- थर्ड फेज में महिलाओं ने पुरुषों को वोट देने में पछाड़ा

- हर एक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से हो रही हैं खुश

PATNA: थर्ड फेज के चुनाव में वोटिंग परसेंटेज भ्9.ब्फ् रहा। इससे बड़ी बात यह कि पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले। इस पर पार्टियां खुश हैं। जेडीयू खुश है कि यह नीतीश सरकार की उपलब्धि है। पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं कि नीतीश सरकार ने लड़कियों को स्कूल जाने और स्कूल से घर आने के लिए साइकिल दिया, पोशाक दिया। पंचायतों तक महिलाओं को आरक्षण दिया। यही नहीं, घोषणा-पत्र में महिलाओं को भ्0 फीसदी आरक्षण देने की बात हमारी पाटी ने ही की है। यह उसी का असर है कि महिलाएं नीतीश कुमार की पार्टी को बड़ी संख्या में वोट देने निकलीं।

नेचुरल च्वॉइस है कांग्रेस

कांग्रेस गदगद है कि महिलाओं की नेचुरल च्वॉइस कांग्रेस ही है। पार्टी प्रवक्ता प्रेमचंद मिश्रा कहते हैं कि जो महिलाओं के फोन बंद कमरे में सुने, जो शादी करे और पत्नी को पलटकर ब्भ् साल तक नहीं देखे उसे कोई महिला कैसे वोट देगी। गोलवरकर ने फ्0 जनवरी क्9म्म् में एक पत्रिका में लिखा था कि महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देना गलत निर्णय है। कांग्रेस ने तो देश में महिला यूपीए अध्यक्ष दिया, महिला राष्ट्रपति दिया, महिला लोकसभा अध्यक्ष दिया, इसलिए महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर कांग्रेस को वोट दिया।

यह नमो के प्रति आस्था है

कांग्रेस कितना भी गदगद हो ले, पर बीजेपी मानती है कि महिलाओं का ज्यादा वोट करना नरेन्द्र मोदी के प्रति आस्था का प्रतीक है। पार्टी प्रवक्ता संजय मयूख कहते हैं कि महिलाएं सबसे ज्यादा त्रस्त किसी एक चीज से हैं, तो वो महंगाई है और सिर्फ महंगाई है। चूल्हा बचाने के लिए महिलाओं का बड़ा वोट हुआ है कांग्रेस को हटाने और बीजेपी को लाने के लिए। उधर, आरजेडी महिलाओं के वोट को सरकार की नाकामी से जोड़ कर देखती है और कहती है कि नीतीश सरकार की नाकामी का मैंडेट दे रही हैं महिलाएं। पार्टी प्रवक्ता रामानुज कहते हैं कि यह इलेक्शन कमीशन के अवेयरनेस प्रोग्राम का भी असर है। घर-घर पर्चा पहुंचाने का बड़ा असर हुआ है। महिलाएं राज्य में भी बदलाव चाहती हैं, इसलिए भी वे बड़ी संख्या में आगे आकर व्यवस्था परिवर्तन के लिए वोट कर रही हैं। सोशल और पॉलिटिकल एनॉलिस्ट प्रो। अजय कुमार कहते हैं कि जेडीयू के फेवर में महिलाओं का रुझान हो। महिलाओं को निचले स्तर तक जो आरक्षण दिया उसका बड़ा असर है।

सच को समझने के तीन तर्क

क्। सभी पॉलिटिकल पार्टियों के अपने-अपने तर्क हैं। दूसरी तरफ इसके और भी कुछ दमदार मायने और कारण हो सकते हैं। थर्ड फेज में जिन इलाकों में वोट हुए हैं वे हैं- सुपौल, अररिया, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर, बांका। ये वे इलाके हैं जो कोशी के बेल्ट हैं। यहां गरीबी खूब है और साथ ही राजनीतिक जागरूकता का इतिहास भी। कोसी का प्रलय है और कोसी से लड़ने की ताकत भी। बड़ी बात ये है कि यही वे इलाके हैं, जहां बिहार में पलायन की बड़ी त्रासदी है। पलायन की वजह से ही कई घरों में आपको मर्द नहीं मिलेंगे या कम मिलेंगे। इस एरिया के हजारों-लाखों पुरुष बिहार से बाहर विभिन्न तरह के काम काज करने के सिलसिले में रहते हैं और वहीं से हर माह रुपए भेजते हैं।

ख्। दूसरी बड़ी बात ये कि इस एरिया में मुसलमानों की खासी संख्या है। यहां के पुरुष मुसलमान बड़ी संख्या में देश से बाहर गल्फ कंट्री में काम करते हैं।

फ्। महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में ज्यादा वोटिंग की है, तो ये भी समझिए कि मुस्लिम महिलाओं में वोट के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है और उन्होंने जम कर वोट की ताकत का इस्तेमाल किया है। इसका फायदा नीतीश कुमार को होगा या लालू प्रसाद को, ये तो चुनाव परिणाम बताएगा।

इससे सीख ले सरकार

यह इस बात के जबर्दस्त संकेत हैं कि पलायन पर काबू नहीं पा सकी है नीतीश सरकार। केन्द्र प्रायोजित मनरेगा जैसी योजनाओं का हाल बेहाल है। गरीबी कायम है। मुसलमानों की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है, इसलिए पार्टियों को भी खुश होने की जरूरत नहीं है।

महिलाओं के वोटिंग परसेंटेज पर एक नजर

लोस चुनाव, बिहार परसेंटेज

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