फ़ैसला सुनाए जाने से पहले बीबीसी से बातचीत में नूपुर तलवार का कहना था, "मैं खुद को मानसिक रूप से फ़ैसले के लिए तैयार कर रही हूँ. लेकिन जब तक दोषियों को सज़ा नहीं मिल जाती, तब तक हमारे लिए यह केस बंद नहीं होगा.”

लेकिन आरुषि हत्या मामले में निगाहें अभियुक्त तलवार दंपत्ति पर ही हैं, जिन पर अपनी बेटी की हत्या करने, सुबूत मिटाने और जाँच को भटकाने के आरोप हैं.

दिल्ली के हौज़ खास इलाक़े में बेसमेंट में स्थित अपने क्लीनिक के छोटे से कमरे में बैठीं नूपुर कुछ देर पहले ही अपने मरीज़ों का इलाज करके आई थीं. उनके चेहरे पर थकावट साफ़ थी.

उनके पास डॉक्टरों वाला सफेद कोट पहनकर बैठे राजेश तलवार ने एक बार नूपुर की ओर देखा और बोले, ''मुझे न्यायालय पर पूरा विश्वास है. जो व्यक्ति इस मुक़दमे की सुनवाई कर रहा है, वह पढ़ा-लिखा है. वह सही और गलत के बीच में फ़ैसला देगा, न कि इसे मीडिया में किस तरह से पेश किया गया है, उस आधार पर.”

घटना

14 वर्ष की आरुषि की दिल्ली के पास स्थित नोएडा में हत्या कर दी गई थी. उनके सिर पर चोट थी और गले को रेता गया था. पहले हत्या का शक हेमराज पर गया था, लेकिन अगले दिन घर की छत पर हेमराज का शव पाया गया था.

आरुषि फ़ैसले पर तलवार दंपत्ति: हम तैयार हैं

16 मई 2008 यानी आरुषि हत्याकांड के दिन से अब तक काफ़ी लिखा गया है. आरुषि की मौत से कई ज़िंदगियाँ प्रभावित हुईं, ख़ासकर जो लोग आरुषि के क़रीब थे.

सभी को अदालत से न्याय की उम्मीद है, लेकिन न्याय के मायने शायद लोगों के लिए अलग-अलग हैं.

इस मामले की छाप दोनों दंत चिकित्सकों के चेहरों के अलावा कमरे पर भी नज़र आ रही थी. कमरे के एक कोने में बड़ी अलमारी में केस से जुड़े कागज़ात करीने से रखे थे– चाहे वो नुपुर और राजेश की विभिन्न याचिकाएँ हों, या फिर दूसरे अदालती काग़ज़ात. सामने चार भागों में बंटे एक टीवी स्क्रीन पर क्लीनिक के विभिन्न हिस्सों की सीसीटीवी फ़ुटेज दिखाई दे रही थी.

नूपुर कहती हैं, ''जो भी होगा, हम उसका सामना करेंगे. यह हमारे लिए मुश्किल वक़्त है. हमारे वकीलों का कहना है कि हम रिहा हो जाएंगे क्योंकि हमारे ख़िलाफ़ कोई सुबूत नहीं है.'' राजेश को अदालत से ''न्याय की उम्मीद है''.

नूपुर और राजेश के भीतर क्या चल रहा है, इसका अंदाज़ा नूपुर के एक वाक्य से लगता है, जब उन्होंने कहा, ''इस देश में हर वक़्त लोगों को फंसाया जाता है. हम पहले व्यक्ति नहीं होंगे. हम आख़िरी व्यक्ति नहीं होंगे. हम इतने ख़ास लोग नहीं हैं कि हम बच जाएंगे.''

‘हमारी आरु’

"जिस तरह से पिछले साढ़े पाँच वर्षों में13 साल की बच्ची आरु का चित्रण किया गया है, मैं उससे शर्मिंदा हूँ."

-आरुषि की दोस्त विदुषी

आरुषि केस से हज़ारों आम लोगों की भावनाएँ जुड़ी हैं, इसलिए क्योंकि आरुषि उनकी बेटी भी हो सकती थी. लेकिन आरुषि को जानने वालों को ख़ासकर इस फ़ैसले का इंतज़ार है.

विदुषी दुर्रानी ऐमिटी स्कूल से बायोटेक में बीटेक कर रही हैं और वो आरुषि को बचपन से जानती थीं. शायद ही ऐसा कोई दिन गुज़रा हो जब दोनों नहीं मिलते थे. डांस सीखने, साइकिल चलाने से लेकर खेलने तक दोनों हमेशा साथ रहते थे.

आरुषि को छोटी बहन मानने वाली और उनसे कुछ महीने बड़ी विदुषी उम्मीद के साथ कहती हैं, “इस बार आरु के साथ सही न्याय होगा. उसकी मौत के बाद मेरे लिए ज़िंदगी एक नई शुरुआत थी. आरुषि के साथ वह पुरानी ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत थी.”

आरुषि की एक दूसरी दोस्त फ़िज़ा बैंगलोर में डिज़ाइन की पढ़ाई कर रही हैं. वो व्यवस्था से बेहद नाराज़ हैं और मानती हैं कि नूपुर और राजेश तलवार को अदालत में अपनी बात रखने का मौक़ा ठीक से नहीं मिला.

अपने जीवन पर आरुषि की हत्या का असर पड़ने पर वो कहती हैं, ''ये घटना मेरे घर से कुछ दूर हुई थी. मैं डर गई थी. मुझे लगा कि ये तो किसी के साथ भी हो सकता है और फिर मेरे मामले में भी जाँच एजेंसियाँ, मीडिया वैसा ही रुख़ अपनाएंगी जैसा कि आरुषि के साथ हुआ. मुझे लगता है कि समाज ने इससे कुछ सीख नहीं ली है.''

