1 अगर आप फर्स्ट टाइम वोटर हैं तो कॉलेज या यूनिवर्सिटी लेवल पर अच्छे कैडिडेट के फेवर में ग्रुप कैम्पेनिंग में हिस्सा लेंगें?

हां-64, नहीं- 15, टाइम नहीं है-14, कह नहीं सकते-7 फीसदी

सर्वे के नतीजे बताते हैं कि एक एवरेज यूथ वोटर और फर्स्ट टाइम वोटर की थिंकिंग अलग-अलग है. चूंकि हमारे सर्वे में भाग लेने वालों में से एक तिहाई से ज्यादा यूथ फर्स्ट टाइम वोटर हैं, इसलिए ये खुलासा भी कम इंटरेस्टिंग नहीं है. मसलन 64 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर्स ने कहा कि हां, वो अच्छे कैंडिडेट को जिताने के लिए कॉलेज लेवल पर ग्रुप कैम्पेन से जुडऩा पसंद करेंगे. वहीं जो यूथ फर्स्ट टाइम वोटर नहीं हैं, उनमें से महज 49 फीसदी ने कहा कि वो ग्रुप कैम्पेन से जुड़ेंगे. यानी ग्रुप कैम्पेन से जुडऩे के लिए एवरेज यूथ वोटर के मुकाबले फर्स्ट टाइम वोटर की तादाद 15 फीसदी ज्यादा है. वे ऐसी ऐक्टिविटीज में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना चाहते हैं.

 

दूसरी ओर फर्स्ट टाइम वोटर्स में जहां 15 फीसदी ने ऐसे ग्रुप कैम्पेन में जुडऩे से मना कर दिया, वहीं नॉन फर्स्ट टाइम यूथ वोटर्स में मना करने वालों की संख्या 25 फीसदी रही. इशारा साफ है कि फर्स्ट टाइम वोटर्स में इलेक्शन प्रोसेस से जुडऩे का उत्साह दूसरे यूथ की तुलना में ज्यादा है. सिर्फ 14 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर्स ने कहा कि उनके पास इसके लिए टाइम नहीं है.

2. क्या आप अपनी मर्जी से वोट डालेंगे या फिर इसके लिए फैमिली, फ्रेड्स या सोसायटी के लोगों से ओपिनियन लेंगे?

क.अपनी मर्जी से डालेंगे-82 फीसदी

ख.फैमिली-फ्रेंड्स की राय लेंगे- 15

ग.कह नहीं सकते-3

अगर आप सोच रहे हैं फर्स्ट टाइम वोटर्स इंडिपेंडेट डिसिजन लेने से घबराते हैं और वो बड़ों की सलाह लेकर वोट डालेंगे, तो आप गलत सोच रहे हैं. 82 फीसदी की एक बड़ी तादाद यानी तीन चौथाई से भी ज्यादा फर्स्ट टाइम वोटर्स ने कहा कि वो वोट अपनी मर्जी से ही डालेंगे. ये फिगर बताता है कि पहली बार वोटिंग के जरिए डेमोक्रेसी में पार्टिसिपेट करने जा रहे यूथ खुद में कितने कॉन्फिडेंट हैं. उसे अच्छे- बुरे कैंडिडेट के बीच फर्क करने की तमीज पर भरोसा है. सिर्फ 15 फीसदी ने कहा कि वे फैमिली या फ्रेंड्स की ओपिनियन लेंगे. बहुत छोटी तादाद यानी महज 3 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर्स डिलेमा में दिखे.

3. क्या आपका कोई पॉलिटिकल एम्बिशन है और कभी इलेक्शन लडक़र देशसेवा करना चाहेंगे?

क.हां- 48 फीसदी

ख.नहीं- 22

ग.मुझे पॉलिटिक्स से नफरत है- 14 फीसदी

घ.कह नहीं सकते- 16 फीसदी

कौन कहता है कि आज यूथ का पॉलिटिक्स से मोहभंग हो गया है और जवान खून यहां कदम नहीं रखना चाहता. सर्वे के नतीजे इसकी गवाही दे रहे हैं. लगभग आधे फस्ट टाइम वोटर्स यानी 48 फीसदी ने कहा कि मौका मिला तो उन्हें किसी दिन चुनाव लडक़र पॉलिटिकल सिस्टम से जुडऩे में खुशी होगी. सिर्फ 22 फीसदी ने पॉलिटिक्स में इंट्रेस्ट नहीं दिखाया.

