-कर्मचारी संघ अध्यक्ष के खिलाफ जांच का नहीं दे रहे जांच रिपोर्ट

-पांच बार शासन से भेजा जा चुका है लेटर, एक बार फिर शासन ने दिया अल्टीमेटम

-एसोसिएट प्रोफेसर के खिलाफ जांच की रिपोर्ट नहीं भेज रहा है यूनिवर्सिटी

केस-1

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के लेखा विभाग में कार्यरत महेंद्रनाथ सिंह के खिलाफ शासन से 2017 में शिकायत की गई थी, इस संबंध में यूनिवर्सिटी को लेटर मिलने के बाद उन्होंने एक जांच कमेटी बनाई। उपमा सिंह के शिकायती लेटर को लेकर बनाई गई जांच कमेटी की रिपोर्ट के लिए शासन ने पिछली डेट्स का ब्यौरा देते हुए फिर यूनिवर्सिटी को लेटर भेजा है। उन्होंने हर हाल में उन्हें रिपोर्ट उपलब्ध कराने को कहा है, जिससे सीएम ऑफिस को अवगत कराया जा सके। मगर यूनिवर्सिटी ने अब तक जांच रिपोर्ट तो दूर, कोई जानकारी नहीं भेजी है।

केस - 2

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर के सेलेक्शन में शासन से धांधली की शिकायत हुई। इसमें ग्राम ददरी के सुभाष शाही और गोरखपुर यूनिवर्सिटी हिंदी विभाग के प्रो। कमलेश कुमार गुप्त के लेटर का हवाला देते हुए उनमें दिए गए बिंदुओं पर नियमानुसार कार्रवाई करते हुए बिंदुवार आख्या 11 फरवरी तक मांगी थी। लेकिन न मिलने के बाद इसे दोबारा मांगा गया है। मगर इस संबंध में भी यूनिवर्सिटी अब तक खामोश है। इससे पहले भी 29 जनवरी को शासन इस संबंध में लेटर भेज चुका है।

GORAKHPUR: यह दो केस तो एग्जामपल भर हैं, इसके अलावा करीब एक दर्जन मामले ऐसे हैं, जिसमें यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार कोई भी सूचना देने में आनाकानी कर रहे हैं। जिम्मेदारों से लेकर शासन तक सूचनाएं मांग-मांग कर लोग थक चुके हैं और सिर्फ रिमाइंडर पर रिमाइंडर का दौर चल रहा है, लेकिन अब तक जवाब के नाम पर कोई ठोस सूचना शासन को नहीं भेजी गई है। हालत यह है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से रोजाना जिम्मेदारों को फटकार लग रही है, जिसके बाद वह एक लेटर जारी कर अपना पिंड छुड़ा ले रहे हैं। एक बार फिर 21 फरवरी को शासन से यूनिवर्सिटी को लेटर पहुंचा है, लेकिन अब तक उन्होंने कोई सूचना नहीं दी है। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? फिलहाल शासन के लेटर का जवाब कब तक जाएगा, यह तो यूनिवर्सिटी ही बताएगा, लेकिन इस लापरवाह रवैये से एक बात साफ हो रही है कि यूनिवर्सिटी में सबकुछ ठीक नहीं है।

क्या अब तक लटकी है जांच

यूनिवर्सिटी में आईजीआरएस के जरिए जितने भी मामले आ रहे हैं, उनका समय से निस्तारण कराया जा रहा है। यूनिवर्सिटी की प्रियॉरिटी लिस्ट में यह शामिल है। इसकी वजह से ही यूनिवर्सिटी को पहले आईजीआरएस में पहली पोजीशन भी हासिल हो चुकी है, लेकिन अब क्या हो गया है कि एक के बाद एक केस डिफॉल्टर कैटेगरी में पहुंचते जा रहे हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार इसका निस्तारण करना तो दूर, इस संबंध में शासन को जवाब देने में भी कतरा रहे हैं। इसमें कई मामले को सालों पुराने हैं, लेकिन अब तक इनकी जांच पूरी न होना भी यूनिवर्सिटी को कटघरे में खड़ा कर रहा है।

वर्जन

आईजीआरएस पर आने वाले मामलों का निस्तारण करना हमारी प्राथमिकता है। संबंधित पटलों और जिम्मेदारों से सूचनाएं मांगी गई हैं। जल्द ही शासन से मांगी जाने वाली सभी सूचनाएं उन्हें उपलब्ध करा दी जाएंगी।

- सुरेश चंद्र शर्मा, रजिस्ट्रार, गोरखपुर यूविनर्सिटी