फ़िज़ा की मां मासूमा रानलवी बताती हैं कि हत्या के बाद फ़िज़ा बहुत डर गई थीं और लोग उनसे आरुषि और उनके मां-बाप के बारे में कई सवाल पूछते थे जिससे वो नाराज़ हो जाती थीं. वो बताती हैं, “घटना के कुछ समय बाद तक जब भी टीवी पर आरुषि के बारे में खबर आती थी, हम टीवी बंद कर देते थे.”

मीडिया की भूमिका

आरुषि फ़ैसले पर तलवार दंपत्ति: हम तैयार हैंमीडिया के लिए आरुषि और हेमराज हत्याकांड एक बड़ी कहानी थी और पिछले साढ़े पाँच सालों में इस बारे में काफ़ी कुछ लिखा गया, लेकिन एक विचार ये भी है कि मीडिया में जिस तरह रिपोर्टिंग हुई उसमें संवेदनशीलता की काफ़ी ज़रूरत थी.

23 मई 2008 को मामले की  जाँच कर रहे उस वक़्त के वरिष्ठ पुलिस अफ़सर गुरदर्शन सिंह ने एक प्रेसवार्ता में राजेश तलवार के एक डॉक्टर के साथ कथित अनैतिक संबंध की बात की थी. साथ ही उन्होंने आरुषि के हेमराज के साथ कथित संबंधों का आरोप लगाया था. कई हलक़ों में उनके बयानों का काफ़ी आलोचना हुई.

टीवी, अख़बार हर जगह पुलिस के बयान चर्चा का विषय बने. गुरदर्शन सिंह अभी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं. अदालत के फ़ैसले के ठीक पहले उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कुछ भी कहने से इंकार किया और कहा, “मैं इस बारे में कुछ भी बात नहीं करना चाहता. मैं ज़िंदगी में आगे बढ़ गया हूँ. मैं अब रिटायर हो गया हूँ.”

जाँच एजेंसियों के बदलते बयान और मीडिया में कथित संबंधों पर बार-बार लिखे जाने पर आरुषि का परिवार और उनके नज़दीकी लोग काफ़ी नाराज़ हैं.

नूपुर तलवार के मुताबिक़ मीडिया के एक हिस्से ने उनके बारे में जो छवि बनाई उससे उनके केस को काफ़ी नुकसान पहुँचा है.

वो कहती हैं, “शायद हमारा चेहरा, आरुषि का चेहरा बहुत बिकता है, इसलिए कई बार बिना प्रमाणों के बातें छापी गईं जिससे हमारे केस को नुकसान पहुँचा.”

राजेश तलवार के अनुसार मीडिया ने 13 साल की बच्ची आरुषि का चरित्र हनन किया और इसके लिए किसी ने भी माफ़ी नहीं मांगी.

"अगर फ़ैसला हमारे पक्ष में जाता है तो मैं सभी से अनुरोध करूँगी कि आप हमें कुछ दिनों के लिए अकेला छोड़ दें ताकि मैं अपनी बच्ची के लिए दुख व्यक्त कर पाऊँ. अगर नहीं, तो ये लड़ाई जारी रहेगी."

-अभियुक्त नूपुर तलवार

तलवार दंपत्ति पर फैसले में बार-बार अदालती देरी के आरोपों की ज़िम्मेदारी भी राजेश तलवार मीडिया पर डालते हैं. उनके मुताबिक़ ऐसे गिने चुने ही मामले हैं जिनका इतनी तेज़ी से निपटारा हुआ और उनकी नेगेटिव छवि मीडिया की देन है.

नाराज़गी

राजेश के अनुसार वो दुकान पर एक टूथब्रश लेने भी नहीं जा पाते क्योंकि लोग उन्हें घूरना शुरू कर देते हैं.

मीडिया में आरुषि और हेमराज के संबंधों पर लिखे जाने पर फ़िज़ा, मासूमा और विदुषी भी बहुत नाराज़ हैं.

विदुषी कहती हैं, “जिस तरह से पिछले साढ़े पाँच वर्षों में 13 साल की बच्ची आरु का चित्रण किया गया है, मैं उससे शर्मिंदा हूँ. उसके बाद इतनी गंदी बातें सुनकर मुझे बहुत बुरा लगता है. लोगों ने इस पर सवाल क्यों नहीं उठाए?”

मीडिया की ऑनलाइन अंग्रेज़ी पत्रिका द हूट की संपादक सेवंती नाइनन मीडिया रिपोर्टों की समीक्षा की ज़िम्मेदारी संस्थाओं के वरिष्ठ लोगों पर डालती हैं.

वो कहती हैं, “जिस तरह से ये चीज़ें लगातार हुईं, परिवार की निजता में हस्तक्षेप हुआ.”

जांच एजेंसियों के लिए भी ये आसान केस नहीं था, ख़ासकर जिस तरह हत्या की जगह पर लोगों को आने-जाने दिया गया.

लेकिन सोमवार 25 नवंबर इस  फ़ैसले का दिन है. तो फ़ैसला पक्ष या विपक्ष में जाने पर तलवार दंपत्ति की क्या प्रतिक्रिया होगी?

नूपुर कहती हैं, “अगर फ़ैसला हमारे पक्ष में जाता है तो मैं सभी से अनुरोध करूँगी कि आप हमें कुछ दिनों के लिए अकेला छोड़ दें ताकि मैं अपनी बच्ची के लिए दुख व्यक्त कर पाऊँ. अगर नहीं, तो यह लड़ाई जारी रहेगी.”

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