- बच्चों की संख्या के आधार पर तय होता है सेंटर्स का रेट

- प्राइवेट स्कूलों के साथ मिलकर चल रहा है जमकर खेल

- दौ सौ से अधिक दागी स्कूलों को बनाया जा रहा सेंटर

LUCKNOW: राजधानी में हर संडे कोई न कोई बड़ी प्रतियोगी परीक्षाएं होती हैं। इसमें लाखों स्टूडेंट्स इन परीक्षाओं में शामिल होते हैं। मगर इन स्टूडेंट्स की सालों की मेहनत पर पेपर आउट कराने वाले गिरोह पानी फेर देते हैं। बीते तीन से चार महीनों में राजधानी में हुए कई बड़े पेपर चाहे वह रेलवे भर्ती बोर्ड हो, अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती हो, पब्लिक सर्विस कमिशन की भर्ती हो या फिर किसी बैंक या फिर आयोग की भर्ती हो। इन सभी के पेपर हर हाल में आउट या लीक कराने की सूचना मिलती है। यहां तक राजधानी में बीते चार महीनों में विभिन्न सेंटर्स से करीब दर्जन भर से अधिक मुन्नाभाई या नकल करते कैंडीडेट्स पकड़े गए हैं। इन सभी घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण बिना मानक देखे स्कूलों को एग्जाम सेंटर्स बनाना है।

मानकों से होता है खिलवाड़

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्राइवेट स्कूलों को सेंटर्स बनाने का खेल राजधानी में पूरे जोरों पर चल रहा है। शिक्षा विभाग के बाबूओं के सहयोग से बिना किसी मानक को चेक किए ही ऐसे स्कूलों को सेंटर्स बनाया जा रहा है। जहां पर किसी भी तरह की बड़ी परीक्षा कराने का सुविधा या मानक पूरे ही नहीं होते हैं। इसके बाद भी शिक्षा विभाग के बाबू तीन से पांच हजार रुपए लेकर इन प्राइवेट स्कूलों को सेंटर्स बनाया जा रहा है।

हजारों में होता है खेल

किसी भी परीक्षा में औसतन एक कैंडीडेट के एग्जम कराने के लिए पांच से आठ रुपए का बिल पेमेंट किया जाता है। स्कूल प्रबंधक शिक्षा विभाग के बाबूओं से टाईअप कर एग्जाम में ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स का सेंटर्स बनाने के लिए कहते हैं। ताकि उनको औसतन केवल परीक्षा कराने के लिए करीब पांच हजार रुपए मिल जाता है। इसके अलावा प्रति निरीक्षक औसतन 500 रुपए और दस चपरासियों का 300 रुपए के हिसाब से पेमेंट किया जाता है। इस हिसाब से पांच सौ स्टूडेंट्स को बैठाने के लिए स्कूल को 20 कमरे लगाने होते हैं। इस हिसाब से 40 कक्ष निरीक्षकों की ड्यूटी लगाई जाती है। इनका बिल 500 रुपए औसत के हिसाब से 20 हजार रुपए पेमेंट किया जाता है। सभी को जोड़ने पर एक स्कूल को औसतन 30 से 32 हजार रुपए मिलता है। इसमें से एक स्कूल करीब 15 से 18 हजार रुपए ही कुल एग्जाम पर खर्च करता है।

करीब 150 स्कूल सेंटर्स बनने लायक नहीं

खुद शिक्षा विभाग ने अपने बोर्ड एग्जाम के लिए राजधानी के करीब 150 स्कूलों को सेंटर्स बनाने लायक नहीं माना है। इसके बाद भी इन स्कूलों में हर वीक धड़ल्ले से प्रतियोगी परीक्षाएं कराने के लिए सेंटर्स बना दिए जाते हैं। इन स्कूलों में विभाग का एक भी राजकीय और एडेड स्कूल नहीं शामिल होता है। जिन स्कूलों को विभाग बोर्ड परीक्षा आयोजित कराने के योग्य नहीं मानता, उन्हें चंद पैसों के लिए प्रतियोगी परीक्षा का सेंटर बनाया जा रहा है। राजधानी में आदर्श माध्यमिक शिक्षा निकेतन, श्यामा चंद्रा कावेंट, फ्लोरेंस नाइटेंगल इंटर कॉलेज, टीडी ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज, जेबीआर इंटर कॉलेज, जीजस हायर सेकेंडरी स्कूल जैसे कुछ नाम हैं, जो बोर्ड एग्जाम कराने के योग्य नहीं है। पर इन जैसे करीब 200 स्कूलों में लगभग हर वीक प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित हो रही हैं।

शिक्षा विभाग के बाबू और कर्मचारी मिलकर यह पूरा खेल सालों से संचालित कर रहे हैं। हर एक स्कूल से सेंटर बनाने के लिए तीन से पांच हजार रुपए वसूल किए जाते हैं। जिसके बाद इन्हें बिना मानक देखे सेंटर बना दिया जाता है।

- डॉ। आरपी मिश्रा,

प्रिंसिपल, क्वींस इंटर कॉलेज

सेंटर्स बनाने से पहले स्कूलों का स्थलीय निरीक्षण करना होता है। पर विभाग के अधिकारी फर्जी तरीके से एनओसी जारी कर सेंटर्स बना देते हैं। जो भी स्कूल सेंटर्स बनाए जाते हैं, उनका कभी मानक भी चेक नहीं होता है।

- डॉ। महेंद्र नाथ राय,

प्रिंसिपल, कालीचरण इंटर कॉलेज

राजधानी में कुल शिक्षक संस्थानों की संख्या

यूपी बोर्ड के कुल स्कूल - 700

राजकीय स्कूलों की संख्या - 14

एडेड स्कूलों की संख्या- 108

प्राइवेट स्कूलों की संख्या- 647

सीबीएसई स्कूलों की संख्या- 110

आईसीएसई स्कूलों की संख्या- 55

एडेड डिग्री कॉलेजों की संख्या- 16

प्राइवेट कॉलेजों की संख्या- 132

आंकड़ों के बोल

एक स्कूल को सेंटर बनने में मिलते हैं- करीब 30 से 32 हजार रुपये

स्कूल प्रबंधन पर परीक्षा का आता है खर्च- करीब 15 से 18 हजार रुपये