-केजीएमयू में मनाया गया गोल्डन जुबली समारोह

-1967 बैच के डॉक्टर्स मिले, शेयर की पुरानी यादें

LUCKNOW: केजीएमयू में शनिवार को 50 साल पुराने स्टूडेंट्स एक बार फिर एक दूसरे के साथ थे। अपने पुराने दोस्तों से मिलकर कुछ की आंखें भर आयीं तो कुछ गले मिलकर पुरानी यादों में खो गए। पूर्व छात्रों का कहना था कि इतने सालों में केजीएमयू ही नहीं लखनऊ भी काफी बदल गया। उसमें से कई ऐसे थे जो आज देश-विदेश में अपनी सेवाओं से केजीएमयू का मान बढ़ा रहे हैं तो कुछ उम्र से बुजुर्ग की श्रेणी में आकर घर पर आराम कर रहे थे। शनिवार को मौका था केजीएमयू के एमबीबीएस 1967 बैच की गोल्डन जुबली समारोह का।

रिसर्च फेलोशिप का प्रस्ताव

1967 बैच के ही मेरठ निवासी दिवंगत डॉ। एमके सिंह के नाम पर केजीएमयू में रिसर्च फेलोशिप शुरू करने का भी प्रोग्राम में प्रस्ताव रखा गया। अमेरिका में रह रहीं उनकी पत्नी आशा सिंह, पुत्री हिमानी सिंह और पुत्र अरुण सिंह भी इस पूर्व छात्र मिलन समारोह में शिरकत करने आए थे। इस दौरान डॉ। एमके सिंह से जुड़ी यादों को यादकर उनके साथी भावुक हो गए। प्रोग्राम में चीफ गेस्ट के रूप में मौजूद प्रो। एमएलबी भट्ट ने पूर्व छात्रों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

1970 में हुआ था पहला किडनी ट्रांसप्लांट

डॉ। अनिल कुमार ने बताया कि केजीएमयू में कई यादगार एवं ऐतिहासिक सर्जरी 60-70 के ही दशक में हो चुकी हैं। उन्हें आज भी याद है वह पल जब 1970 में यहां पहला किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उस समय डॉ। शाही चिकित्सा जगत का एक बड़ा नाम थे। उन्होंने ही यह कारनामा किया था।

रैगिंग नहीं होती थी सजा

डॉ। एस सी टंडन ने बताया कि उन दिनों खूब रैगिंग होती थी। लेकिन उसे सभी एंज्वॉय करते थे। सीनियर भी जूनियर का ख्याल रखते थे और गंज लेकर जाकर पार्टी देते थे। लेकिन आज वो माहौल नहीं है। रैगिंग खतरनाक रूप ले चुकी है। उन्होंने कहा कि रैगिंग के नाम पर अक्सर मुर्गा बनते थे लेकिन जरूरत पड़ने पर सीनियर बड़े भाई की तरह मदद भी करते थे।

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हॉस्टल तो तीर्थस्थल था

पुरानी यादों में खोते हुए डॉ। एम एन कपूर ने कहा कि उस समय कैंपस केजीएमसी के नाम से जाना जाता था और यहां एक ही ग‌र्ल्स हॉस्टल था। वह हम लोगों के लिए ऐसा स्थान था जहां जाने की सभी कोशिश करते थे। कुछ स्टूडेंट ग‌र्ल्स हॉस्टल को तीर्थस्थल कहते थे। हालात यह थे कि जो भी ग‌र्ल्स हॉस्टल की दीवार छूकर आ जाता, वह अपने आप को हीरो समझने लगता। 1967 बैच की सर्वाधिक मेडल पाने वाली राजी अय्यर ने बताया कि उस समय प्रेसीडेंट वी वी गिरी ने उन्हें सम्मानित किया था। उनको हीवेट सहित 13 मेडल मिले थे।