- वीआईपी नंबर की फीस लेकर दे दिया गाड़ी का सामान्य नंबर

- अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी नहीं लिया गया संज्ञान

- पीएमओ के निर्देश पर ट्रांसपोर्ट कमिश्नर करा रहे मामले की जांच

GORAKHPUR: अपने कारनामों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले आरटीओ विभाग की एक और कारिस्तानी सामने आई है। गाड़ी के रजिस्ट्रेशन के दौरान गाड़ी मालिक के वीआईपी नंबर का भुगतान करने के बाद भी सामान्य नंबर दे दिया गया। इसे लेकर आरटीओ ऑफिस से लेकर मुख्यालय तक गुहार लगाकर थक चुके गाड़ी मालिक ने पूरे मामले से ई-मेल के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय को अवगत करा दिया। जिसका गंभीरता से संज्ञान लेते हुए पीएमओ ने यूपी के ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को जांच कराने का निर्देश दिया।

आखिर कहां से हुई गलती

सिटी के शाहपुर एरिया के राप्तीनगर के रहने वाले विष्णु प्रताप सिंह ने बीते चार अक्टूबर 2016 को मारुति विराटा बे्रजा गाड़ी खरीदी थी। इसके बाद उन्होंने छह दिसंबर को गाड़ी के रजिस्ट्रेशन के लिए आरटीओ में अप्लाई किया था। जिसमें गाड़ी मालिक ने वीआईपी रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी सीएच 0011 के लिए ऑफिशियल बेवसाइट पर निर्धारित शुल्क छह हजार रुपए का पेमेंट भी कर दिया। इसके बाद गाड़ी मालिक ने 14 दिसंबर को आरटीओ ऑफिस में इसकी रसीद के साथ लेट फीस सहित कुल रजिस्ट्रेशन राशि 78,637 रुपया कैश जमा कर दिया। लेकिन इस दौरान विभाग की ओर से उन्हें उनके मनपसंद रजिस्ट्रेशन नंबर की जगह यूपी 53 सीएच 4176 का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट दे दिया गया।

काटते रहे चक्कर

विष्णु प्रताप सिंह ने इस लापरवाही की जानकारी आरटीओ अधिकारियों को भी दी, लेकिन उनकी समस्या का कोई निस्तारण नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने यूपी के ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और पीएमओ में शिकायत दर्ज कराई। पीएमओ ने मामला का संज्ञान लेते हुए यूपी के ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को तत्काल जांच करा समस्या का समाधान करने का निर्देश दिया है।

वर्जन

सरकार की ओर से आरटीओ की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की गई है। मैंने पूरे प्रोसेस से फीस जमा कर अपना मनपसंद नंबर लेना चाहा जो नहीं दिया गया। वहीं दलालों के जरिए जाने वालों का काम आरटीओ में तत्काल किया जाता है। यह न्याय की लड़ाई है। मैं एक्स्ट्रा पैसे नहीं दूंगा।

- विष्णु प्रताप सिंह, गाड़ी मालिक

गाड़ी मालिक ने रजिस्ट्रेशन के समय वीआईपी नंबर के लिए जमा शुल्क की रसीद नहीं लगाई थी। इसीलिए सामान्य नंबर दे दिया गया। बाद में उन्होंने रसीद दिखाकर आपत्ति जताई, लेकिन अब इसमें कोई सुधार करना आरटीओ के अधिकार में नहीं है। इसके लिए एनआईसी को फाइल भेज दी गई है। एनआईसी से उन्हें वीआईपी नंबर दे दिया जाएगा।

- सूरज राम पाल, एआरटीओ प्रशासन