हैं।

पिता मजदूर, बेटी ने िकया टॉप

यूपी बोर्ड में इस साल 10वीं में जिला टॉपर रही नेहा गुप्ता के पिता संतराम मजदूर हैं। पांच बच्चों के पिता संतराम अपने सभी बच्चों को बेहतर जीवन देना चाहते हैं। वह कहते हैं कि हम पढ़-लिख नहीं पाएं इसलिए घर चलाने के लिए मिस्त्री-मजदूर का काम कर रहे हैं। संतराम कहते हैं कि हमारे बच्चे हमारी तरह सिर्फ मजदूर बनकर न रह जाएं इसलिए बच्चों को पढ़ाने-लिखाने का फैसला लिया है। हालांकि सबसे पहले तो परिवार में ही लड़कियों को पढ़ाने का विरोध हुआ लेकिन संतराम ने किसी की नहीं सुनी। बेटी नेहा को सरस्वती शिशु मंदिर में एडमिशन दिलाया। नेहा बताती हैं कि कई बार ऐसा भी ही हुआ कि पापा के पास राशन के लिए पैसे नहीं होते थे और मैं किताबों के लिए पैसे मांग लेती थी। ऐसे में वह भले ही उस समय पैसे नहीं दे पाते थे, लेकिन अगले दिन किताब के पैसे मेरे हाथ में रख देते थे। नेहा कहती हैं कि आज में सफल हुई हूं तो इसकी वजह पापा का संघर्ष ही है।

बेटे के लिए छोड़ दी दुकान

सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में साइंस में जिला टॉपर, जेईई एडवांस में 164 रैंक और एकेटीयू की परीक्षा में प्रदेशभर में चौथा स्थान हासिल करने वाले अक्षज बंसल के पिता मनीष बंसल की आढ़त हैं। बेटे की इस सफलता के लिए मनीष ने न सिर्फ अपनी आढ़त की दुकान छोड़ दी बल्कि लाइफ स्टाइल भी बदला। यह सब इसलिए कि अक्षज किसी भी तरह से डिस्टर्ब न हो। दो साल तक किसी भी फैमिली फंक्शन, बाहर घूमना-फिरना, कहीं आना-जाना तक उन्होंने बंद कर दिया। वह कहते हैं कि मैं खुद पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था, लेकिन अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर लाइफ में बेहतर पोजीशन पर काबिज करना चाहता हूं। कोचिंग के दौरान उसको खाना देकर आने से लेकर उसे कब किस चीज की जरूरत हैं इसका भी विशेष ध्यान रखता हूं। खुद को एडजस्ट करता हूं लेकिन बेटे की सफलता के मामले में किसी तरह का कोई कॉम्प्रोमाइज मुझे बर्दाश्त नहीं।

पिता कबाड़ी, लेकिन बेटे को बनाया आईएएस

जाकिर हुसैन कबाड़ी का काम करते हैं लेकिन अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति से उन्होंने अपने बेटे नदीम अहमद को आईएएस अधिकारी बनाकर मिसाल कायम कर दी । फिलहाल डिप्टी लेबर कमिश्नर के पद पर तैनात नदीम अहमद बताते हैं कि यह मेरे पिता की ही सोच थी जिसने मुझे यहां तक पहुंचाया। उनकी एक ही ख्वाहिश थी कि मैं अधिकारी बनूं। हालांकि परिस्थितियां ऐसी नहीं थी कि मैं महंगी पढ़ाई या कोचिंग अफॉर्ड कर सकूं। स्कॉलरशिप पर सिविल एकेडमी से तैयारी कर रहा था, इसी दौरान फार्म भरने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। पापा को अपनी दवाई लानी थी, उन्होंने खुद की दवाई न लाकर मुझे फार्म भरने के लिए पैसे दे दिए। अपने पिता की वजह से ही आज मैं यह जगह हासिल कर पाया हूं।