- हाशिमपुरा कांड में तत्कालीन एसपी और जांच अधिकारी थे वीएन राय

- पत्रकारों से मुखातिब हुए वीएन राय ने इस मामले की बताई हकीकत

- वीएन राय ने कहा केस में कई गड़बडि़यों के कारण नहीं हो पाया न्याय

Meerut: मेरठ में क्987 में हुए दंगे के दौरान हाशिमपुरा में बड़ा कांड हुआ था, जिसमें ब्ख् लोगों को मारकर गाजियाबाद में नहर में किनारे फेंक दिया गया था। इस नरसंहार में क्9 पीएसी के जवानों को आरोपी बनाया गया था। ख्8 साल चले इस केस में तीन पीएसी के जवान मर गए और बचे क्म् आरोपियों को दिल्ली की कोर्ट ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले में इन हत्याओं की रिपोर्ट लिखवाने वाले तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विभूति नारायण ने इसको एक काला अध्याय बताया है। मंगलवार को सीसीएस यूनिवर्सिटी के एक प्रोग्राम में आए वीएन राय ने इस मामले से संबंधित कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला।

यह था मामला

क्987 में मेरठ के हाशिमपुरा में हुए नरसंहार में ब्ख् निर्दोष लोगों को मार दिया गया था। जिन्हें गाजियाबाद में जाकर फेंका गया था। इस पूरे प्रकरण पर पूर्व एसपी और महात्मा गांधी इंटरनेशनल हिंदी यूनिवर्सिटी के वीसी रहे वीएन राय ने मंगलवार को यूनिवर्सिटी में अपने दिल की बात कही। उस समय गाजियाबाद के एसपी विभूति नारायण राय थे, जिन्होंने इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया था और जांच के बाद क्9 पीएसी के जवान अभियुक्त बनाया था। इसकी जांच भी पुलिस से सीबीसीआईडी को सौंप दी गई थी। वीनए राय ने बातचीत में इस नरसंहार में बरती गई लापरवाही को बताया।

नरसंहार की वास्तविकता

मैं उस समय गाजियाबाद का एसपी था। इस पूरे प्रकरण में यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण रहा। मेरा शुरू से ही यह मानना था कि राज्य सरकार नहीं चाहती थी कि इस मामले में अपराधियों को सजा मिले। पहले ही दिन से इन्वेस्टीगेशन चौपट रही थी। सरकारें बदलती रहीं, लेकिन किसी ने भी इसको गंभीरता से नहीं लिया। न्याय पालिका की सक्रियता देखें तो कई बार नॉन बेलेबल वारंट भेजे गए, लेकिन कोई आरोपी नहीं आया। आजादी के बाद की यह सबसे बड़ी कस्टडी हत्या है। जिसमें पुलिस ने इतने सारे लोगों को पकड़कर मारा हो। यह पहला केस था, जब ब्ख् लोगों को एक साथ मारा गया और इसमें सही अभियुक्त नहीं पकड़े गए।

अब न्याय की उम्मीद

वीएन राय ने कहा कि अभी उम्मीद है कि न्याय मिलेगा। जहां इस मामले को ख्8 साल हो गए हैं, उम्मीद टूट जाती है, लेकिन अभी उम्मीद बनी हुई है। इस पूरे केस में दुबारा इन्वेस्टीगेशन होनी चाहिए। लेकिन यह नहीं होना चाहिए कि पहले ख्8 साल चला अब भी दस बीस साल चले। पहले ही तीन आरोपी मार जा चुके हैं। कुछ विक्टिम भी नहीं रहे और अब बचे हुए भी न रहे। अब जो भी इन्वेस्टीगेशन हो वह समयबद्ध हो। दो-तीन या पांच साल में न्याय हो जाना चाहिए। अगर इसमें न्याय नहीं मिलता तो भारतीय राज्य सरकार की इससे छवि खराब होगी। साथ ही हत्यारे मानसिकता के लोगों के हौसले बढ़ेंगे। एकदम सही जांच हो और पीडि़तों को न्याय मिले।

