- जांचों को खुर्द-बुर्द करने में एजेंसियां के साथ शासन का भी बुरा हाल

- ईओडब्ल्यू ने की जांच, बाल विकास पुष्टाहार ने दर्ज कराया मुकदमा

- आरोपी अफसर हुए रिटायर तो कई स्वर्गवासी, कंपनियों को भी राहत

ashok.mishra@inext.co.in
LUCKNOW : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही भ्रष्टाचार के मामलों की लेटलतीफ जांच करने वाली यूपी पुलिस की एजेंसियों पर नाराजगी जताते रहे हों पर हकीकत यह है कि अक्सर ऐसी जांचों को खुर्द-बुर्द करने में शासन के अफसर ही पीछे नहीं रहते। फिर मामला आईएएस अफसरों से जुड़ा हो तो कई सालों तक जांच प्रक्रिया को आगे ही नहीं बढ़ाया जाता है। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा (ईओडब्ल्यू) ने तो अपनी जांच चार साल में पूरी करके रिपोर्ट सौंप दी पर शासन ने इसके परीक्षण में दस साल का वक्त लगा दिया। इतना ही नहीं, परीक्षण के बाद एफआईआर दर्ज करने का जो आदेश दिया गया वह भी शासन के नियमों के विपरीत था। नतीजतन राजधानी की हजरतगंज कोतवाली में गलत एफआईआर दर्ज हो गयी जिसे लेकर ईओडब्ल्यू के अफसर भी हैरान हैं।

15 साल बाद एफआईआर दर्ज
बाल विकास पुष्टाहार विभाग में वर्ष 2001 से 2003 के बीच पुष्टाहार सप्लाई के ठेके में अनियमितता बरतने, घटिया क्वालिटी का पुष्टाहार सप्लाई करने, फर्मो द्वारा गलत बिल लगाकर भुगतान लेने और खाद्य तेल चोरी की फर्जी एफआईआर करने के मामले की जांच शासन ने ईओडब्ल्यू को वर्ष 2004 में सौंपी थी। इसकी जांच ईओडब्ल्यू के लखनऊ सेक्टर ने की थी जिसकी मॉनिटरिंग तत्कालीन एएसपी सौमित्र यादव ने की थी। बाल विकास पुष्टाहार महकमे से टेंडर से जुड़े दस्तावेज लेने और गवाहों के बयान दर्ज करने में हुई देरी से चार साल में जांच पूरी की गयी। ईओडब्ल्यू के तत्कालीन एडीजी जवाहर लाल त्रिपाठी ने शासन को भेजी अपनी रिपोर्ट में विभाग के छह तत्कालीन निदेशकों को दोषी ठहराते हुए एफआईआर दर्ज करने की संस्तुति की। इसके बाद शासन में तैनात अफसरों और बाबुओं ने अपना खेल शुरूकर दिया। दस साल तक जांच रिपोर्ट का परीक्षण करने के नाम पर इसे दबा दिया गया।

पिछले साल एफआईआर का आदेश
सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री ने लंबित मामलों को लेकर सख्ती बरतना शुरू किया तो आनन-फानन में शासन द्वारा पुराने मामलों का निस्तारण किया जाने लगा। फाइलों से धूल हटाई गयी तो मामला सामने आया। जिसके बाद शासन ने बाल विकास पुष्टाहार विभाग को इसकी एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। एक साल बीतने के बाद बीती 24 जुलाई को बाल विकास पुष्टाहार विभाग के अपर निदेशक प्रशासन शत्रुघन सिंह ने ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट के आधार पर इसकी एफआईआर भी दर्ज करा दी जिसमें घोटाला करने वाली फर्मो को ही आरोपित बनाया गया और निदेशक के पद पर तैनात रहे आईएएस अफसरों को बचा लिया गया। वहीं इस दरम्यान तमाम आरोपी आईएएस रिटायर जबकि कुछ स्वर्गवासी हो गये।

सख्त सजा दें, प्राइम पोस्टिंग नहीं

बताते चलें कि मामले के आरोपित निदेशकों में टीपी पाठक, सत्यजीत ठाकुर, डॉ। गुरुदीप सिंह, आरके सिंह और चंद्रप्रकाश और शैलेष कुमार शामिल थे। ईओडब्ल्यू ने शासन को सौंपी अपनी जांच रिपोर्ट में चंद्रप्रकाश और शैलेष कुमार सिंह के अलावा अपर परियोजना प्रबंधक अलका रानी के खिलाफ सख्त कार्रवाई (वृहद दंड देना) करने की संस्तुति की थी। साथ ही पूर्व निदेशकों को भविष्य में कोई महत्वपूर्ण तैनाती न देने की सिफारिश भी की थी। इनमें से चंद्रप्रकाश की मृत्यु हो चुकी है। जांच रिपोर्ट में कहा गया कि तीनों ने आरोपित फर्मो के साथ मिलकर घटिया पुष्टाहार की सप्लाई कराई और वर्ष 2005 तक उन्हें एक्सटेंशन भी देते रहे।

हर कदम पर घोटाला
बरेली की दो फर्मो जेबीएस फूड और खंडेलवाल सोया इंडस्ट्रीज के खिलाफ जांच की गयी थी। इसमें पाया गया कि दोनों ने अधिकारियों के साथ मिलकर सरकार को खूब चूना लगाया। घटिया पुष्टाहार सप्लाई के अलावा गलत बिल लगाकर भुगतान भी लेते रहे। इतना ही नहीं, खंडेलवाल सोया ने तो खाद्य तेल के दो टैंकर चोरी होने की एफआईआर भी दर्ज करा दी जो बाद में जांच में फर्जी पाई गयी।

ईओडब्ल्यू के अफसर भी हैरान
बाल विकास पुष्टाहार विभाग द्वारा सीधे एफआईआर कराने से ईओडब्ल्यू के अफसर भी हैरान हैं। दरअसल शासन का नियम है कि जिस मामले की खुली जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी जाती है, बाद में बंद जांच (एफआईआर दर्ज करके विवेचना करना) भी वही करती है। इसके लिए ईओडब्ल्यू को बंद जांच शुरू करने, आरोप पत्र दाखिल करने के लिए समय-समय पर शासन से अनुमति लेनी होती है। वहीं हजरतगंज कोतवाली में इसका मुकदमा दर्ज करने के बाद इसकी जांच लखनऊ पुलिस करेगी जो अफसरों की हैरानी का सबब बन गया है।

फैक्ट फाइल

- 25 अगस्त 2008 को गोपन विभाग ने ईओडब्ल्यू को सौंपी जांच

- 24 दिसंबर 2008 को ईओडब्ल्यू ने जांच कर शासन को सौंपी रिपोर्ट

- 18 मई 2017 को आरोपित फर्मो के खिलाफ एफआईआर के आदेश

- 24 जुलाई 2018 को बाल विकास पुष्टाहार विभाग ने कराई एफआईआर

 

जिस मामले की जांच ईओडब्ल्यू करती है बाद में उसमें एफआईआर कराने का जिम्मा भी हमारा होता है। यदि बाल विकास पुष्टाहार विभाग ने सीधे एफआईआर करायी है तो यह नियमों के विपरीत है।
आरपी सिंह, डीजी, ईओडब्ल्यू

यह काफी पुराना मामला है जिसमें शासन के निर्देश पर अपर निदेशक के द्वारा आरोपित फर्मो के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी गयी है।
राजेंद्र कुमार सिंह, निदेशक, बाल विकास पुष्टाहार