फादर्स डे स्पेशल

हर एक बच्चे के लिए उसके पापा ही सबसे बड़े हीरो होते हैं. वो अपने बच्चों की खातिर हर परेशानी सहकर भी उसके सपनों को उड़ान देने में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं. बच्चों की खुशी में ही उनकी खुशी होती है. पर हर कोई इतना खुशनसीब नहीं होता कि पिता का साया उसे पूरी तरह मिले. ऐसे में कुछ मां होती हैं जो एक पिता की भूमिका निभाती हैं और हद कदम पर अपने बच्चों के सपने को साकार करने का माद्दा दिखाती हैं. आज हम फादर्स डे पर आपको कुछ ऐसी ही मां से मिलाते हैं. जिन्होंने मां के साथ ही पिता के हर फर्ज को निभाया और अपने बच्चों को एक जिम्मेदार नागरिक बनाने के साथ ही सफलता की बुलंदियों पर बैठाया.

बेटे को बनाया सब इंस्पेक्टर

बनारस के टकटकपुर निवासी बिंदु सिंह की जिंदगी 80 के दशक में तब और कठिन हो गई जब पति बृजेश कुमार सिंह का देहांत हो गया था. तीन संतान में एक बेटी और दो बेटों की परवरिश करना बिंदु के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी. उन्होंने हर चुनौती का सामना किया और बच्चों का संबल बनीं. मन में दुखों का सैलाब लिए बेटी-बेटों को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. हर कदम पर बच्चों का आगे बढ़ने को प्रेरित किया. बच्चों ने मन लगाकर पढ़ाई की और आज एक बेटा यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर है तो दूसरा बेटा मेडिकल के क्षेत्र में सफलता की नई इबारत गढ़ रहा. बेटी की भी धूमधाम से शादी की.

कोई कमी नहीं होने दिया महसूस

यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर और बनारस क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह बताते हैं कि महज दो साल का था जब पिता का साया सिर से उठ गया था. बड़ी बहन और हम छोटे भाईयों को मां ने कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी. पिता भी पुलिस इंस्पेक्टर थे लेकिन आर्थिक तंगी का दौर भी हम लोगों ने देखा है. हम भाई-बहन की पढ़ाई पूरी रखने के लिए मां सिलाई करती थी. घर का खर्च और सबकी शिक्षा-दीक्षा जारी रखने के लिए मां ने कितनी परेशानियां झेली लेकिन उसका असर हम लोगों की जिंदगी पर नहीं पड़ने दिया.

इच्छाओं को मार, बेटियों को दिया प्यार

सारनाथ के हरि नारायण विहार कालोनी में रहने वाली शुभी अग्रवाल की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव से गुजरी है. शादी के एक दशक बाद 27 जुलाई 2007 को पति के निधन पर जिंदगी में दुखों का पहाड़ टूट गया. घर में अकेले शुभी की गोद में दो मासूम बेटियों की परवरिश की चिंता सताने लगी. लेकिन कहीं से अपने आप को कमजोर नहीं महसूस होने दिया. बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाया लिखाया और आज बड़ी बेटी श्रुति अग्रवाल इंजीनियरिंग करके अहमदाबाद में अच्छी जॉब कर रही है. छोटी बेटी शिवि अग्रवाल सेंट जांस मड़ौली में अभी पढ़ाई कर रही है.

मम्मा है मेरी सुपर हीरो

वह दौर याद कर आज भी शुभी अग्रवाल की आंखें डबडबा जाती हैं. पति के जाने का गम और बेटियों की अच्छी परवरिश की चिंता में कई साल गुजरे. उस दौरान आर्थिक तंगी से गुजरने वाली शुभी बताती हैं कि एक दौर ऐसा भी आया था कि घर में एक टाइम ही खाना बनाना पड़ता था, लेकिन बेटियों को दोनों वक्त के खाने-पीने की हर चीजें अवेलेबल होती थी. अपनी इच्छाओं को मारकर बेटियों की हर जरूरत को पूरा कराया. आनलाइन बिजनेस करने वाली शुभी की जिंदगी में अब दोनों बेटियां ही हीरे के समान है. बेटी शिवि कहती हैं कि मेरी सुपर हीरो मम्मा ही हैं.

सहकर दु:ख-दर्द, संतान का बढ़ाया कद

लंका के शिवपुरी कालोनी में रहने वाली लतिमा चटर्जी की जिंदगी कांटों से होकर गुजरी है. शादी के शुरूआती दौर में पति का साथ छूटा तो बेटा-बेटी के लालन-पालन की जिम्मेदारी सिर पर आ गयी. लेकिन कठिन जिंदगी को लतिमा ने सरल बनाया और बच्चों को एक अच्छी शिक्षा देने के लिए प्रयासरत हुई. हेरिटेज हॉस्पिटल में जॉब शुरू की तो राह आसान होती गई. दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल से पढ़ाया और फिर बच्चे अपने मेहनत के दम पर बीएचयू से पढ़ाई पूरी की, बेटा आलिम चटर्जी आज के दौर में गोवा में जीओ साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत है. बेटी अंतरा अभी बीएचयू से पीएचडी कर रही है. बच्चों को इतना अच्छा प्लेटफार्म तैयार करने में लतिमा ने कितने कष्ट सहे इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.

मिशाल बन गई हैं मां

भावुक मिजाज की लतिमा चटर्जी इन दिनों हेरिटेज में सीनियर कारपोरेट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. बेटी अंतरा कहती हैं कि मां ने हम भाई-बहन को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. सुख-दु:ख में मॉम हम लोगों के साथ खड़ी रहीं, अच्छाई की राह पर चलने को बचपन से सिखाया, सिर्फ अच्छी तालीम ही नहीं दी बल्कि मॉम ने इतना कर दिया है कि समाज में एक मिशाल दी जाती है.