अरविंद केजरीवाल का यह भी कहना है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए यह विधेयक ज़रूरी है. यदि जनलोकपाल विधेयक सदन में पेश किया जाता है तो क्या स्थिति बनेगी? संवैधानिक बाध्यताओं और विपक्षी दलों के विरोध के बीच विधेयक के पेश होने की सूरत में उन संभावनाओं पर एक नज़र जो घटित हो सकती हैं-

पहली स्थिति: सभी में आम राय बन जाए

के वी प्रसाद, एसोसिएट एडिटर, द ट्रिब्यून

सारी पार्टियों के बीच अगर एक आम राय बन जाती है और सरकार कुछ बिंदुओं पर संशोधन के लिए तैयार हो जाती है तो ये विधेयक पारित हो जाएगा.

सी एस धर्माधिकारी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुंबई उच्च न्यायालय

यह विधेयक आम सहमति से तो पारित हो सकता है मगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया गया है और वह केंद्र शासित प्रदेश है. ऐसी सूरत में केंद्र सरकार की राय लेना दिल्ली सरकार के लिए संवैधानिक ज़िम्मेदारी है.

दूसरी स्थिति: आम सहमति न बने

के वी प्रसाद, एसोसिएट एडिटर, द ट्रिब्यून

अगर सरकार संशोधन के लिए तैयार नहीं होती है या बिल के स्वरूप में किसी भी तरह का बदलाव नहीं चाहती है तो उस सूरत में सरकार के सामने क्या विकल्प होगा?

सी एस धर्माधिकारी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुम्बई उच्च न्यायालय

अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के लोग चाहते हैं कि फिर से चुनाव हो जाएँ. उन्हें लगता है कि अगर ऐसा होता है तो उन्हें सहानुभूति मिलेगी और वो फिर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकते हैं.तीसरी स्थिति: विधेयक गिर जाए

जनलोकपाल बिलः 5 संभावनाओं पर एक नज़र

के वी प्रसाद, एसोसिएट एडिटर, द ट्रिब्यून

विपक्ष जो संशोधन चाह रहा है और सरकार यदि उसे नहीं मानती है तो ऐसी सूरत में सरकार विधेयक को वापस ले सकती है या फिर सरकार विधेयक को सदन में गिर जाने दे.

सरकार इस बहाने एक राजनीतिक संदेश देना चाहेगी कि वो जिस सूरत में इस विधेयक को पारित कराना चाह रही थी, दोनों प्रमुख दल इसके लिए तैयार नहीं हुए. सरकार ये भी सन्देश देना चाहेगी कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस भ्रष्टाचार के ख़ात्मे के पक्ष में नहीं हैं.

सी एस धर्माधिकारी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुम्बई उच्च न्यायालय

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है. इसलिए क़ानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन रहेंगे. अब यह मांग उठ रही है कि मुंबई को भी केंद्र प्रशासित कर देना चाहिए.

तब फिर ये सारी बातें मुंबई पर भी लागू हो जाएंगी क्योंकि वह महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा है. विधेयक सदन में गिरता है या पारित नहीं हो पाता है तो केजरीवाल के लिए चुनाव में ही जाना बेहतर विकल्प लगेगा.

चौथी स्थिति: केजरीवाल इस्तीफ़ा दे दें

के वी प्रसाद, एसोसिएट एडिटर, द ट्रिब्यून

अरविंद केजरीवाल ये कहते रहे हैं कि वो जनलोकपाल विधेयक के मुद्दे पर इस्तीफ़ा भी दे सकते हैं. उन्होंने जनता से पहले ही कह दिया है कि अगर उनकी सरकार इस बिल को पारित नहीं करा पाती है तो वो मुख्यमंत्री के तौर पर बने नहीं रह सकते.

सी एस धर्माधिकारी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुम्बई उच्च न्यायालय

अब आप गुजरात में किसी दूसरे मंत्री का नाम बता दीजिये. यही दिल्ली का भी हाल है. सत्ता का केंद्र सिर्फ़ एक ही व्यक्ति होगा और हम किसी और से चर्चा भी न करें तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी ही और राज्य को चलाना मुश्किल हो जाएगा.

मेरा अनुभव है कि अरविंद केजरीवाल संवाद पर विश्वास नहीं करते हैं. आपसी संवाद में विश्वास नहीं होगा तो लोकतंत्र नहीं चल सकता.

पांचवीं स्थिति: उपराज्यपाल की भूमिका

के वी प्रसाद, एसोसिएट एडिटर, द ट्रिब्यून

अगर विधेयक पारित हो भी जाता है, तब भी ये प्रश्न पहले से ही है कि विधेयक को पेश करने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति की ज़रूरत है. देखना ये होगा कि अगर विधेयक उपराज्यपाल के पास जाता है तो वो इस पर किस तरह का क़दम उठाते हैं.

सी एस धर्माधिकारी, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुम्बई उच्च न्यायालय

हमारा संघीय ढांचा है. हम इसे भारत संघ कहते हैं. एक मज़बूत केंद्र सरकार और साथ में राज्य सरकार. जब कभी कोई क़ानून केंद्र सरकार बनाती है तो उसके मुताबिक़ राज्य भी वैसा क़ानून बनाते हैं.

राज्यों को केंद्र से इजाज़त लेनी पड़ती है. संघीय ढांचे से तालमेल रहे इसलिए हमने संविधान में इसका प्रावधान किया है. ये इसलिए भी ज़रूरी है कि इससे विवाद न हो कि राज्य अलग दिशा में जाएँ और केंद्र किसी अलग दिशा में जाए.

इसे हम संवैधानिक अनुशासन मानते हैं. लोकतंत्र में ये ज़रूरी भी है. कल मान लीजिये अगर अपनी विधानसभा में कोई राज्य यह प्रस्ताव लाए कि वो अलग राष्ट्र है तो क्या ये सही होगा?

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