- 71 स्कूल के बच्चों को किया जाएगा ट्रेन

- प्रेरणा श्री सभागार में शुरू हुई ऑफिसर्स की ट्रेनिंग

GORAKHPUR: 50 फीसदी मेंटल डिजीज की शुरुआत टीनएज यानि कि 13 से 19 साल के बीच होती है। ऐसे में उनपर ध्यान रखना काफी जरूरी है। स्कूल डेज में बच्चे घर में कम रहते हैं, जिससे पेरेंट्स को उनकी मेंटल प्रॉब्लम या स्ट्रेस के बारे में नहीं पता चल पाता है। मगर अब ऐसा नहीं होगा। स्वास्थ्य विभाग की नजर अब हर स्कूल्स पर होगी। जिले के 71 स्कूल-कॉलेज के पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के बीच से ही 'मनदूत' व 'मनपरी' बनाए जाएंगे। जो ऐसे बच्चों को प्वॉइंट आउट कर जिम्मेदारों की इसकी इंफॉर्मेशन देंगे। इससे वक्त रहते लोगों को बच्चों की मेंटल प्रॉब्लम के बारे में पता चल सकेगा और उनका टाइमली इलाज हो जाएगा।

ट्रेनिंग की हुई शुरुआत

इस संबंध में स्कूल में नोडल टीचर्स को चुनकर उन्हें बेसिक ट्रेनिंग दी जा रही है। इस सीरीज में सीएमओ डॉ। श्रीकांत तिवारी की अध्यक्षता में प्रेरणा श्री सभागार में मंगलवार को ट्रेनिंग सेशन ऑर्गनाइज किया गया। सभी नोडल टीचर्स संबंधित स्कूल्स में स्टूडेंट्स के बीच से मनदूत व मनपरी ढूंढ कर उन्हें इस तरह ट्रेनिंग देंगे कि अगर किसी साथी स्टूडेंट में सुसाइड, डिप्रेशन या मानसिक रोग के सिंप्टम्स दिखें, तो वह टीचर्स को इसकी इंफॉर्मेशन दें, ताकि टाइमली स्टूडेंट्स की मदद की जा सके। सीएमओ ने सबसे कहा है कि वह बच्चों को इस तरह का माहौल दें कि वह खुलकर अपनी बात रख सकें। बच्चों में मानसिक बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग हर तरह से मदद के लिए तैयार है।

आगे और बढ़ेगी प्रॉब्लम

नेशनल मेंटल डिजीज प्रोग्राम के नोडल ऑफिसर एसीएमओ डॉ। आईवी विश्वकर्मा ने कहा कि आने वाले समय में नॉन कम्युनिकेबल डिजीज की प्रॉब्लम बढ़ेगी। मेंटल डिजीज भी एक प्रमुख बीमारी के तौर पर उभरा है। मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ। अमित शाही ने बताया कि व‌र्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के सर्वे के मुताबिक 7.5 फीसदी लोग मानसिक रोग से ग्रसित हैं, जबकि 50-60 फीसदी लोग तनाव में रहते हैं। ऐसे में अगर स्टडी पीरियड में ही मेंटल डिजीज पर ध्यान दिया जाए तो हालात बदल सकते हैं। ट्रेनर नैदानिक मनोवैज्ञानिक रमेंद्र त्रिपाठी ने स्टूडेंट्स के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में जानकारी दी।

इनके बारे में मिली जानकारी

- सीखने की अक्षमता

- पढ़ाई छोड़ देना

- शैक्षणिक पिछड़ापन

- व्यवहार विकृति

- भाषा दोष

- मानसिक दुर्बल बालक

- शारीरिक दिव्यांग

10 हजार में 20 ऑटिज्म का शिकार

उन्होंने बच्चों में प्रमुख तौर पर होने वाली दो बीमारियों ऑटिज्म व अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) के बारे में बताया और कहा कि भारत में दस हजार लोगों में से 20 लोग ऑटिज्म के शिकार हैं। वहीं 1 से 12 प्रतिशत बच्चों में एडीएचडी की समस्या है और यह बीमारी अक्सर 7 से 12 साल के बीच स्टूडेंट्स को घेरती है। उन्होंने लाइफ स्किल्स के जरिए बच्चों में डिप्रेशन, सुसाइड व अन्य मानसिक बीमारियों की रोकथाम के बारे में भी जानकारी दी। जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी केएन बरनवाल ने भी अपनी बातें रखीं। इस अवसर पर एनसीडी सेल से अजय सिंह, मानसिक रोग कार्यक्रम टीम से संजीव कुमार, प्रदीप वर्मा, विष्णु शर्मा प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।