हालांकि सर्वे में पार्टिसिपेट करने वाले 16 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर्स इस मामले में अनडिसाइडेड थे. सो कंप्लीट पिक्चर यह बनती है कि फस्र्ट टाइम वोटर्स आज नहीं तो कल, देश की तस्वीर बदलने के लिए पॉलिटिक्स ज्वाइन करने को तैयार हैं.राजनीति से नफरत नहीं: दूसरे यूथ की तरह फस्र्ट टाइम वोटर्स भी राजनीति से नफरत नहीं करते. सिर्फ 14 फीसदी ने कहा कि उन्हें पॉलिटिक्स से नफरत है.

4. क्या अपने इलाके के कैंडिडेट के बारे में आपको सभी डिटेल पता हैं?

क.हां- 43 फीसदी

ख.नहीं- 32 फीसदी

ग.मालूम नहीं, जानकरी कैसे पता करें- 25

इस सवाल के हमें जो जवाब मिले, वे भी चौंकाने वाले हैं. एक तिहाई से ज्यादा यानी 43 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर्स ने दावा किया कि उन्हें अपने एरिया के कैंडिडेट की पूरी डिटेल पता हैं. इससे पता चलता है कि डेमोक्रेसी में पहली बार हाथ आजमाने जा रहे ये यूथ पॉलिटिकली काफी अवेयर हैं. उन्हें पता है कि कौन कैंडिडेट क्या कर रहा है, कौन कितना काबिल है और कौन सिर्फ झूठे वादे करता है.

फर्स्ट टाइम वोटर्स की ये नॉलेज हमारी डेमोक्रेसी के लिए एक पॉजिटिव साइन है क्योंकि वे नाप-तोल कर ही किसी कैंडिडेट को वोट डालने वाले हैं. वैसे एक तिहाई को कैंडिडेट की डिटेल्स पता नहीं थी और एक चौथाई को ये भी पता नहीं था कि इसे कहां से और कैसे जाना जाए. मोटे तौर पर आधे फस्र्ट टाइम वोटर्स को कैंडिडेट की डिटेल्स पता नहीं है. जाहिर है, चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट्स के लिए ये खतरे की घंटी है कि कैसे वे अपनी सारी इन्फॉमेशन इन फस्र्ट टाइम वोटर्स तक पहुंचाए. क्योंकि डिटेल जाने बगैर ये यूथ उनको वोट नहीं करने वाले.

5. क्या पुराने कैंडिडेट की तुलना में आप किसी यंग कैंडिडेट को चुनना पसंद करेंगे?

क.हां- 71 फीसदी

ख.नहीं- 8 फीसदी

ग.कह नहीं सकते- 5

घ.इससे फर्क नहीं पड़ता- 16

यूथ पावर को पहचानते हुए आज हर पॉलिटिकल पार्टी यंग फेसेज को आगे बढ़ा रही है. सर्वे के नतीजे भी बताते हैं कि वो गलत नहीं सोच रहे हैं. फस्र्ट टाइम वोटर्स की बड़ी संख्या यानी 71 फीसदी ने कहा कि वे यंग कैंडिडेट को चुनना ज्यादा पसंद करेंगे. सीन क्लियर है. यंग वोटर्स खुद को नए जमाने की सोच वाले पढ़े-लिखे यंग कैंडिडेट से ज्यादा रिलेट कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि अगर कैंडिडेट भी उनकी तरह यंग होगा, तो वह पुराने ढर्रे से हटकर बदलाव की एक नया बयार लाएगा.

हालांकि 16 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर्स की एक तादाद ऐसी भी है, जिनको यंग या ओल्ड कैंडिडेट से कोई फर्क नहीं पड़ता. ये अच्छा काम करने वाले पुराने कैंडिडेट्स के लिए राहत की बात हो सकती है. पुराने कैंडिडेट्स का ट्रैक रिकॉर्ड भी फर्स्ट टाइम वोटर्स के लिए काफी मायने रखता है.

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