एक ऐसा इलाका जहां सरकारी मदद नहीं पहुंची. मगर वहां के रहने वालों ने एक ऐसा कारनाम कर डाला जिससे उन्होंने सबको अपनी तरफ अट्रैक्ट कर लिया है. जी हां साउथ मेघालय के नोंगरियात गांव वहां के रहने वाले लोगों ने पेड़ के तनों से पुल तैयार किया है. इस पुल की मदद से अब वे लोग वहां पड़ने वाली नदी को पार कर रहे हैं.  

12-15 साल में तैयार होता है यह ब्रिज

इस तरह के पुल को तैयार करने में गांव के लोग किसी भी तरह की गवर्नमेंट सपोर्ट नहीं ले रहे हैं. जब आप इन पुलों को बनाने की तकनीक के बारे में समझेंगे तो आपको लगेगा कि इन गांव वालों ने बड़े-बड़े आर्किटेक को भी पीछे छोड़ दिया है. इन पुलों को बनाने में लगभग 15 साल का लंबा समय लग जाता है. पुल बनाने के लिए रबर के पेड़ की जड़ों को यूज किया जाता है. ये पेड़ की जड़ें इसके तने से भी ऊपर होती हैं.

इन पुलों को बनाने में सुपारी के पेड़ों का भी यूज किया जाता है. इसमें सुपारी के पेड़ों के खोखले तने लगाए जाते हैं. रबर के पेड़ों की मुलायम जड़ों को सुपारी के पेड़ के तने से लपेटकर नदी के आर-पार पहुंचाया जाता है. फिर रबर की जड़ों को नदी के आर-पार मिट्टी में जमने का भरपूर समय दिया जाता है. जिसके बाद ये रबर की जड़ें मजबूती से सुपारी के तने को जकड़ लेती हैं.

नदियों पर बुना 'Livining Foot Bridge' का जाल

लिविंग फुट ब्रिज मेघालय के साउथ पार्ट में देखने को अधिक मिलते हैं. यहां की नदियों पर ढलानों पर इस तरह के पुलों का जाल बुना हुआ है. इन पुलों की लंबाई 50 मीटर तक होती है. ये पुल इतने मजबूत होते हैं कि मानसून के समय तेज धार में भी इन पर चलकर आसानी से नदियों को पार किया जा सकता है.

National News inextlive from India News Desk