- अब जेल में नया साल मनाएंगे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री

- सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने सुनाया फैसला, मिश्र समेत सात आरोपी बरी

- देवघर कोषागार से 89.4 लाख रुपये अवैध निकासी का मामला

- 21 साल बाद फैसला

मामले से जुड़ी सारी जानकारी

प्राथमिकी : 27 जनवरी 1996

सीबीआइ ने दर्ज की प्राथमिकी : 27 मार्च 1996

अंतरिम चार्जशीट : 28 अक्टूबर 97

आरोपियों की संख्या : 38

सुनवाई के दौरान मौत : 11

सरकारी गवाह बने : दो

निर्णय पूर्व दोष स्वीकार : दो

ट्रायल के आरोपी : 22

आरोप गठन :29 मई 2005

कहीं खुशी कहीं गम का नजारा

शनिवार की सुबह कोर्ट खुलते ही लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र सहित इस मामले के कुल 22 आरोपी व उनके समर्थकों की भीड़ जुट गई थी। कोर्ट ने अपराहन तीन बजे फैसला सुनाने की बात कही। एक बार फिर दिन के दो बजे के बाद से कोर्ट में भीड लगनी शुरू हो गई। पूरा कोर्ट परिसर खचाखच भर गया था। कोर्ट का फैसला आने के साथ ही कहीं खुशी कहीं गम का नजारा दिखने लगा। चारा घोटाले के इस मामले को लेकर सीबीआइ ने चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 64ए/96 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। दोनों पक्षों की ओर से 13 दिसंबर को सुनवाई पूरी हुई थी। इसके बाद अदालत ने फैसले की तिथि 23 दिसंबर निर्धारित की थी। फैसले के दौरान सभी 22 आरोपियों को सशरीर न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया गया था। लालू प्रसाद व जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य आरोपी शुक्रवार की शाम रांची पहुंच गए थे। लालू के साथ उनके पुत्र तेजस्वी यादव भी रांची आए हैं।

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क्या था पूरा मामला : आवंटन 4.7 लाख का, निकाले 89.4 लाख

पशुओं के लिए दवा, चारा और अस्पताल के लिए उपकरण मद में कुल 4.7 लाख रुपये का आवंटन पशुपालन विभाग देवघर को दिया गया था। इसके विरुद्ध जाली आवंटन पत्र तैयार कर घोटालेबाजों ने फर्जी विपत्र के सहारे अवैध रूप से 89 लाख चार हजार 413 रुपये 15 पैसे की निकासी कर ली। सीबीआइ ने देवघर कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले में दर्ज चारा घोटाला कांड संख्या आरसी 64ए/96 में दायर चार्जशीट में इसका उल्लेख किया है।

 

जाली दस्तावेज तैयार कर खपत दिखाई

काले कारनामे को अंजाम देने के लिए आरोपियों ने आठ जाली आवंटन पत्र एवं जाली आपूर्ति आदेश उस समय के नामी पशु दवा निर्माता कंपनियों के नाम पर तैयार कर अभियुक्त लोक सेवकों की वित्तीय शक्ति के मुताबिक विपत्रों को विभाजित कर पारित किया गया। सीबीआइ की जांच में यह बात भी सामने आई है कि जिन पशु दवाओं की आपूर्ति दिखाई गई वह न तो बनाई गई थी और न ही बेची गई थी। इसी तरह से जाली दस्तावेज तैयार कर खपत दिखाई गई।

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दो चार्जशीट दाखिल हुई थी

देवघर कोषागार मामले में 38 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में दो चार्जशीट दाखिल की गई थी। पहली चार्जशीट 27 अक्टूबर 1997 को हुई थी। सीबीआइ के इंस्पेक्टर सह अनुसंधान पदाधिकारी नागेंद्र प्रसाद ने 34 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। दूसरी चार्जशीट 25 अगस्त 2004 को हुई थी। इसमें चार आरोपियों के नाम शामिल थे। कुल 38 आरोपियों में न्यायालय में ट्रायल के दौरान 11 का निधन हो गया। वहीं सीबीआइ ने तीन लोगों को सरकारी गवाह बना लिया। इसके अलावा दो आरोपियों ने फैसला सुनाए जाने के पूर्व दोष स्वीकार कर लिया।

 

ये हैं आरोपी  :

राजनेता :

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री व प्रतिपक्ष के तत्कालीन नेता डॉ। जगन्नाथ मिश्र, पूर्व सांसद व पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा, पूर्व सांसद सह पूर्व मंत्री डॉ। आरके राणा, पूर्व पशुपालन मंत्री विद्या सागर निषाद व पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष धु्रव भगत का नाम शामिल है।

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आइएएस :

चारा घोटाले में आइएएस अधिकारियों में पूर्व पशुपालन सचिव बेक जुलियस, महेश प्रसाद, तत्कालीन वित्त आयुक्त फूलचंद सिंह, तत्कालीन आयकर आयुक्त अधीप चंद्र चौधरी शामिल हैं।

 

पशुपालन अधिकारी व आपूर्तिकर्ता :

डॉ। कृष्ण कुमार, राजाराम जोशी, त्रिपुरारी मोहन प्रसाद, सुनील कुमार सिन्हा, सुशील कुमार सिन्हा, सुनील गांधी, संजय कुमार अग्रवाल, ज्योति कुमार झा, सरस्वती चंद्र, वेणु झा, सुबीर भट्टाचार्जी।

 

तीन बने सरकारी गवाह :

राघवेंद्र किशोर दास, शिव कुमार पटवारी और शैलेश प्रसाद शर्मा।

 

दो ने किया दोष स्वीकार :

चारा घोटाले के दो आरोपी प्रमोद कुमार जायसवाल और सुशील कुमार झा ने ट्रायल के दौरान दोष स्वीकार कर लिया था। इसके बाद दोनों को वर्ष 2007 में सात-सात वर्ष की सजा सुनाई जा चुकी है।

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इन आरोपियों का हो चुका निधन :

शेषमुनी राम, श्याम बिहारी सिन्हा, राम राज राम, भोलाराम तुफानी, चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, राजो सिंह, ब्रज भूषण प्रसाद, ओम प्रकाश गुप्ता, महेंद्र प्रसाद, के अरूमुगम।

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