-झारखंड में भी इंसेफलाइटिस का खतरा

-डॉक्टर कर रहे रिपोर्ट आने का इंतजार

-जांच के लिए भेजे गए हैं सैंपल

-बिहार में सैकड़ों बच्चों की हुई थी मौत

RANCHI: इंसेफलाइटिस के भ् संदिग्ध बच्चे फ् अप्रैल से अब तक रिम्स में इलाज कराने के लिए पहुंच चुके हैं। इनकी उम्र एक से 8 साल के बीच है। इनका सैंपल जांच के लिए भेजा गया है, ताकि यह पता चल सके कि इन्हें इंसेफलाइटिस है या नहीं। डॉक्टरों ने बताया कि ये बच्चे रांची समेत सिमडेगा, लातेहार, बुंडू व दुमका से इलाज कराने रिम्स आए हैं। इतनी संख्या में मरीज बच्चों के आने से डॉक्टरों की भी चिंता बढ़ गई है। आशंका है कि इंसेफलाइटिस का प्रकोप है।

ख्-8 साल के बच्चे चपेट में

इंसेफलाइटिस (दिमागी बुखार) बच्चों को ही होता है, जिसका असर केवल गर्दन के ऊपरी हिस्से में ही होता है। इतना ही नहीं, इस बीमारी की चपेट में सबसे ज्यादा दो साल से आठ साल के बच्चे आ रहे हैं। डॉक्टर की मानें, तो इस बीमारी का लक्षण तुरंत नहीं पता चल पाता है। वहीं, यदि टाइम से मरीज का इलाज नहीं किया जाता है, तो उसकी मौत भी हो सकती है। जांच के बाद ही यह खुलासा हो पाता है कि यह केवल इंसेफलाइटिस है या जापानी इंसेफलाइटिस।

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बिहार में क्भ्0 बच्चों की हुई थी मौत

दिमागी बुखार (इंसेफेलाइटिस) ने बिहार में काफी कहर बरपाया था। ख्0क्ब् में बिहार में क्भ्0 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। वहीं सैकड़ों का हास्पिटल में इलाज किया गया था। बीमारी से बचाने के लिए बच्चों को इंसेफलाइटिस का टीका भी लगाया गया था। इसके बाद बिहार में इंसेफलाइटिस का कहर कम हुआ।

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क्भ् साल तक के बच्चों को टीका

राजधानी और आसपास के इलाकों में जापानी इंसेफलाइटिस (जेइ) से निपटने के लिए जिला टास्क फोर्स तैयार किया गया है, जो एक साल से लेकर क्भ् साल तक के बच्चों को जेइ का टीका लगाएगा। यह टीका जिला प्रतिरक्षण इकाई में आ चुका है। इसके लिए सिविल सर्जन ने मेडिकल आफिसरों को भी निर्देश दिया है। आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से हर इलाके में बच्चों को यह टीका लगाया जाएगा।