- वॉटर रिसोर्स की तादाद न बढ़ने से फ्यूचर में हो सकती है प्रॉब्लम

- 10 साल के मुकाबले करीब दोगुनी हो गई है आबादी

- वहीं ट्यूबवेल, हैंडपंप भी प्यास बुझाने में नाकाम साबित हो रहे हैं

GORAKHPUR: केपटाउन में पानी के लिए हाहाकार मचा है। छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या फिर गरीब, सभी लाइन में लगकर पानी लेने के लिए मजबूर है। अपने शहर की बात की जाए, तो यहां अभी फिलहाल राहत है, लेकिन जिस तरह से आबादी के साथ पानी की डिमांड बढ़ रही है, वॉटर रिसोर्स कम हो रहे हैं और कंक्रीट के जंगलों के बढ़ने से वॉटर रीचार्ज भी नहीं हो पा रहा है। अगर यही हाल रहा, तो आने वाले दिनों में हमें भी वॉटर क्राइसिस से जूझना पड़ेगा।

दोगुनी से ज्यादा हो गई पॉप्युलेशन

गोरखपुर की पॉप्युलेशन की बात करें तो यह लगातार बढ़ती ही जा रही है। 2001 से अब तक यानी महज आठ सालों में शहर की जनसंख्या दोगुनी हो चुकी है। जबकि वॉटर रिसोर्स बजाए बढ़ने के साथ ही कम होते जा रहे हैं। साल 2011 में शहर की आबादी 673446 थी, जो आठ सालों में बढ़कर लगभग 14 लाख तक पहुंच सकी है। लेकिन वॉटर रिसोर्स की बात करें तो यह 20 परसेंट भी नहीं बढ़ सके हैं। आबादी बढ़ने के साथ ही उनके रहने के लिए आशियाने और ठिकानों की तादाद भी बढ़ती जा रही है, इससे वॉटर रिसोर्स और रीचार्ज की भारी कमी हो गई है। ऐसे में लगातार मुसीबत बढ़ती जा रही है।

45.5 लाख लीटर शुद्ध पानी की जरूरत

2001 में जब सिटी की आबादी छह लाख थी। इनको डेली कम से कम 21 लाख लीटर पानी की आवश्यता पड़ती थी। उस दौरान शहर के 50 फीसद इलाकों में जलकल से पानी सप्लाई की जाती थी। ऐसे में सिर्फ तीन लाख लोगों को ही मात्र 10.5 लाख लीटर शुद्ध पानी मिल पाता था। जलकल के वर्तमान आंकड़ों पर नजर डाले तो एक व्यक्ति को प्रति दिन 3.50 लीटर पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। महानगर की कुल आबादी 14 लाख के आसपास है। ऐसे में प्रतिदिन 45.5 लाख लीटर शुद्ध पानी की आवश्यकता पड़ेगी, जबकि जलकल विभाग डेली 30 लाख लीटर पानी ही उपलब्ध करा पा रहा है।

हैंडपंप भी नहीं दे रहे हैं साथ

गोरखपुर शहर की बात की जाए तो वॉटर सप्लाई के अलावा सिटी के 32 प्रतिशत हिस्से में पानी सप्लाई के लिए 3975 इंडियामार्का हैंडपंप लगाए गए हैं। इनकी औसत गहराई 90 से 120 फीट तक है। ज्यादातर हैंडपंप का पानी दूषित हो चुका है। सरकार सर्वे कराकर इंडिया मार्क-2 हैंडपंप को रीबोर करा रही है, लेकिन इसके बाद भी यह शहरवासियों की प्यास बुझाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। वॉटर सप्लाई न होने की वजह से इन इलाकों में लोगों को प्यास बुझाने के लिए हैंडपंप का ही सहारा लेना पड़ रहा है।

कागजों में कुछ, हकीकत कुछ

नगर निगम सीमा में वॉटर रिसोर्स की बात करें तो कागजों में करीब 200 कुएं मौजूद हैं, जबकि 150 से ज्यादा तालाब भी निगम ने दर्ज कर रखे है। लेकिन अगर इसकी हकीकत परखी जाए तो मामला बिल्कुल अलग है। हकीकत यह है कि वर्तमान समय में सिटी में शहर में ढूंढने के बाद बमुश्किल 42 कुएं मिल जाएंगे, जबकि तालाबों की तादाद 38 पर जाकर सिमट जाती है। इन्हीं 80 रिसोर्स पर पूरे शहर के पानी को संरक्षित करने की जिम्मेदारी है, जहां से ग्राउंड वॉटर रीचार्ज होगा और लोगों के घरों में भी पीने का पानी आसानी से मुहैया हाे सकेगा।

वर्जन

ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज करने के लिए कुएं और तालाब अहम भूमिका निभाते हैं। मगर गोरखपुर से यह बिल्कुल गायब से होते जा रहे हैं, जिससे वॉटर रीचार्ज की दिक्कत बढ़ने लगी है। अगर हम अभी नहीं चेते, तो आने वाले दिनों में हमें पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

- प्रो। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट