- कैंसर दिवस विशेष

- कैंसर से लड़ने के बाद अब औरों को भी करते हैं जागरूक

आगरा। कैंसर, इस बीमार का नाम ही इंसान को सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक और आर्थिक रूप से भी झझकोर देती हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इस मुश्किल जंग से जीतकर आज अपनी स्वस्थ जिंदगी ही नहीं जी रहे, बल्कि औरों को जागरूक भी कर रहे हैं। यदि इन्हें अपने आस-पास कोई कैंस से पीडि़त मरीज मिलता है तो उसे काउंसिलिंग करने से लेकर उसे अस्पताल भी भेजते हैं। आइए, आपकी मुलाकात कुछ ऐसे ही लोगों से कराते हैं, जिन्होंने कैंसर से जंग जीती।

12 साल से कर रहे कैंसर पीडि़तों की मदद

62 वर्ष के नूर मोहम्मद खान। करीब 12 साल पहले पता लगा था कि इन्हें पित्त की थैली में कैंसर है। पिता को भी यही कैंसर था तो डॉक्टर ने उन्हें जेनेटिक बीमारी होने का पहले ही अंदेशा जता दिया था। घर में हर पत्नी, दो बेटे, बहु सब थे लेकिन कैंसर का नाम सुनकर एक बार अपनी हिम्मत हार चुके थे। इन्होंने एसएन मेडिकल कॉलेज में अपना लंबा इलाज कराया और 12 कीमोथेरेपी व 25 रेडियोथेरेपी जैसी दर्दभरी प्रक्रिया से गुजरते हुए आखिर कैंसर से जंग जीत ही ली। उसके बाद उन्होंने ने औरों की मदद करने की ठानी। नूर बताते हैं कि वे आज तक कई लोगों को अस्पताल भेज चुके हैं जिन्हें कैंसर के लक्षण दिखाई दे रहे थे। वे उन्हें जागरूक करते है।

कैंसर से जीत, स्कूल पढ़ने जाती है नन्हीं 'गोला'

सात साल की नन्हीं गोला। अब भी उसे कैंसर का मतलब भी नहीं पता। गोला जानती ही नहीं कि उसने छोटी सी उम्र में जिंदगी की बड़ी जंग जीत ली। दो साल पहले गोला को गले में गांठ हो गई थी। पिता राजू ने जब जांच करवाई तो कैंसर निकला। उसके बाद गोला का लंबा इलाज चला। कीमोथेरेपी जैसी दर्द भरी प्रक्रिया में भी गोला ने चुपचाप दवाई लगवाई। कभी कोई शिकायत नहीं की। आज गोला दूसरी कक्षा में अपने मामा के पास पढ़ती है। कैंसर से जंग जीतने के बाद शरीर में कमजोरी आई है। इसीलिए अभी उसकी दवाएं चल रही है। लेकिन डॉक्टर्स का कहना है कि अब उसे कोई खतरा नहीं है।

तंबाकू खाने वालों को बताते हैं अपना हाल

खेती-मजदूरी करने वाले राधेश्याम को काफी समय से तंबाकू का सेवन करने की बुरी लत थी। दो साल पहले जब कई दिनों से जीभ का छाला ठीक नहीं हो रहा था तो उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली। जांच करवाई तो कैंसर निकला। परिवारजनों ने इसकी भनक तक नहीं लगने दी। कैंसर रोग से अंजान राधेश्याम अपना इलाज कराते रहे। सर्जरी के बाद जब राधेश्याम को पता लगा कि उन्हें कैंसर था तब से तंबाकू न खाने की शपथ ली और अब अपने गांव या कहीं भी कोई गुटखा-तंबाकू खाता दिखता है तो उसे अपने बारे में बताते हैं। राधेश्याम ने बताया कि लोग मानते तो नहीं लेकिन मैं भी अब अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटूंगा। लोगों को कैंसर के बारे में जागरूक करता रहूंगा।