- फुटबॉल लवर्स को मिल रहा है अपने पेरेंट्स का पूरा सपोर्ट

- शहर के कई ग्राउंड्स पर प्राइवेट कोचेज को पेमेंट कर प्रैक्टिस के लिए पहुंचते हैं खिलाड़ी

- यंग जनरेशन में इंटरेस्ट को देखते हुए पेरेंट्स भी निभा रहे हैं साथ

GORAKHPUR: गोरखपुर के यंगस्टर्स में टैलेंट की कहीं से भी कमी नहीं है। जिस फील्ड में चाहते हैं अपनी जगह बना ही लेते हैं। मगर उनकी इस कामयाबी के पीछे अगर कोई खड़ा रहता है, तो वह हैं उनके पेरेंट्स। बिना उनके सपोर्ट के न तो उनका किसी फील्ड में जाना पॉसिबल है और न ही कहीं से फायनेंशियल एड ही मिल सकेगी। सिटी के फुटबॉल खिलाडि़यों के साथ कुछ ऐसा ही मामला है। पेरेंट्स के लगातार सपोर्ट की वजह से खिलाड़ी प्रमोट हो रहे हैं और उनके गेम का ग्राफ लगातार ऊंचा उठता जा रहा है।

जहां चाह, वहीं राह

फुटबॉल हो या फिर दूसरा गेम, कामयाबी तभी मिल सकती है जब खिलाड़ी का उस गेम में इंटरेस्ट हो। अगर ऐसा नहीं है, तो लाख कोशिशों के बाद गेम में एंट्री तो मिल जाएगी, लेकिन कामयाबी का सपना, हकीकत में नहीं बदल सकेगा। इसलिए पेरेंट्स भी अपने बच्चों को उस गेम में जाने से बिल्कुल भी नहीं रोक रहे हैं, जिसमें उनका इंटरेस्ट है। यही वजह है कि इन दिनों फुटबॉल की फील्ड खिलाडि़यों से खचाखच भरी हुई है और उनके साथ पेरेंट्स भी पहुंचकर अपने बच्चों का मनोबल बढ़ा रहे हैं।

क्रिकेट से दूरी, फुटबॉल से प्यार

सेंट एंड्रयूज कॉलेज ग्राउंड पर प्रैक्टिस कर रहे खिलाडि़यों के पेरेंट्स ने बताया कि अब उनके बच्चे फुटबॉल में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं। पहले वह क्रिकेट खेला करते थे, लेकिन 20 ओवर फील्डिंग करने के बाद जब दो गेंद पर आउट होकर वह वापस पैविलियन लौट गए, तो उनको यह काफी नागवार गुजरा और उन्होंने क्रिकेट छोड़ फुटबॉल को अपना लिया। इसमें जितने देर भी मैच होता है, सभी खिलाडि़यों का बराबर कॉन्ट्रिब्यूशन रहता है और सभी को बराबर मौके मिलते हैं, जबकि क्रिकेट में ऐसा नहीं है।

वर्जन

मैं स्कूल में फुटबॉल खेल रही थी। धीरे-धीरे इंटरेस्ट बढ़ता गया और अब वह प्रोफेशनल फुटबॉल में जाने की सोची। मेरे पेरेंट्स मेरे इस कदम का भरपूर सपोर्ट कर रहे हैं और मुझे हर जरूरी फैसिलिटी प्रोवाइड करा रहे हैं।

- बृजेश चौधरी

टीवी देखकर मुझमें भी फुटबॉल को लेकर इंटरेस्ट जगा और मैंने इस गेम में ही फ्यूचर बनाने की ठानी। इंटरनेट के जरिए पता किया कि कहां फुटबॉल होता है, उसपर दिए कॉन्टैक्ट नंबर पर कॉल कर बच्चों को यहां एडमिशन कराया।

- साहिबा सिद्दीकी

फुटबॉल खेलने की चाह मुझे थी, इसमें पेरेंट्स ने मुझे काफी सपोर्ट किया। उन्होंने कभी गेम खेलने के लिए नहीं रोका और आज मैं जिस मुकाम पर हूं, यह मेरे पेरेंट्स के सपोर्ट की ही देन है।

- जेबा

बच्चों में तो काफी इंटरेस्ट है, वहीं उनके पेरेंट्स भी सपोर्ट करने में कहीं से पीछे नहीं है। पेरेंट्स रोजाना बच्चों को लेकर ग्राउंड पर पहुंचते हैं और इसे उन्होंने अपनी ड्यूटी बना ली है।

- हमजा खान, सेक्रेटरी, प्लेयर्स एसोसिएशन