-- महिला वोटर्स तो बढ़ती हैं लेकिन कैंडीडेट नहीं आते सामने

-- पिछले पांच लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक महिला कैंडीडेट लड़ी

BAREILLY: लोकसभा इलेक्शन की रणभेरी बजते ही कैंडीडेट की तैयारियां भी जोरों पर है। वैसे देखा जाए तो महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। एक तरफ वे डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफसर, आईएएस और आईपीएस बनकर नित्य नए सफलता की इबारत लिख रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ राजनीति में उनकी भागीदारी बहुत कम है। इसमें उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए पार्टियां कई तरह के दावे कर रही हैं। आरक्षण बिल लाने की लंबे समय से चर्चा चल रही है, लेकिन रिजल्ट ढाक के तीन पात। बरेली में भी महिलाएं इस फील्ड में काफी पीछे हैं। यहां भी मैदान में इक्का-दुक्का महिलाएं ही नजर आती हैं। पिछले पांच लोकसभा चुनावों की बात करें तो सिर्फ एक ही चुनाव में महिला कैंडीडेट ने अपना हाथ आजमाया। जबकि हर चुनाव में महिला वोटर्स की संख्या बढ़ी है। आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह।

जब्त हो गई जमानत

यहां अगर पिछले पांच लोकसभा चुनाव की बात करें तो मैदान में महिला उम्मीदवार की संख्या न के बराबर ही रही। क्99म्, क्998, क्999, ख्00ब् और ख्009 में लोकसभा चुनाव हुए। बरेली लोकसभा सीट से क्998 में कांगे्रस प्रत्याशी के रूप में तेजस्वरी ने चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। क्998 लोकसभा चुनाव में बरेली लोकसभा सीट पर कुल क्क्क्म्ब्क्ब् वोटर्स थे। इस चुनाव में म्0 फीसदी वोटिंग हुई। कुल म्800ब्फ् लोगों ने अपने वोट का प्रयोग किया। इस चुनाव में तेजस्वरी को कुल वोट का सिर्फ फ् परसेंट मत मिले। उन्हें ख्क्0क्क् वोट मिले जिससे वह अपनी जमानत ही नहीं बचा सकी। हालांकि इस बार भी बरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में एक महिला कैंडीडेट है।

सात लाख हैं महिला वोटर्स

बरेली में महिला वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है। चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो बरेली डिस्ट्रिक्ट में कुल महिला वोटर्स की संख्या करीब क्फ् लाख है। इसमें सिर्फ बरेली लोकसभा सीट की पांच असेंबली की महिला वोटर्स पर नजर डालें तो यह करीब 7 लाख है। यानी महिला और पुरुष वोटर्स की संख्या लगभग बराबर है। अगर महिला वोटर्स ठान लें कि उन्हें सिर्फ महिला कैंडीडेट को वोट करना है तो उसे हराने वाला कोई नहीं है। इसके बावजूद भी महिला कैंडीडेट आगे आकर चुनाव नहीं लड़ना चाहती है। महिला चुनाव लड़ने की हिम्मत भी करती है उसे आगे आने नहीं दिया जाता है। बरेली में पार्षद के चुनाव में भी कम ही संख्या में महिला पार्षद बनी। विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं का दमखम नजर नहीं आता है। लोकसभा चुनाव में क्99म् में सबसे ज्यादा फ्म् कैंडीडेट मैदान में उतरे लेकिन इनमें भी एक भी महिला कैंडीडेट सामने नहीं आयी।

जिम्मेदार है समाज

सिटी की एक्टिव वीमेन से जब इसके बारे में बात की गई तो उन्हें इसके लिए सबसे पहले समाज को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना है कि समाज के लोग महिला अगर टीचर, प्रोफेसर, डॉक्टर और इंजीनियर बन जाती हैं, तो उसे स्वीकार कर लेते हैं। इन सब कामों को अच्छा मानकर महिला को सम्मान भी देते हैं, लेकिन जब महिला राजनीति में कदम रखती हैं तो उसे गलत नजरों से देखा जाता है। जबकि राजनीति में भी कई महिलाएं बड़े-बड़े ओहदे पर बैठी हुई हैं। कई बार महिलाओं के पति व फैमिली मेंबर भी उसे इस फील्ड में आगे बढ़ने नहीं देते हैं। अगर प्रधान, पार्षद या किसी अन्य चुनाव पर महिला कैंडीडेट जीत भी जाती है तो सारा काम उसके पति ही करते हैं। इसलिए भी महिलाएं आगे आने की हिम्मत नहीं करती हैं।

