- बड़ी तादाद में लोग स्लीपलेसनेस का शिकार, यूनिवर्सिटी में शुरू हुई स्टडी

- डॉक्टर्स के पास नींद की दवा लेने के लिए घनघना रहे हैं फोन

GORAKHPUR: लॉकडाउन ने लोगों को सिर्फ घरों में कैद नहीं किया, बल्कि उनकी नींद और चैन भी उड़ा दिया है। अब सोने के लिए लोगों को दवाओं की जरूरत पड़ रही है, तो वहीं दवा से परहेज करने वाले दूसरे नुस्खे तलाश करने में लग गए हैं। हालत यह है कि नींद पूरी न होने से उनका पूरा रूटीन डिस्टर्ब हो गया है, जो लगातार उनकी परेशानी बढ़ा रहा है। डॉक्टर्स की मानें तो एंग्जायटी, स्ट्रेस और ट्रॉमा इसकी अहम वजह है। लॉकडाउन ने जहां लोगों को स्ट्रेसफुल बना दिया है, जिससे उनका स्लीप पैटर्न गड़बड़ हो चुका है। इसकी वजह से लगातार लोग स्लीपलेसनेस का शिकार हो रहे हैं और इससे उन्हें तरह-तरह की बीमारियां भी घेर रही हैं।

कंडीशन पर नहीं है कंट्रोल

लॉकडाउन के शुरुआती दौर ने लोगों को सबसे ज्यादा स्ट्रेस दिया है। हर चीज पर पाबंदी और रोक-टोक का इफेक्ट उनकी लाइफ पर भी पड़ा है। साइकोलॉजिस्ट की मानें तो जब भी लोगों को ऐसा लगता है कि परिस्थिति पर उनका नियंत्रण नहीं है, स्वास्थ्य को लेकर उनकी चिंता ज्यादा बढ़ जाती है तो ऐसे हालात सामने आ जाते हैं। लॉकडाउन पीरियड में सबसे ज्यादा टेंशन मूवमेंट को लेकर सामने आई है। अगर कभी कुछ हो गया तो उन्हें क्या करना चाहिए, कहां जाना चाहिए, लोग इसी बात को सोचकर खूब परेशान रहे हैं। कोई दुर्घटना हो गई तो किसी दूसरे शहर और राज्य में न जा पाने की परेशानी और वहां जाकर क्वारंटीन होने की टेंशन का असर सीधा उनकी लाइफ स्टाइल पर पड़ा है, जिसकी वजह से उनकी नींद और चैन उड़ गया है और वह इस डिस्ऑर्डर का शिकार हो गए हैं।

अल्कोहल ने भी किया परेशान

एक ऑनलाइन सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि शुरुआती दिनों में तो अल्कोहल भी इसका एक कारण रहा है। लोगों में अचानक अल्कोहल बंद होने से विथड्रॉल सिंप्टम नजर आया है। इसकी वजह से लोगों की परेशानी बढ़ी है, जिससे उनकी स्ट्रेस में इजाफा हुआ है और वह कई-कई रात सो नहीं सके हैं। इसके अलावा अल्कोहल की पहुंच से दूर रहना भी उनके लिए स्ट्रेस का बड़ा रीजन रहा है। दुकानें बंद और खुद के पास अवेलबिल्टी न होने से उनकी लाइफ स्टाइल पर भी इसका खूब फर्क पड़ा है। इसको लेकर स्टडी चल रही है, जिसका रिजल्ट भी जल्द ही सामने होगा।

मोबाइल भी उड़ा रहा है नींद

लॉकडाउन में कोई काम न होने की वजह से जमकर मोबाइल का इस्तेमाल हुआ है। सोशल साइट्स पर खूब सर्फिंग हुई है, इस पीरियड में लोग कोविड के इर्दगिर्द ही बने हुए हैं। लगातार केस बढ़ने से उनकी टेंशन में भी इजाफा हुआ है। वहीं लॉकडाउन में कोई काम न होने से मोबाइल का एक्सेसिव यूज भी हुआ है। इसकी वजह से नींद का पैटर्न चेंज हुआ है। इसका सीधा असर स्लीप साइकिल पर पड़ा है। कई-कई दिन ऐसा होने से लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

बॉक्स

दिल का मरीज भी बन रहे न सोने वाले

नींद पूरी न होने से वह हार्ट अटैक जैसी जानलेवा बीमारी का शिकार हो रहे हैं। मोबाइल को उन्होंने साथी बनाया है, जो उन्हें ओबेसिटी और डायबिटीज बांट रहा है। यह बात सामने आई है कार्डियोलॉजिस्टडॉ। अतुल शाही की एक स्टडी में, जहां यंग जनरेशन पर किए सर्वे में उन्हें चौंका देने वाले रिजल्ट मिले हैं। डॉ। अतुल शाही ने स्टडी रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने पास पहुंचे यंग मरीजों की लाइफ पर स्टडी की। इस स्टडी में 22 से 40 साल तक के लोगों को शामिल किया गया, जिन्हें पिछले ढाई सालों में हॉस्पिटल की इमरजेंसी में हार्ट अटैक के लिए भर्ती किया गया। मरीजों के साथ उनकी फैमिली कितना सोती है, इस पर नजर रखी गई। 46 लोगों पर की गई स्टडी में यह बात सामने आई कि 90 परसेंट लोग ऐसे हैं, जो रोजाना 7 घंटे से कम सोते हैं। उन्होंने व‌र्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की स्टडी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 25 से 64 साल उम्र के मेल मरीजों में दिल का दौरा पड़ने का रीजन डायबिटीज से जुड़ा नहीं है। करीब दो-तिहाई पार्टिसिपेंट्स को नींद न आने की प्रॉब्लम भी पाई गई।

वर्जन

स्लीपलेसनेस की सबसे बड़ी वजह स्ट्रेस और एंग्जायटी है। इसकी वजह से लोग प्रॉपर सो नहीं पा रहे हैं और बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। लॉकडाउन में लोगों ने मोबाइल और सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल किया है, सर्चिग भी कोविड के इर्द-गिर्द ही रही है। इसके रिजल्ट की वजह से भी टेंशन बढ़ी है। इसको लेकर डाटा और फैक्ट कलेक्ट किए जा रहे हैं, जल्द ही फैक्चुअल रिजल्ट सामने होंगे।

- प्रो। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट