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PATNA : सरकारी धन का दोहन कैसे किया जाता है, अगर आप यह देखना चाहते हैं तो रवींद्र भवन में चल रहे रीजनल फिल्म फेस्टिवल में एक बार चले जाइए। यहां बिहार सरकार ब्भ् लाख रुपए खर्च कर क्षेत्रीय भाषा की फिल्में दिखा रहा है। ऐसी फिल्में जिन्हें देखने वाला ही कोई नहीं है। हर फिल्म में दो-चार दर्शक भी आ जाएं तो बहुत है। इनॉगरेशन के लिए स्कूली बच्चों को बुलाकर हॉल भरा गया था, क्योंकि दीप प्रज्जवलन करने संस्कृति मंत्रीजी खुद आए थे। अगर वे खाली हॉल देख लेते तो शायद ब्भ् लाख रुपए का बजट घट जाता। आज फेस्टिवल का आखिरी दिन है। आई नेक्स्ट पेश कर रहा है फ्लाप फिल्म फेस्टिवल की इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी।

यह खेल है बड़ा

बिहार सरकार के संस्कृति विभाग ने रीजनल फिल्म फेस्टिवल का काम बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट एंड वित्त निगम को दिया। निगम ने म् दिन चलने वाले फेस्टिवल के लिए म् भाषाओं की क्ख् फिल्मों का चयन किया। आश्चर्य की बात यह है कि बिहार में जो म् भाषाओं की फिल्में दिखाई गई, उसमें भोजपुरी और मैथिली ही नहीं थी। मलयालम, पंजाबी, राजस्थानी, ओडिया, मराठी और बंगला जैसी भाषाएं थी, जिनके दर्शक बिहार में नहीं के बराबर है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार को यह बजट केवल आनन फानन में खर्च करना था, या फिर इसका कोई और ही उद्देश्य था।

ख् लाख ब्0 हजार हॉल के लिए

रविन्द्र भवन सभागार में कोई भी प्रोग्राम आयोजित करने के लिए रविन्द्र परिषद को ब्0 हजार प्रतिदिन के हिसाब से देना होता है। क्भ् नवम्बर से ख्0 नवम्बर तक आयोजित इस फिल्म फेस्टिवल के लिए बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट एंड वित्त निगम ख्,ब्0,000 देना पड़ेगा।

उडि़या फिल्म में फ् दर्शक थे

आई नेक्स्ट टीम क्भ् नवंबर से हर फिल्म में दर्शकों की संख्या को देख रही थी। फ्राइडे के दिन तो हद ही हो गई। उडि़या फिल्म आदिम विचार को देखने केवल फ् दर्शक बैठे थे। पूरा हॉल खाली पड़ा था। अभिनेता अटल बिहारी पंडा की फिल्म देख रहेअनीसाबाद निवासी हेमा झा ,डीएन झा और अमित मिश्रा से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि बिहार में उडि़या भाषा जानने वाले बहुत कम है। इसलिए इन फिल्मों को देखने कौन आएगा।

फिल्मों के चयन पर सवाल

रीजनल फिल्म फेस्टिवल में भाषाओं और फिल्मों के चयन पर ही सवाल उठने लगे हैं। जब संस्कृति विभाग खुद जानता था कि जिन क्षेत्रीय भाषाओं के लोग बिहार में नहीं है तो उन्हें चयन करने क्यों किया गया।

आप भी देखें इन फिल्मों को दिखाया गया फेस्टिवल में

क्भ् नवंबर-मलयाली

क्म् नवंबर-पंजाबी

क्7 नवंबर- राजस्थानी

क्8नवंबर-ओडिया

क्9 नवंबर-मराठी

ख्0 नवंबर-बंगला

फिल्म का नाम-

नानकनाम जहाज है,

पंजाब क्98ब्,

अन्हे घोड़े दा दान,

भोभर,

हाट विकली बाजार,

बाई चली सासरिये,

विश्वप्रकाश,

कटुआ,

आदिम विचार,

क्त्रांतिधारा,

श्वास,

हरिश्चंद्राची की फैक्ट्री,

किल्ला,

कालपुरुष,

शब्दों,

शोंखाचिल

एमडी ने भी माना दर्शक कम आ रहे है

बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट एंड वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार से सीधे सवाल- जवाब

रिपोर्टर - ब्भ् लाख रुपए का बजट और दर्शक सिर्फ फ्। ऐसे फेस्टिवल का क्या उद्देश्य है?

गंगा कुमार- बिहार के लोगों को क्षेत्रीय भाषा से जोड़ने का प्रयास है।

रिपोर्टर - इस फेस्टिवल मे ंबिहार की क्षेत्रीय फिल्म क्यों नहीं दिखाई गई?

गंगा कुमार - बिहार के क्षेत्रीय भाषा पर आधारित फिल्म फेस्टिवल क्ख् दिसम्बर से शुरू होने जा रहा है।

रिपोर्टर - फ् दर्शक के लिए बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट एंड वित्त निगम के लगभग सभी कर्मचारी रविन्द्र भवन में काम कर रहे हैं?

गंगा कुमार - नहीं, सभी कर्मचारी वहां काम नहीं कर रहे हैं।

रिपोर्टर -दर्शक कम होने का क्या वजह है?

गंगा कुमार -इससे पहले भी फेस्टिवल हुआ था, वहां ख्00 लोग थे। भाषा का ज्ञान न होने के चलते लोग कम आ रहे है।

रिपोर्टर -उद्घाटन वाले दिन केवल स्कूली बच्चे क्यों थे?

गंगा कुमार- स्कूली बच्चों के साथ अन्य लोग भी थे।

रिपोर्टर -फेस्टिवल का टेंडर किसको दिया गया है?

गंगा कुमार- बिहार राज्य फिल्म डेवलपमेंट एंड वित्त निगम फेस्टिवल को खुद करवा रही है।

मैं जिस दिन गया था उस दिन काफी लोग थे। उसके बाद मैं सरकारी काम के वजह से नहीं जा पाया। दर्शक नहीं आ रहे हैं इसकी क्या वजह है ये बता पाना मुश्किल है।

-शिवचन्द्र राम, कला संस्कृति मंत्री बिहार सरकार ।

क्षेत्रीय फिल्म फेस्टिवल में बुद्धिजीवी, साहित्यकार रंगकर्मी की अनुपस्थिति और उदासीनता से कई सवाल उठ रहे हैं। व्यापक दर्शक वर्ग का निर्माण और उनकी नियमित भागीदारी हमारे लिए चुनौतीपूर्ण है।

-राजन कुमार सिंह, नाट्य अभिनेता