पार्टी भी कर रही अनदेखी

सभी राजनैतिक पार्टियां महिलाओं को आगे आने की वकालत करती हैं, लेकिन सच्चाई इससे कहीं परे नजर आती है। हर बार महिलाओं के आरक्षण का मुद्दा उठता है, लेकिन कभी भी इसका बिल पास नहीं हो पाता है। कई बड़ी पार्टियों में ऊंचे ओहदे पर महिलाओं के होने के वाबजूद भी इनकी अनदेखी की जाती है। जब चुनाव आते हैं तो महिलाओं को कम से कम सीटें दी जाती हैं। वो महिलाओं पर भरोसा ही नहीं जताती हैं। सिटी की महिलाओं का मानना है कि अगर आरक्षण होगा तो हर हाल में महिला चुनाव लड़ेगी और वो इस फील्ड में अपना दमखम दिखाएंगी।

ब्0 फीसदी ने किया वोट

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो महिला वोटर्स ने पूरी ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई थी। बरेली लोकसभा सीट के अंदर आने वाली असेंबली की बात करें तो ख्88ब्ब्7 महिला वोटर्स ने अपने मत का प्रयोग किया था। जबकि ब्क्7क्ख्भ् पुरुष वोटर्स ने मतदान किया था। इस हिसाब से कुल वोटिंग परसेंटेज में से ब्0 परसेंट महिला वोटर्स ने अपने मत का प्रयोग किया। इतनी संख्या में अगर लोकसभा सीट पर महिला वोटर्स किसी महिला कैंडीडेट को वोट करें तो उसकी जीत पक्की होगी।

लोकसभा सीट पर असेंबली वाइज महिला वोटर्स की संख्या

मीरगंज- क्ब्क्9क्9

भोजीपुरा-क्ब्ख्म्भ्8

नवाबगंज-क्फ्भ्ख्फ्0

बरेली-क्म्भ्090

बरेली कैंट-क्फ्899क्

पिछले विधानसभा चुनाव में महिला वोटर्स के द्वारा वोटिंग

मीरगंज -म्क्978

भोजीपुरा -708क्ब्

नवाबगंज -म्फ्क्ख्ख्

बरेली -ब्998ख्

बरेली कैंट -ब्ख्भ्भ्क्

महिला केंडीडेट का चुनाव ना लड़ना काफी चिंताजनक है। इसके पीछे की मेन वजह आरक्षण ना होना है। इसके अलावा महिलाओं के पास बड़े चुनाव में संसाधन ना होना, पति व फैमिली का सहयोग ना मिलना भी चुनाव से हाथ पीछे खींचने भी एक वजह है।

- सुप्रिया ऐरन, पूर्व मेयर बरेली

महिला को राजनैतिक फील्ड में उस तरह से सम्मान नहीं मिलता है, जिस तरह से अन्य फील्ड में मिलता है। इसके अलावा अगर वे चुनाव जीत भी जाती हैं, तो पति ही सारा काम देखते हैं। हमें अगर मौका मिले तो हम भी इस फील्ड में अच्छा कर सकते हैं। महिलाओं को सम्मान की नजर से देखना चाहिए।

- शालिनी जौहरी, पार्षद

महिला अभी भी राजनीत क्षेत्र को वर्जित क्षेत्र मानती हैं। इस फील्ड में साम, दाम, दंड भेद सब कुछ अपनाना पड़ता है। यह काम महिला के बस का नहीं होता है। इसके अलावा सभी राजनैतिक दल महिलाओं को टिकट देने का दावा तो करते हैं लेकिन जब चुनाव आते हैं तब हकीकत कुछ और सामने आती है।

- वंदना शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर बीसीबी

राजनीति में महिलाओं में जागरुकता की कमी है। इसके अलावा पार्टिया दावा करती हैं कि वो महिलाओं को इस फील्ड में आगे लाना चाहती हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसके अलावा कई बड़ी पार्टियों में महिलाएं बड़े पद पर हैं लेकिन वो भी इस बारे में कभी नहीं सोचती हैं।

- मनु नीरज, अध्यक्ष महिला जागृति मंच