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मां का हर किसी की जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण रोल होता है। मां के आगे पिता की गिनती कम ही होती है। लेकिन, यही पूरा सच नहीं है। पिता का रोल भी उतना ही इंपार्टेट है। अंगुली पकड़कर चलना सिखाने से लेकर कॅरियर बनाने तक पिता बच्चे का हद कदम पर साथ देता है। कई बार तो पिता के साथ वह मां का रोल भी प्ले करता है। संडे को फादर्स डे है। आज ऐसे ही पिता की बात जिन्होंने तमाम अभावों के बाद भी बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।

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पिता का मिला साथ, बेटे ने रचा इतिहास

पिता के इर्द गिर्द सिमटी है एम्स इंट्रेंस के डिस्ट्रिक्ट टॉपर की दुनिया

बेटे का सपना था कि उसे डाक्टर बनना है। किसान पिता ने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। यह कहानी एम्स इंट्रेंस टेस्ट में 266वीं रैंक हासिल करने वाले सौरभ कुशवाहा के पिता फूलचन्द्र की। पेशे से किसान फूलचन्द्र के जीवन में कई उतार चढ़ाव और बड़ी समस्याएं आई। लेकिन, उन्होंने किसी से हार नहीं मानी। समस्याओं का डटकर मुकाबला किया। फूलचन्द्र खेती करके अपने परिवार का पालन पोषण करते है। बड़ा संकट उनके जीवन में उस समय आया, जब पता चला कि पत्‍‌नी निर्मला देवी को कैंसर है। पत्‍‌नी के अस्पताल पहुंच जाने के बाद वह घर पर पिता के साथ ही मां के रोल में भी आ गए। उन्होने कभी अपने बेटे पर इस समस्या का असर नहीं पड़ने दिया। घर से लेकर खेतों में काम करने तक हर काम को उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ किया। हर कदम पर उन्होंने परिवार को एक मजबूत कड़ी के रूप में बांधे रखा। बेटे ने भी अपने पिता के समर्पण और तपस्या का फल एम्स में सलेक्शन हासिल करके दिया। फूलचन्द्र कहते है कि अब बेटे को डाक्टर के रूप में देखना ही उनके जीवन का मकसद है।

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ट्यूशन करके बच्चों को दिला रहे ऊंची शिक्षा

यह कहानी प्रीतम नगर में रहने वाले संदीप भटनागर की है। जिन्होंने बच्चों की शिक्षा में कभी अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति को समस्या नहीं बनने दिया। भले ही उसके लिए उन्हें 12 से 14 घंटे तक काम करना पड़ रहा है। संदीप म्युजिक टीचर हैं। वे प्राइवेट स्कूल में म्युजिक सिखाने के साथ ही घरों में जाकर म्युजिक की ट्रेनिंग देते हैं। संदीप के बड़े बेटे आयुष भटनागर बीटेक कम्प्युटर साइंस की पढ़ाई कर रहे हैं। आयुष के लिए उनके पिता सुपर हीरो हैं। आयुष बताते हैं कि उनके पिता ने उन्हें और उनके छोटे भाई पीयूष को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया। घर की माली हालत ठीक न होने के कारण पिता जी घरों में जाकर म्युजिक सिखाते है। वे एलआईसी का कार्य भी बचे हुए समय में करते है। जिससे बच्चों के सपने को साकार कर सके। आयुष अपने पिता संदीप को अपने जीवन का आइडियल मानते हैं। वे बताते हैं कि पिता ने बच्चों की खुशियों और जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी खुशियों की परवाह नहीं की। आयुष की पिता के सपनों में रंग भरने में दिन रात एक कर रहे हैं। संदीप के जिंदगी की दौड़ सुबह छह बजे स्कूल जाने की प्रक्रिया से शुरू होती है। स्कूल खत्म होने के बाद वे एलआईसी के कार्य में जुट जाते है। इसके बाद शाम चार बजे से रात साढ़े आठ बजे तक वे म्युजिक की ट्यूशन लेने के लिए लोगों के घरों में जाते है। वहां से रात नौ बजे के बाद घर आते है। इसके बाद पूरा समय बच्चों की पढ़ाई व अन्य एक्टीविटी की जानकारी लेने में बीतता है। उनकी पत्‍‌नी निदेश भटनागर ने भी उनके सफर में पूरा साथ दिया।

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पिता के साथ मां के रोल में है पापा

इसी तरह ही सोमनाथ का परिवार भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि बच्चों के लिए सोमनाथ पिता के साथ मां का रोल भी पूरी शिद्दत से निभा रहे हैं। 13 साल पहले पत्‍‌नी के निधन के बाद बच्चों की परवरिश को ही अपने जीवन का मकसद बना लिया। रिश्तेदारों ने कई बार दूसरी शादी के लिए दबाव भी बनाया, लेकिन सोमनाथ का कहना था कि बच्चे ही मेरी जिंदगी हैं। पेशे से सेल्समैन सोमनाथ का जीवन बच्चों के इर्दगिर्द ही सिमट कर रह गया है। सोमनाथ अपने तीन बच्चों के साथ लूकरगंज मोहल्ले में रहते हैं। तीन बच्चों में सुबी कक्षा दस में है। इसके अलावा मोहित और रोहित कक्षा आठ में पढ़ते हैं। तेरह साल पहले अचानक बीमारी के कारण पत्‍‌नी सुमन की मौत हो गयी। इसके बाद मानो पूरा घर ही बिखर गया हो, मगर सोमनाथ ने हार नहीं मानी और उन्होंने अपने तीनों बच्चों को मां और पिता दोनों का ही प्यार दिया। सोमनाथ सेल्समैन का काम करते हैं। इस कमाई से जो भी इनकम होती है उसे वह अपने तीनों बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते हैं। पढ़ाई में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसके लिए वह दिन रात मेहनत कर रहे हैं। बड़ी बेटी सुबी कहती है कि उसे मां की कमी कभी नहीं खली। जब कोई जरूरत होती है, पापा हमारे साथ होते है। सोमनाथ बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसके लिए वह किचन से लेकर बच्चों को स्कूल भेजने और उनके कपड़े भी खुद धुलते हैं। खाली समय में वह बच्चों के साथ खेलते हैं।