मोर्गन स्टेनली ने जिन्हें "द फ्रेजाइल फ़ाइव" (पांच कमज़ोर अर्थव्यवस्थाएं) कहा है, वो देश तब सबसे ज़्यादा संकट में होंगे जब फ़ेड रिजर्व अर्थव्यवस्था में पैसा डालना बंद कर देगा.

यह पांच देश हैं इंडोनेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, ब्राज़ील, तुर्की और भारत.

इन पांचों में क्या बात समान है? इनमें समानता यह है कि इन सबके चालू खाते का घाटा, जो व्यापार में अंतर को नापता है, बहुत ज़्यादा है.

इसका मतलब यह हुआ कि यह देश विदेशों से होने वाले वित्तपोषण पर निर्भर हैं.

वापसी

ये देश बाहर से आने वाले पैसे का दिल खोलकर स्वागत करते रहे और अब जबकि आसानी से मिलने वाले पैसे का दौर ख़त्म हो रहा है,  निवेशक भी वापस जा रहे हैं.

मैंने पहले भी  मुद्रा की इस विख्यात वापसी के बारे में लिखा है.

इसके अलावा विदेशी निवेशक राजनीतिक खतरों को लेकर भी आशंकित हैं क्योंकि इन पांचों देशों में अगले साल चुनाव होने वाले हैं. इससे अनिश्चितता बढ़ती है.

शायद राहत की बात यह है कि इन अर्थव्यवस्थाओं के पास इस आसानी से उपलब्ध धन की अपरिहार्य वापसी से निपटने के लिए कुछ समय है.

अपरिहार्य

(भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाएं फ़ेड रिज़र्व के फ़ैसले से काफी हद तक प्रभावित होंगी.)

पहले के संकटों के विपरीत, जब पैसा तेजी से बाहर चला गया था, इस बार पैसे पर "अचानक विराम" नहीं लग रहा.

आखिर आर्थिक संकट को शुरु हुआ पांच साल हो गए हैं और  फ़ेड रिज़र्व अर्थव्यवस्था में हमेशा पैसा नहीं डाल सकता.

तो आसानी से आने वाले पैसे का वक़्त अगले महीने भी ख़त्म हो सकता है, दिसंबर में भी या शायद जनवरी में जब फ़ेड रिज़र्व के चेयरमैन बेन बर्नान्के अपना पद छोड़ेंगे.

अब अहम सवाल यह है कि क्या बाकी दुनिया को अपनी अर्थव्यवस्थाओं के इस अपरिहार्य के लिए तैयार होने का पर्याप्त समय मिला है.

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