सेना की भूमिका की हो जांच

इस मामले में सेना भी इन्वॉल्व थी, मेरी जो किताब आ रही है उसमें भी मैंने लिखा है। उस समय के जो फोटोग्राफ हैं उसमें भी फौजी साफ दिखाई दे रहे हैं, जिनको कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए कि वे लोगों के घरों में तलाशी लें, लेकिन फौजी हर जगह दिखाई दे रहे हैं। मैं वर्दी वाला रहा हूं तो उनको पहचान सकता हूं। अगर कहीं फोर्स बुलाई जाती है तो वह नागरिक प्रशासन की सुरक्षा के लिए होती है। उसको तलाशी का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन उस दौरान भी फोर्स तलाशी लेती हुई दिखाई दी। इसकी जांच होनी चाहिए, जिसमें सेना का रोल भी था।

अब क्या होना चाहिए

ख्8 साल हो गए हैं, अब और कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा। ईमानदारी के साथ मेहनत की जाए तो इसमें कुछ निकलकर आ सकता है। इस मामले में फौजी की संदिग्धता सूरजकुंड पर रहने वाली शकुंतला के बेटे प्रभात की हत्या के बाद से है। शकुंतला का बेटा काफी एक्टिव था। जो शाम को छत पर खड़ा था और एक गोली आकर लगी। प्रभात का एक भाई फौजी था। इसके बाद से मामला काफी बढ़ गया था। सीआईडी भी इस मामले में कुछ नाम सामने लाई थी, लेकिन कुछ नहीं कर पाई थी। मैं इस मामले में इन्वेस्टीगेशन कर रहा था और मेरठ लगातार आता जाता था। ख्ख् अप्रैल को जब तलाशी हो रही थीं तो वहां फौजी मौजूद थे।

फौज की मिलेगी संलिप्तता

मरने वाले युवक प्रभात का सगा भाई फौजी था जो उस समय मौजूद रहा था। इस जगह उसकी मौजूदगी काफी संदिग्ध थी। अगर इसमें तफ्तीश हुई होती तो सेना का कनेक्शन निकलता। हमारी तफ्तीश केवल ख्ब् घंटे रही थी। जिसमें हमने नहर से बॉडी निकालनी थी और गाजियाबाद को भी देखना था। जो काफी संवेदनशील था। कहीं यहां की अफवाह से वहां दंगा ना भड़क जाए। इसके चलते हम दो दिन तक सोए नहीं थे। ख्ब् अप्रैल को सीएम सिविल लाइन में आए थे और वहां इन्होंने तफ्तीश सीबीसीआईडी को दे दी थी। लेकिन उस दौरान सिविल लाइन एसओ रहे प्रेमपाल को गलत सस्पेंड किया गया था। अभी वह लाशों का पीएम कराने में लगा था, तफ्तीश कैसे होती। ख्ब् घंटे में उसको भी हटा दिया गया।

आगे कुछ अपेक्षाएं

इस पूरे केस में बहुत सारी चीजें सामने आई। इतनी बड़ी घटना को लेकर सरकार की कैसी मानसिकता रही होगी, यह साफ दिखता है। इस मामले में जो हुआ वह बड़ा चिंता का विषय है। देश के लिए भी बड़ी चिंता का विषय है। इसमें आए निर्णय से कोई भी संतुष्ट नहीं है। इतनी बड़ी घटना में न्याय नहीं मिल पाना काफी दुर्भाग्य पूर्ण है। अभी तक मैं पर्दे के पीछे से रहकर काफी कुछ करता रहा।

सरकारों ने कुछ नहीं किया

क्989 में कांग्रेस सरकार जाने के बाद कई सरकार आई। सरकारें बदलीं, लेकिन किसी ने इसको गंभीरता से नही लिया। एक पब्लिक प्रोसेक्यूटर को चुनने में ही ढाई साल लगा दिए। फिर कैसे न्याय मिल सकता है। बीएसपी और एसपी की सरकारें आई लेकिन इन्होंने कुछ नहीं किया। यह फैसला बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इस सिस्टम में न्याय के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों को मिलकर लड़ना चाहिए। अगर इनको इंसाफ नहीं मिलेगा तो यह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी। साथ ही हत्यारे किस्म के लोगों के हौसले बुलंद होंगे। इसलिए ऐसा ना हो तो आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए।