- लखनऊ, कन्नौज को तोहफे, यहां दवा का बजट भी ठीक से नहीं दिया

- सारी सुविधाएं अगर कन्नौज, इटावा और लखनऊ में जीएसवीएम के कई प्रोजेक्ट अभी भी लटके

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KANPUR: प्रदेश सरकार के बजट में इस बार भी प्रदेश के सबसे बड़े राजकीय मेडिकल कॉलेज से सौतेला व्यवहार हुआ। जहंा बजट में केजीएमयू और कन्नौज मेडिकल कॉलेजों में अरबों रुपए की योजनाओं के लिए बजट दिया गया वहीं जीएसवीएम समेत सभी 7 राजकीय मेडिकल कॉलेजों को सिर्फ दवा और वेतन जैसी मदों के लिए 29 करोड़ रुपए देकर निपटा ि1दया गया।

अधर में चले गए प्रस्ताव

- हैलट में मल्टीस्पेशिएलिटी ब्लॉक के निर्माण का प्रस्ताव अधर में

- छह नए सुपर स्पेशिएलिटी डिपार्टमेंट का प्रस्ताव

- जेके कैंसर हॉस्पिटल को बतौर टर्सरी सेंटर विकसित करने का प्रस्ताव अधर में

- कार्डियोलॉजी के एक्सपेंशन का प्रस्ताव पहले पास फिर अटका

- दवाओं का बजट 4 करोड़ के करीब, जबकि ओपीडी में मरीज केजीएमयू के बराबर

तो कैसे आगे बढ़े जीएसवीएम

दरअसल केजीएमयू के बाद जीएसवीएम ही एमबीबीएस स्टूडेंट्स की प्राथमिकता होता है वजह यहां की फैकल्टी और टीचिंग का स्तर। वहीं मेडिकल कॉलेज का दूसरा यानी क्लीनिकल पार्ट भी है वहीं पर संस्थान मात खा जाता है। दरअसल मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध 5 अस्पतालों की हालत बेहद खराब हैं। वजह दवाओं और अन्य मदों में मिलने वाला कम बजट और जर्जर हो चुकी अस्पताल की बिल्डिंग के अलावा स्टॉफ की कमी है।

इन कामों से मिल सकेगी राहत

- हैलट में न्यूरो साइंस सेंटर का निर्माण

- नेत्ररोगियों के लिए आशा ज्योति केंद्र का निर्माण

- जीएसवीएम में नई एमआरआई मशीन की स्थापना

- जच्चा बच्चा अस्पताल में नए मेटरनिटी विंग की स्थापना

- बालरोग विभाग के एसएनसीयू का एक्सपेंशन

- आईडीएच में एआरटी प्लस सेंटर का निर्माण

- ट्रॉमा सेंटर के लिए 40 के करीब स्टॉफ की भर्ती

बिना बजट और स्टाफ नहीं बदलेंगे हालात

दरअसल मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध अस्पतालों में बिना बजट, स्टॉफ और नए ब्लॉकों में निर्माण के बिना सुधार नहीं हो सकता। मेडिकल कॉलेज को बतौर एम्स डेवलप करने, उसके अपग्रेडेशन और उसे यूनिवर्सिटी बनाए जाने को लेकर कई बार चर्चा हुई है। कुछ मामलों में शासन को प्रस्ताव भी भेजे गए लेकिन सारे प्रस्ताव अधर में पड़े हैं। वहीं स्वीकृत नर्सिंग और चतुर्थ श्रेणी स्टॉफ की संख्या भी 20 फीसदी के ही करीब है। ऐसे में इलाज का स्तर भी मेनटेन नहीं हो पा रहा है।

मरीजों की संख्या के आधार पर मिले सुविधा

मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में रोजाना ओपीडी की संख्या 5 हजार मरीजों के करीब है। जोकि केजीएमयू के बराबर है। जीएसवीएम को यूनिवर्सिटी का स्टेटस देकर स्वायत्तता देने की मांग कई बार उठी है और कई बार इसको लेकर प्रस्ताव भी भेजे गए। लेकिन किसी पर अमल नहीं हुआ। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि केजीएमयू, एसजीपीजीआई, रिम्स इटावा और कन्नौज मेडिकल कॉलेज में ही सरकार का ज्यादा फोकस है जहां पर मांगने पर दो से तीन गुना तक फंड मुहैया करा दिया जाता है लेकिन यहां जो मांग की जाती है उसका आधा भी मिल जाए तो बड़ी बात है।