RANCHI: राज्य पुलिस के डीजीपी रहते हुए डीके पांडेय ने पत्नी पूनम पांडेय के नाम से कांके के चामा मौजा स्थित रिंग रोड के पास बन रही पुलिस हाउसिंग कॉलोनी में 50.90 डिसमिल सरकारी जमीन खरीदी है। सिर्फ पूर्व डीजीपी ही नहीं, बल्कि 17 बड़े लोगों ने अपने रिश्तेदारों के नाम चामा मौजा की खाता संख्या 87 में जमीन खरीदी है। जिला प्रशासन की छानबीन के बाद यह साफ हो चुका है कि यह जमीन गैर-मजरुआ है और इसका गलत म्यूटेशन कि या गया है। लेकिन इस मामले में डीजीपी समेत 17 लोगों को जिन्होंने जमीन बेची है उनके खिलाफ सरकारी जमीन का कारोबार करने, गलत तरीके से जमीन का धंधा करने, घोखाधड़ी या गलत जमीन बेचने की कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई है। शिकायत नहीं दर्ज कराना यह साफ करता है कि सारे गोरखधंधे में डीजीपी समेत सभी 17 लोग बराबर के भागीदार हैं।

पूर्व डीजीपी का घर भी अवैध

पूर्व डीजीपी डीके पांडेय ने खरीदी गई जमीन पर अवैध तरीके से दो मंजिला मकान का भी निर्माण करा लिया है। इस भव्य मकान का काम बाहर से तो पूरा हो गया है लेकिन इंटीरियर का काम आज भी बदस्तूर जारी है। डीजीपी मकान में गृहप्रवेश भी कर चुके हैं लेकिन मकान का नक्शा अभी तक पास ही नहीं कराया है। यह क्षेत्र रांची नगर निगम क्षेत्र से बाहर आता है, वहां नक्शा पास करने की जिम्मेवारी आरआरडीए की है, लेकिन आरआरडीए ने उक्त मौजा में किसी भी मकान का नक्शा पास नहीं किया है। क्योंकि मास्टर प्लान में यह गांव छूटा हुआ है। मास्टर प्लान में यह गांव कैसे छूटा, इसका जवाब आरआरडीए पदाधिकारियों के पास नहीं है।

हाईप्रोफाइल दलालों का खुलासा नहीं

जिस सरकारी जमीन को लेकर पूरे मामले का खुलासा हुआ है उसको खरीदने वाले तो पूर्व डीजीपी की पत्नी पूनम पांडेय समेत 17 लोग हैं लेकिन जमीन खरीदने वालों को जमीन दिलाने वाले हाईप्रोफाइल दलालों के नामों का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है। पूरे मामले के जानकार बताते हैं कि इस जमीन की बिक्री में एसपी स्तर के आईपीएस अधिकारी, सीसीएल के अधिकारी समेत चंड़ीगढ़ के एक बड़े राजनीतिज्ञ भी जुड़े हैं। कैश लेनदेन का काफी बड़ा खुलासा हो सकता है।

क्या हो रही कार्रवाई

कार्रवाई बीआरएल (क्चद्बद्धड्डह्म रुड्डठ्ठस्त्र क्त्रद्गद्घश्रह्मद्वह्य) के फोर-एच के तहत की जा रही है। मामले में कांके सीओ ने 29 लोगों को तीन बार नोटिस भी भेज दिया है। लेकिन किसी नोटिस का कोई जवाब नहीं आया है और ना ही कोई सीओ की कोर्ट में हाजिर हुआ है। तीन बार नोटिस करने में करीब तीन महीने का समय निकल चुका है।

नहीं हो रहा सरकारी आदेश का पालन

बीएलआर एक्ट की इसी लेट-लतीफी को लेकर पांच जून 2016 को बतौर मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने सभी उपायुक्तों को एक चिट्ठी भेजी थी। चिट्ठी में कहा गया था कि ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें देखा जा रहा है कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने के लिए सरकारी कर्मियों और अधिकारी की मिलीभगत से जमीन का म्यूटेशन करा लिया जा रहा है। ऐसे में वैसे सभी मामलों में प्रशासन मुस्तैदी से काम करे और जमाबंदी रद्द करे। राजबाला वर्मा ने फोर-एच के तहत होने वाले मामलों के लिए हर कर्मी और अधिकारी का एक टाइम टेबल तय किया था।