- काम पूरा होने के बाद भी नहीं हो सका है हैंडओवर, कुछ माह पहले ऑडिट विभाग ने लगाई थी आपत्ति

- दो करोड़ रुपए लग जाने के बाद भी अब तक स्टूडेंट्स को नहीं मिली है फैसिलिटी

GORAKHPUR: वाई-फाई गोरखपुर यूनिवर्सिटी के लिए ऐसी गले की हड्डी बन गई है, जो अब न इन्हें निगलते बन रही है और न ही इसे उगला ही जा रहा है। हालत यह है कि मामला दिन ब दिन उलझता ही चला जा रहा है। एक बार फिर वाई-फाई को लेकर मामला गर्म है। अब तक सर्विस हैंडओवर न होने और स्टूडेंट्स को फैसिलिटी न मिलने की वजह से शासन ने फटकार लगाई, तो वहीं ऑडिटर जनरल ने भी आपत्तियों का निस्तारण न होने की वजह से जिम्मेदारों को इलाहाबाद तलब किया है। इसमें यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार के साथ ही फाइनेंस ऑफिसर और कार्यदायी संस्था के जिम्मेदारों को फरवरी के पहले वीक में बुलाया गया है।

मांगी थी जांच रिपोर्ट

वाई-फाई को लेकर यूनिवर्सिटी की ओर से उठाए गए कदम, फिजिकल वेरिफिकेशन, जांच और कार्यदायी संस्था के खिलाफ लिए गए एक्शन की शासन ने रिपोर्ट तलब की। उन्होंने अक्टूबर में भेजे गए लेटर का हवाला देते हुए यूनिवर्सिटी से एक हफ्ते में सभी डॉक्युमेंट्स और बिंदुवार आख्या मांगी। ऐसा न करने पर यूनिवर्सिटी भी कड़घरे में खड़ी होने और कार्यदायी संस्था के साथ ही उनके खिलाफ भी कार्रवाई करने की चेतावनी मिलने के बाद भी यूनिवर्सिटी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए, जिसकी वजह से जिम्मेदारों को तलब किया गया है।

मिली थीं काफी खामियां

यूनिवर्सिटी में वाई-फाई फैसिलिटी स्टार्ट तो कर दी गई थी, लेकिन इसमें काफी खामियां मिली थीं। पैसा पूरा लेने के बाद भी कार्यदायी संस्था ने हैकिंग और अनऑथराइज एक्टिविटी को रोकने के लिए जहां कोई सिक्योरिटी मेजर्स नहीं अपनाए थे, वहीं जिम्मेदारों ने कार्यदायी संस्था को खुली आजादी देते हुए किसी तरह के दस्तावेज पर सिग्नेचर नहीं कराए, यानि कि बिना किसी टेक्निकल सेंक्शन और बिना एग्रीमेंट के ही काम शुरू करा दिया गया।

डॉक्युमेंट्स पर भी सिग्नेचर नहीं

गवर्नमेंट ने फाइनेंशियल सेंक्शन करने के दौरान यह स्पेसिफाई किया था कि बिना डीटेल्ड एस्टिमेट बनाए और बिना किसी टेक्निकल अथॉरिटी के सेंक्शन काम नहीं शुरू किया जाएगा, जबकि यूनिवर्सिटी में यह काम शुरू कर दिया गया। इतना ही नहीं ऑडिट में यह भी बात सामने आई है कि यूनिवर्सिटी और कार्यदायी संस्था के बीच न तो एग्रीमेंट ही हुआ और न ही दस्तावेजों पर जिम्मेदारों के सिग्नेचर ही हैं। वहीं काम में देर होने पर न तो किसी की लाइबिल्टी तय की गई है और न ही पेनाल्टी क्लॉज का ही जिक्र है।

सवा दो करोड़ हो गया पेमेंट

गोरखपुर यूनिवर्सिटी को मार्च 2013 में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने स्टेडियम के साथ ही वाई-फाई की सौगात दी थी। शासन की ओर से वाई-फाई के लिए 2.14 करोड़ रुपए स्वीकृत हुआ। यूपी राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) को काम सौंपा गया। इसमें कार्यदायी संस्था को मार्च 2014 में ही 1.06 करोड़ रुपए पेमेंट कर दिया। इसके बाद निर्माण कार्य शुरू हो गया। जुलाई 2015 में सेंक्शन 1.08 करोड़ का पेमेंट दिसंबर 2015 में कर दिया गया। फरवरी 2015 से यूनिवर्सिटी के दो हॉस्टल में इसकी फैसिलिटी भी मिलने लग गई। लेकिन ऑडिट में यह बात सामने आई कि महज तीन मंथ यानि मई 2015 में एनआईसी ने टेक्निकल सिक्योरिटी न होने की वजह से अनऑथराइज एक्टिविटी होती पाई और इससे उन्होंने इंटरनेट फैसिलिटी पर रोक लगा दी, जो अब तक यूनिवर्सिटी को हैंडओवर न होने की वजह से बहाल नहीं हो सकी है।

वर्जन

ऑडिटर जनरल की ओर से फरवरी में इलाहाबाद आने संबंधी लेटर प्राप्त हुआ है। इस दौरान कार्यदायी संस्था को भी बुलाया गया है। जब उन्होंने यूनिवर्सिटी को वाई-फाई हैंडओवर ही नहीं किया है, तो इसमें यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी नहीं बनती है। हम अपनी रिपोर्ट और कार्यदायी संस्था को इस संबंध में लिखे गए लेटर उन्हें उपलब्ध करा देंगे।

- सुरेश चंद्र शर्मा, रजिस्ट्रार, गोरखपुर यूनिवर्सिटी