BAREILLY: घोड़े में ग्लैंडर्स बीमारी की पुष्टि होने से घोड़ों के साथ इंसानों की जान का भी खतरा बढ़ गया है। पशु विभाग ने बरेली मंडल के सभी जिलों में अलर्ट जारी किया है। मंडल के बदायूं डिस्ट्रिक्ट के उझानी और सदर पशु चिकित्सालय में घोड़े का सीरम पोजिटिव पाए जाने के बाद पशुपालन विभाग बरेली मंडल के एडीशनल डायरेक्टर डॉ। जीएन सिंह ने सभी मुख्य पशु चिकित्साधिकारियों को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने घोड़ा पालने वालों को अवेयर करने के निर्देश दिए गए हैं।


उझानी में 4 घोड़ों में मिली बीमारी

डॉ। जीएन सिंह के मुताबिक बदायूं डिस्ट्रिक्ट के उझानी पशु चिकित्सालय में 4 और सदर पशु चिकित्सालय में 1 घोड़े का सीरम सैंपल ग्लैंडर्स रोग के लिए पॉजिटिव पाया गया है। ग्लैंडर्स रोग भारत सरकार के द्वारा नोटिफाईएबल कैटेगरी में आता है। यह बल्कोलडेरिया बैक्टीरिया द्वारा होता है। यह जुनोटिक रोगों की श्रेणी में आता है। यह घोड़ों के अलावा अन्य स्तनधारी पशुओं और मनुष्य में हो सकता है। डॉक्टर के मुताबिक यह बीमारी एक संक्रमण के तौर पर फैलती है। यह खाल के घाव, नाक के म्युकोसल सर्फेस व सांस के द्वारा हो सकता है।

 

ऐसे कर सकते हैं बीमारी का पता

इस बीमारी का पता एलाइजा और कॉम्लीमेंट फिक्सेशन (सीएफटी) टेस्ट के जरिए लगाया जा सकता है। एक्यूट फार्म में घोड़ों में इस बीमारी में फेफड़ों में गांठें व श्वसन तंत्र की म्यूकस मैमरेन पर घाव पाए जाते हैं। इसमें पशु खांसी से ग्रसित होता है और नाक से स्राव निकलता है। उसके बाद सैप्टीसीमिया से मौत हो जाती है। क्रोनिक रूप में लिम्फ वैसल पर गांठें, जिसमें घाव बन जाते हैं और उसके बाद मौत हो जाती है।

 

ऐसे मनुष्य में फैलती है बीमारी

घोड़ों से मनुष्यों में यह बीमारी आसानी से पहुंच जाती है। जो लोग घोड़ों की देखभाल करते हैं या फिर ईलाज करते हैं, उनको खाल, नाक, मुंह और सांस के द्वारा संक्रमण हो जाता है। मनुष्यों में इस बीमारी से मांस पेशियों में दर्द, छाती में दर्द, मांसपेशियों की अकड़न, सिरदर्द और नाक से पानी निकलने लगता है।

 

घोड़ों में बीमारी का नहीं कोई ईलाज

जब भी यह बीमारी घोड़ों में हो जाती है तो इसका ग्लैंडर्स फारसी एक्ट के तहत कोई ईलाज भारत में नहीं है। जांच में ग्लैंडर्स मिलने पर घोड़े का अंत दर्द रहित मृत्यु यानी यूथेनेसिया ही है। इसके बचाव के लिए कोई टीका मौजूद नहीं है।

 

पता चले तो तुरंत करें घोड़े को दूर

एडीशनल डायरेक्टर ने सभी पशु चिकित्सकों को निर्देश दिया है कि यदि किसी भी घोड़े में इस तरह के लक्षण पाए जाएं तो उसे आबादी से अलग बांधा जाए। उसके परिवहन पर रोक लगा दी जाए। संबंधित जगह का डिसइंफेक्शन कराया जाए और घोड़े का सैंपल लेकर मंडलीय चिकित्सालय के जरिए इसे हिसार हरियाणा के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान भेजा जाए।

 

सभी घोड़ों के सैंपल लेने के निर्देश

डॉ। जीएन सिंह ने सभी पशु चिकित्सकों को निर्देश दिए हैं कि यदि सैंपल पॉजिटिव आए तो केंद्र के 5 किलोमीटर एरिया के 100 परसेंट घोड़ों का सैंपल लिया जाए। इसके अलावा 5 से 10 किलोमीटर एरिया के 50 परसेंट घोड़ों का सैंपल लेकर भेजा जाए। बदायू जिले में सैंपल पाजिटिव आएं हैं तो इसका तुरंत पालन किया जाए। उन्होंने बदायूं के अलावा बरेली, पीलीभीत और शाहजहांपुर जिलों को निर्देश दिए हैं कि 20 परसेंट घोड़ों का सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा जाए। इस बीमारी का किसी भी तरह से फैलाव न हो।