RANCHI: सिटी के न्यू पुंदाग खेत मोहल्ले में एक सौ से भी ज्यादा लोगों के पास खाने को कुछ भी नहीं बचा है। वे इतने दिनों से किसी प्रकार ब्रेड, मूरी, चूड़ा आदि खाकर रह रहे थे। अब आलम यह है कि इस इलाके के रहने वालों के पास कुछ भी नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे भी हैं, जिनके खाने का कोई इंतजाम नहीं है। दरअसल, सिटी से थोड़ी दूरी पर होने के कारण इस मोहल्ले पर किसी समाजसेवी की पहुंच ही नहीं है। यह नया मोहल्ला है, जिसमें रहने वाले अधिकतर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।

रोज कमाने-खाने वाले अधिक

इस मोहल्ले में हर दिन कमाने-खाने वालों की संख्या बहुतायत है। लेबर क्लास से बिलोंग करने वाले लोगों का काम पूरी तरह से ठप है। इस वजह से पिछले दस दिनों से घर पर जो कुछ बचाकर रखा था, सब खत्म हो चला है। कहीं काम भी नहीं है, जिस वजह से पैसे भी नहीं मिल रहे हैं। स्थानीय दुकानदार अभी किसी को भी उधार में सामान देने को तैयार नहीं हैं।

कंपनी बंद हुई, तो बढ़ी परेशानी

न्यू पुंदाग के एक घर पर करीब बीस लोग रहते हैं, जो एक कॉस्मेटिक्स एंड एग्रो प्रोडक्ट कंपनी के लिए सेल्स का काम करते थे। इन सभी को कंपनी ने साफ कह दिया है कि अपनी व्यवस्था खुद करें। चूंकि इन्हें प्रोडक्ट बेचने पर इंसेंटिव मिलता था, इसलिए अभी एक पैसा नहीं दिया जा रहा है। इस घर पर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड के 20 युवा हैं। इन्हें कुछ दिनों पहले एक समाजसेवी संगठन की ओर से चूड़ा और मूरी दिया गया था। इसे ही पानी में डालकर खाते हुए 7 दिन गुजार दिया। ये अपने घरों को भी नहीं जा सकते। युवाओं की टोली में शामिल अकरम रजा और परवेज अशरफ ने कहा कि उनकी कंपनी उन्हें सैलरी नहीं देती, बल्कि उन्हें कमीशन पर रखा जाता है। प्रोडक्ट बिक नहीं रहा है, इसलिए एक पैसा नहीं मिल रहा है। अब उनके सामने भुखमरी का संकट उत्पन्न हो गया है। लॉक डाउन के कारण ये कहीं जा भफी नहीं पा रहे हैं।