यह याचिका वकील अनिमा मुयारथ से जुड़ी है, जिन्होंने न्यायिक क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव और यौन उत्पीड़न का मामला उठाया था.

उन्होंने इस बाबत फ़ेसबुक पर एक टिप्पणी की थी, जिसके बाद कोझिकोड बार एसोसिएशन ने महिला वकील की टिप्पणी को समूची न्यायपालिका बिरादरी के लिए शर्मनाक क़रार देते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था.

यह निलंबन एक महीने के लिए था, जो 30 जनवरी को ख़त्म हो रहा है. लेकिन अनिमा मुयारथ के करियर में यह काले दाग की तरह हमेशा रहेगा. केरल में यह चलन में है कि अगर किसी वकील को सरकारी नौकरी हासिल करनी हो तो उन्हें बार एसोसिएशन से एक अनुभव प्रमाण पत्र लेना होता है.

माफी मांगने से इनकार

उनके समर्थन में 14 जनवरी को ऑनलाइन याचिका दाखिल करने वाले कन्नूर के वकील आशीष के ने बीबीसी हिंदी से कहा, "क़ानूनी बिरादरी में अश्लील टिप्पणियां आम बात है. लेकिन कोई शख़्स ठीक इससे उलटी राय रख सकता है. वैसे यह महज  फ़ेसबुक पर की गई टिप्पणी थी. किसी का नाम नहीं लिखा था. फिर भी उनसे माफ़ी मांगने को कहा गया."

आशीष ने बताया, "उन्होंने आम बैठक में जब माफ़ी नहीं मांगी तो उन पर कुर्सी फेंकी गई. उन पर कुर्सी फेंकने वाले वकील पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. यह वैसी ही असमानता है, जिसकी हम लोग बात कर रहे हैं."

मुयारथ मार्च 2013 में जब से वकालत के पेशे से जुड़ीं थी, तब से उन्होंने जिस तरह के भेदभाव का सामना किया था, उसके बारे में उन्होंने फ़ेसबुक पर टिप्पणी की थी.

महिला वकील के निलंबन का सोशल मीडिया पर भारी विरोध

उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा था, "पांच महीने हो गए, कोझिकोड बार काउंसिल में अभ्यास करते हुए. मैं नहीं जानती कि क्या दुनिया में सभी कार्यस्थल ऐसे ही होते हैं. कोझिकोड बार ऑफिस में मैं एक पोंगनमार से मिली जिनकी उम्र मेरी जितनी है. वे महिलाओं को देखते हुए प्रेम नजीर के स्टाइल में कहते हैं- तुम ख़ूबसूरत हो, माय डियर, शुगर कैंडी. ऐसा लगता है कि वे नई फिल्में नहीं देखते."

मलयाली में पोंगन ऐसे शख्स को कहते हैं जो कम अक्लमंद होते हैं. वहीं प्रेम नजीर  मलयाली सिनेमा के सबसे पुराने रोमांटिक हीरो रहे हैं. प्रेम नजीर अपनी फ़िल्मों में महिलाओं को रिझाने के लिए कई तरह के संबोधन से पुकारते थे. ऐसी कोशिश महिलाओं को ख़ुद के प्रति आकर्षित करने के लिए की जाती थी.

कारण बताओ नोटिस

मुयारथ ने लिखा था, "वे महिलाओं को बिगाड़ने के पुराने तरीक़ों से चिपके रहते हैं. इन्हें देखभाल की ज़रूरत है. इन्हें बहन या प्रेमिका का प्यार दिया जाना चाहिए. मैं ऐसे पोंगनमार टाइप लोगों को पसंद नहीं करती. इसके अलावा दूसरे तरह के वैसे बुजुर्ग हैं जो युवतियों को देखते ही उनके लिए वर तलाशने लगते हैं. वे अंकल हैं या ब्रोकर?"

यह टिप्पणी 25 अक्टूबर, 2013 को पोस्ट की गई थी. मुयारथ को एक महीने के अंदर जवाब देने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. उन्होंने बताया, "मैंने अगले ही दिन नोटिस का जवाब दे दिया. मुझ पर पूरी क़ानूनी बिरादरी को अपमानित करने का आरोप लगाया गया, जो मैंने नहीं किया था. मुझे एक महीने के लिए निलंबित किया गया."

मुयारथ ने कहा, "उन्होंने 22 दिसंबर को सुनवाई में उपस्थित होने को कहा. मैं उन्हें इसे कुछ दिनों तक टालने की गुजारिश की ताकि मैं बैंगलोर में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज की अपनी परीक्षा दे सकूं. लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए."

उनको इससे भी बड़ा झटका तब लगा जब आम बैठक में उनके निलंबन को सही ठहराते हुए उन पर कुर्सी फेंकी गई.

मुयारथ ने कहा, "20 में से सात सदस्यों ने मेरा समर्थन किया था. लेकिन बाक़ी मुझे माफ़ी मांगने को कह रहे थे. मैंने माफ़ी मांगने से इनकार किया क्योंकि मैंने कुछ भी ग़लत नहीं किया. तभी मेरे ऊपर एक कुर्सी फेंकी गई. दुर्भाग्य ये रहा कि एक दूसरा वकील इससे घायल हो गया."

कोझिकोड (कालीकट) बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार अब भी फ़ेसबुक की टिप्पणी को क़ानून बिरादरी का अपमान बताते हैं. उन्होंने कहा, "फ़ेसबुक की टिप्पणी काफ़ी अपमानजनक थी. वह सभी सदस्यों के संदर्भ में थी. इसलिए लोगों में गुस्सा भड़का. मुयारथ ने समिति के साथ सहयोग नहीं किया. उनके निलंबन पर आम सभा ने सहमति जताई है."

सम्मान की लड़ाई

महिला वकील के निलंबन का सोशल मीडिया पर भारी विरोध

कुमार बताते हैं, "मामला अब बंद कर दिया है. निलंबन अपने आप 30 जनवरी को ख़त्म हो जाएगा. यह एक महीने के लिए ही था. लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि एसोसिएशन में सभी एक बराबर हैं. किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता."

हालांकि आशीष इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखते हैं. वे कहते हैं, "यह सम्मान की लड़ाई है. उनका  वकील के तौर पर सम्मान होना ही चाहिए."

मुयारथ ने कालीकट टाउन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा चुकी हैं और आने वाले दिनों में बार एसोसिशन के ख़िलाफ़ सिविल मामला दर्ज करने वाली हैं. हालांकि एसोसिएशन की कार्रवाई उन्हें वकालत करने से रोक नहीं सकती.

आशीष की याचिका पर आई प्रतिक्रियाओं में कुछ बेहद दिलचस्प हैं. केरल के एक शख्स की प्रतिक्रिया है, "अगर क़ानून बनाने वाले ही क़ानून तोड़ने लगे तो लोगों का भरोसा उठ जाएगा. लोगों का वकीलों के प्रति भरोसा और सम्मान है. लेकिन ऐसी कोशिशों से वकीलों के प्रति भरोसा ख़तरे में पड़ गया है. उनके निलंबन को रद्द किया जाना चाहिए."

गुड़गांव के एक शख़्स की प्रतिक्रिया है, "लैंगिक भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए." लखनऊ के शख़्स ने प्रतिक्रिया दी है, "यह सही अभिव्यक्ति व्यक्त करने का सवाल है."

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