सस्ता होने के कारण फुटबॉल में ज्यादा आते हैं गरीब परिवार के बच्चे

फुटबॉल में नहीं है आईपीएल जैसा कोई प्लेटफार्म

ALLAHABAD: क्रिकेट और बैडमिंटन जैसे महंगे व नेम-फेम वाले खेलों की तरफ जिले के यंगिस्तान का रुझान अधिक है। फुटबॉल के बजाए क्रिकेट की तरफ बढ़ती युवाओं की ललक के पीछे आईपीएल एक बड़ी वजह है। आईपीएल मैचों के कारण नए अच्छे क्रिकेटरों को कॅरियर का एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म व नाम दोनों ही कम समय में मिल जाते हैं। जबकि फुटबाल में ऐसा नहीं है। खिलाडि़यों की मानें तो फुटबाल खेल सस्ता होने की वजह से इसमें ज्यादातर गरीब परिवार के बच्चे ही ज्यादा किस्मत आजमाते हैं। कड़ी मेहनत के बावजूद एक-दो फुटबाल खिलाडि़यों को ही वह भी बड़ी मुश्किल में मौका मिल पाता है।

कोट--सभी की फोटो है

मेरे पिता जी मुंडेरा में सब्जी की दुकान लगाते हैं। आज युवाओं को क्रिकेट व बैडमिंटन जैसे खेलों में कॅरियर की संभावनाएं अधिक दिखाई देती हैं। फुटबाल कम खर्च और ज्यादा मेहनत वाला गेम है। इसमें गरीब परिवार के हम जैसे बच्चे, वह भी नाम मात्र के ही आते हैं।

अंश सोनकर, फुटबॉल प्रैक्टिशनर, अग्रसेन इंटर कॉलेज ग्राउंड

जिम्मेदारों द्वारा फुटबाल के खिलाडि़यों की उपेक्षा अधिक है। अच्छा प्रदर्शन करने वालों का भी चयन जल्दी यूपी टीम में नहीं हो पाता। क्रिकेट जैसे अन्य खेलों में ऐसा नहीं है। वहां बहुत जल्दी खिलाडि़यों को ग्रोथ मिलती है।

सचिन चंद्रा, फुटबाल प्रैक्टिशनर, अग्रसेन इंटर कॉलेज ग्राउंड

आज के दौर में फुटबाल गेम में वही बच्चे या युवा आते हैं जिनके परिवार के लोग क्रिकेट, बैडमिंटन, हॉकी, टेनिस जैसे महंगे गेम का खर्च नहीं उठा पाते। अन्य खेलों की अपेक्षा फुटबाल प्लेयर्स की ग्रोथ काफी धीमी होती है। फुटबाल की प्रैक्टिस के साथ मैं खुद प्राइवेट जॉब करता हूं। पिताजी टैक्सी चलाते हैं।

-शिव कुमार, फुटबाल प्रैक्टिशनर अग्रसेन इंटर कॉलेज ग्राउंड

फुटबाल में आईपीएल जैसी कोई व्यवस्था तो है नहीं। इस वजह से युवाओं का रुझान फुटबाल की तरह कम है। गिने-चुने जो युवा फुटबाल में कॅरियर बनाने के लिए लगे हैं, उन्हें मौका नहीं मिल पा रहा। फुटबाल खिलाडि़यों की सरकार व अन्य जिम्मेदारों के जरिए उपेक्षा भी अधिक है।

-शानू कुमार, फुटबाल प्रैक्टिश्नर अग्रसेन इंटर कॉलेज ग्राउंड

फुटबाल गरीबों का खेल है। ज्यादा महंगा न होने के कारण इसमें गरीब बच्चे ही आते हैं। मेरे पिताजी कपड़े प्रेस करके परिवार चलाते हैं। फिर भी, मेरे लिए वे बहुत कुछ करते हैं। फुटबाल के खिलाडि़यों को सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। लड़कियों को तो इस मामले में और ज्यादा परेशानी होती है।

-पूजा सोनकर, फुटबाल प्रैक्टिश्नर कैंटोमेंट एरिया सदर ग्राउंड