गणपति स्थापना मुहूर्त:

प्रथम मुहूर्त-

प्रातः काल   6,04 बजे से 7.37 बजे 9.12 से 10.45 बजे( अमृत, शुभ के चौघड़िया में)

द्वितीय सर्व श्रेष्ठ मुहूर्त-

पूर्वाह्न 11.34 से अपराह्न 1. 53 बजे तक (वृश्चिक लग्न एवं अभिजित मुहूर्त)

तृतीय मुहूर्त-

अपराह्न 3.25 से सांय 6.25 बजे तक( लाभ एवं अमृत के चैघड़िया में)

राहु काल-

प्रातः काल (7.35 से 9.10 बजे तक)

           

इस बार 2 सितम्बर 2019,सोमवार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी गणेश चतुर्थी उदया तिथि अनुसार हस्त नक्षत्र शुक्ल योग में है।इस दिन भद्रा अपराह्न 3:21 बजे से दिनाँक 03 सितम्बर 2019,रात्रि 1:54 बजे तक रहेगी,यद्यपि इसका निवास पाताल लोक में रहेगा।यहां विशेष बात यह है कि गणेश जी का जन्म भी भद्रा में हुआ था अतः भद्रा का प्रभाव नहीं रहेगा।राहु काल में गणेश स्थापना पूर्ण रूप से वर्जित है। भगवान गणेश विघ्न हर्ता, सर्वमांगल्यकर्ता भी हैं।मान्यताओं के अनुसार सूर्य से आरोग्य,अग्नि से श्री, शिव से ज्ञान, भगवान विष्णु से मोक्ष, दुर्गा आदि देवियों से रक्षा, लक्ष्मी से ऐश्वर्य वृद्दि,  सरस्वती से विद्या तत्व, भैरव से कठिनाइयों पर विजय, कार्तिकेय से सन्तान प्राप्ति तथा भगवान गणेश से उक्त सभी वस्तुओं की याचना करनी चाहिए।

जानें कौन से काल में किस नाम से जानें गए

भगवान गणेश सभी प्रकार की मान्यताओं को पूर्ण करने वाले हैं।ब्रह्मा,शिव और विष्णु ने गणेश जी को कर्मों में विघ्न डालने का अधिकार तथा पूजन के उपरान्त उसे शान्त कर देने का सामर्थ्य प्रदान किया है तथा सभी गढ़ों का स्वामी बनाया।भगवान गणेश का वर्तमान स्वरूप गजानन रूप में शिव-पार्वती पुत्र के रूप में पूजा जाता है, यह उनका द्वापर युग का अवतार है,सतयुग में भगवान गणेश महोत्कट विनायक के नाम से प्रसिद्ध हुए थे,जिनका वाहन सिंह था।त्रेता युग में मयूरेश्वर के नाम से जाने गए,जिनका वाहन मयूर था।द्वापर युग का प्रसिद्ध रूप गजानन है,जिसका वाहन मूषक है और कलयुग के अंत में भगवान गणेश का धर्मरक्षक धूम्र केतु प्रकट होगा।भगवान गणेश धनप्रदायक भी हैं।इसलिए गणपति का प्रवेश एवं स्थापना शुभ मुहूर्त में करना श्रेष्ठ होता है।

इस वजह से गजानन नाम पड़ा

सिध्दि विनायक व्रत भाद्र शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है।इस दिन मध्यान्ह काल में गणेश जी का जन्म हुआ था।इसलिय मध्यान्ह व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है।इस दिन रात्रि में चंद्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है।गणेश जी की उत्पत्ति के संबंध में ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार गणेश जी के जन्म के समय ही शनि की वक्र दृष्टि पड़ने से उनका सिर कट गया, इस पर विष्णु जी ने हाथी का एक सिर काटकर उनके धड़ पर जोड़ दिया और तभी उनका नाम गजानन पड़ा।

जानें शरीर से सिर अलग होने की कथा

गणेश पुराण के अनुसार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं उन्होंने अपने कक्ष तक किसी को भी न आने देने के लिए एक मिट्टी के बालक की रचना की और उसे जीवन देकर पहरेदार बना दिया।पार्वती पति भगवान शिव आये और अंतः पुर की ओर जाने लगे तभी पहरेदार बालक ने टोका जिस पर शिव को क्रोध आया और उन्होंने उसका मस्तक काट डाला ।मां पार्वती को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके पुत्र का शिव जी के द्वारा वध हुआ है तो उन्होंने दुखी होकर भगवान शंकर से प्रार्थना की कि वह उसे पुनः जीवन दान दें,तब शिवजी ने प्रायश्चित करते हुए एक गजमुख को बालक के शरीर पर जोड़ दिया।

गणेश जी का पूजन निम्न विधि से करना चाहिए-

पूजन सामग्री कुमकुम,केसर,अबीर,गुलाल,सिंदूर,पुष्प,चावल,चौसरे, ग्यारह सुपारियां,पंचामृत, पंच मेवा,गंगाजल,बिल्व पत्र,धूपबत्ती, दीप, नैवेध लड्डू पांच,गुड़, प्रसाद,लौंग इलायची, नारियल, कलश,लाल कपड़ा एक हाथ,सफेद कपड़ा एक हाथ,वरक, इत्र,पुष्पहार,पान डंठल सहित,सरसों,जनेऊ,मिश्री,बताशा और ऑवला।

गणेश चतुर्थी पर ऐसे करें पूजन

एक चौकी पर लाल रेशमी वस्त्र बिछाकर उसमे मिट्टी,धातु,सोना अथवा चांदी की मूर्ति,ध्यान आवाहन के बाद रखनी चाहिए।'ॐ गंग गणपतये नमः' कहते हुए उपरोक्त पूजन सामग्री गणेश जी पर चढ़ाएं।एक पान के पत्ते पर सिंदूर में हल्का सा घी मिलाकर स्वास्तिक चिन्ह बनाएं,उसके मध्य में कलावा से पूरी तरह लिपटी हुई सुपारी रख दें।इन्हीं को गणपति मानकर एवं मिट्टी की प्रतिमा भी साथ में रखकर पूजन करें,गणेश जी के लिए मोती चूर के लड्डू(5 अथवा 21)अवश्य चढ़ायें।लड्डू के साथ गेहूं का परबल अवश्य चढ़ायें, धान का लावा,सत्तू,गन्ने के टुकड़े,नारियल, तिल एवं पके हुए केले का भी भोग लगाएं।अंत में देशी घी में मिलाकर हवन सामग्री के साथ हवन करें एवं अंत में गणेश जी की प्रतिमा के विसर्जन का विधान करना उत्तम माना गया है।

विशेष

1. गणेशजी की पूजा सांय काल की जानी चाहिए, पूजनोपरांत नीची नज़र से चंद्रमा को अर्ध्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

2. घर मे तीन गणेश जी की पूजा नही करनी चाहिए।

3. यदि चंद्र दर्शन हो जाएं तो मुक्ति के लिए 'हरिवंश भागवतोक्त स्यमंतक' मणि के आख्यान का पाठ भी करना चाहिए।इति।

-ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा