- वॉटर बॉर्न डिजीज से निपटने के लिए नहीं है कोई तैयारी
- काफी दिनों से लोगों की परेशानी बढ़ा रही है बीमारी
GORAKHPUR: बरसात के दिनों में पानी या पानी ठहरने से होने वाली बीमारियों की सीरीज में आज बात पैरासिटिक डिजीज फाइलेरिया की। इस बीमारी की चपेट में आने वाले व्यक्ति की मौत तो नहीं होती है, लेकिन अगर सीवियर स्टेज में मामला पहुंच गया, तो पीडि़त जिंदगी भर के लिए डिसएबल हो जाता है। देश में करीब 40 मिलियन से ज्यादा इसके पेशेंट हैं, जिसका 60 से 65 फीसदी हिस्सा ईस्टर्न यूपी और बिहार में पाया जाता है। फर्स्ट और सेकेंड स्टेज में है तो केचुआ या पेट के कीड़े मारने की दवा से ट्रीटमेंट किया जा सकता है। शरीर में एबनॉर्मल्टी नहीं है तो छह माह में ठीक भी हो जाएगा, लेकिन इसके बाद डायग्नोज हुआ तो मुसीबत बढ़ सकती है।
वॉटर लॉगिंग और धूल में पैरासाइट
वॉटर लॉगिंग हो या फिर धूल दोनों ही लोगों को परेशान करते हैं। मगर बरसात के मौसम में यह दोनों ही सेहत खराब करने में भी अहम रोल अदा करते हैं। गड्ढों में रुके पानी और धूल के जरिए फाइलेरिया के पैरासाइट बॉडी में एंट्री करते हैं। मक्खी से फैला इंफेक्शन और मॉस्कीटो बाइट ही इसके इंफेक्शन कॉज का तरीका है। इस बीमारी से किसी की मौत नहीं होती है, लेकिन अगर सीवियर कंडीशन पहुंच गई तो व्यक्ति जिंदगीभर के लिए डिसएबल हो सकता है।
निगम नहीं करता प्रॉपर इंतजाम
शहर में वॉटर लॉगिंग की समस्या आम है। जगह-जगह छोटे-छोटे गड्ढे बने हुए हैं, जिनकी वजह से पानी वहीं रुक जा रहा है। ऐसे कई मोहल्ले और कॉलोनी हैं, जहां वॉटर लॉगिंग की समस्या काफी दिनों से है लेकिन जिम्मेदार न तो वॉटर लॉगिंग की प्रॉब्लम से निजात दिला रहे हैं और न ही फॉगिंग या दवाओं का छिड़काव ही हो रहा है। ऐसे में इन मच्छरों के बढ़ने के चांजेस बढ़ गए हैं, जिससे लोगों की मुसीबत भी बढ़ सकती है।
यह है वजह
पानी का कलेक्शन
डीफोरेस्टाइजेशन
एटमॉस्फियर में ह्यूमिडिटी
अवेयरनेस में कमी
गंदगी का फैला होना
लाइफ साइकिल मनुष्य और मच्छर में पूरी होती है
जहां गए, वहां की बीमारी
फाइलेरिया के पैरासाइट जानलेवा नहीं, लेकिन खतरनाक बहुत हैं। यह बॉडी के जिस पार्ट में जाते हैं, वहां के हिसाब से बीमारी कॉज करते हैं। अगर लिम्फैटिक चैनल में गए तो लिम्फैटिक फाइलेरियासिस हो जाता है, तो वहीं बाउरी में नहाने और उसका पानी पीने वाले सब कुटैनियस फाइलेरियासिस का शिकार बनते हैं। सीरस कैविटी फाइलेरियासिस भी अलग वायरस की वजह से होती है।
सिंप्टम
- फेफड़े में अगर एंट्री की तो ठंड लगकर बुखार, खांसी, नाक बहना, सांस फूलना
- मॉस्कीटो बाइट के जरिए चमड़ी में तो चमड़ी पर दाने, खुजलाहट, चमड़ी कड़ी
- लिंफैटिक चैनल के थ्रू एंट्री तो गिल्टी हो जाना
- पैर में तो हाथी पांव
- कान में तो उटाइटिस मीडिया यानि कान बहने की शिकायत
- वेजाइना में तो वॉल्वोलाइटिस
- ब्रेस्ट में तो एक्सेस ऑफ ब्रेस्ट
- स्प्यूटम में तो हाइड्रोसील
- आंख में तो कंजेक्टिवाइटिस
- जोड़ों में तो अर्थाराइटिस
- पेट में तो सीरियस एब्डॉमिनल पेन
लाइफ साइकिल
मक्खी या मच्छर - प्राइमरी होस्ट
इंसेक्ट - इंटरमीडिएट होस्ट
मनुष्य - सफरर
टेस्टिंग ऐसे कराएं -
ब्लड टेस्ट और सिंप्टम के जरिए पकड़ में आ जाता है।
ईपीआर टेस्ट
पस टेस्ट
एक्सरे
सिटी स्कैन
एमआरआई
बचाव
- काली मक्खी से सतर्क रहें
- मरे जानवर से दूर रहें।
- पूरे बांह का कपड़ा पहनं और मच्छरदानी लगाकर सोएं।
- ठंड लगकर बुखार चढ़े तो दो गोली क्लोरोक्वीन की खा लें, इसके बाद फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
- घर के आसपास पानी न जमा होने दें, लारवा वहीं डेवलप होते हैं।
- इनके मच्छर रात में घरों में घुस जाते हैं। शाम होते ही घर के खिड़की दरवाजे बंद कर दें।
- मॉस्कीटो रिपलेंट, वेपोराइजर मशीन, नॉन इलेक्ट्रिक या इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल करें।
- इनडोर रेसिडुअल स्प्रे करें यानि कि गेट की एंट्री पर स्प्रे कर दीजिए, जिससे मच्छर एंट्री ही न करें।
- गंदी या धूल वाली जगह से गुरजने पर मास्क लगाएं।
वर्जन
फाइलेरिया जानलेवा बीमारी नहीं है, लेकिन अगर समय से डायग्नोसिस न हो तो बीमारी उम्रभर के लिए विकलांग कर सकती है। घर के आसपास सफाई रखें और पानी को इकट्ठा न होने दें। वहीं सिंप्टम दिखने पर तत्काल डॉक्टर को दिखाकर इलाज कराएं।
- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, सीनियर फिजिशियन