क्यों मनाते हैं गंगा सप्तमी

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुंची थी। इसलिए इस दिन को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है।

गंगा का वेग था बहुत तेज

गंगा के धरती में आने को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। कहते हैं कि स्वर्ग से उतरकर शिव की जटाओं में समाने का कारण यह था कि पृथ्वी उनका तेज वेग नहीं सह सकती थी। इसलिए उन्होंने पहले शिव की जटाओं में अपना स्थान बनाया। इसके बाद शिव ने गंगा को धरती पर छोड़ा। इसलिए ही इस दिन को गंगा जयंती या गंगा जन्मोत्सव भी कहा जाता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए थे। ऐसे में उनके वंश के उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या की। क्योंकि वे जानते थे कि गंगा के छूने से ही राजा सगर के 60 पुत्रों का उद्धार होगा। भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न तो हो गईं, लेकिन उनका पृथ्वी पर आना अब भी संभव नहीं था। क्योंकि गंगा का वेग धरती सह नहीं पाती। इसके बाद भगीरथ ने शिव की आराधना की थी।

क्या-क्या करें गंगा सप्तमी के दिन

गंगा सप्तमी के अवसर पर्व पर माँ गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा में स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है।

Spiritual News inextlive from Spirituality Desk