- 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत बनना था जेरियाट्रिक सेंटर

- फरवरी वर्ष 2016 में 12 राज्यों में खुलने थे सेंटर

- 3 करोड़ तीन चरणों में केंद्र प्रदेश सरकार को दे चुकी है रकम

- मार्च 2016 में केजीएमयू ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को भेजा था प्रस्ताव

- सेंटर के बनने से सीनियर सिटीजन को एक छत के नीचे मिलेंगी सारी सुविधाएं

-केजीएमयू में नहीं बन सका रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर

-तीन चरणों में आया पैसा केजीएमयू को नहीं मिला

-जेरियाट्रिक मेडिसिन की पोस्ट की भी शासन ने नहीं दी मंजूरी

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW: सीनियर सिटीजन के इलाज के लिए प्रदेश सरकार सजग नहीं है। शायद इसीलिए केजीएमयू में अब तक रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर की स्थापना नहीं हो सकी है। हर रोज केजीएमयू में बुजुर्गो के लिए अलग से चलने वाली ओपीडी में बड़ी संख्या में मरीज पहुंचते हैं, लेकिन जब भर्ती होने का नंबर आता है तो अलग अलग विभागों में मजबूरन भटकना पड़ रहा है।

दो वर्ष से पड़ा है पैसा

केंद्र सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना में 'नेशनल प्रोग्राम फार हेल्थ केयर आफ एल्डर्ली (एनपीएचसीई) / वरिष्ठजन स्वास्थ्य योजना (आरवीजेएसवाई)' के तहत फरवरी 2016 में देश भर में 12 राज्यों के कॉलेजों में रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर बनाने की मंजूरी दी थी। जिसमें से एक सेंटर के रूप में उत्तर प्रदेश में सिर्फ केजीएमयू को चुना गया था। अधिकारियो की मानें तो इसके लिए तीन चरणों में केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश को तीन करोड़ रुपए भी जारी किए, लेकिन प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बड़ी लापरवाही करते हुए रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर बनाने के लिए केजीएमयू को पैसा ही नहीं दिया। जबकि केंद्र सरकार अब तक सिविल वर्क, फर्नीचर, मशीनरी, एक्विपमेंट के लिए पैसा रिलीज कर चुकी है।

जेरियाट्रिक मेडिसिन का भी प्रपोजल ठंडे बस्ते में

केजीएमयू प्रशासन ने डेढ़ वर्ष पूर्व जेरियाट्रिक मेडिसिन विभाग विभाग बनाने के लिए भी प्रस्ताव बनाया। इसके लिए ट्रॉमा सेंटर के दूसरी ओर जेरियाट्रिक मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट में जगह भी चिन्हित कर ली। एक पुरानी इमारत को तोड़ कर उसकी जगह नई इमारत बनाने की भी तैयारी कर ली गई। इसके लिए पीडब्ल्यूडी को आर्डर भी जारी हो चुके हैं। केजीएमयू की एक्जीक्यूटिव काउंसिल से पास कराकर प्रस्ताव शासन को भी भेज दिया, लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग पिछले डेढ़ वर्ष में अब तक वृद्ध मरीजों के लिए नए विभाग को बनाने की अनुमति नहीं दे सका है। अब तक केजीएमयू प्रशासन फैकल्टी और कर्मचारियों की पोस्ट की मंजूरी के इंतजार में है। जबकि केजीएमयू ने इसके लिए प्रस्ताव मार्च 2016 में ही चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को भेज दिया था।

ये होगा फायदा

केजीएमयू के डॉ। कौसर उस्मान ने बताया कि अलग से रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर और जेरियाट्रिक विभाग बनने से 60 वर्ष से अधिक के मरीजों को सभी प्रकार की सेवाएं एक ही छत के नीचे मिल सकेंगी। ओल्ड एज में लोगों को एक साथ कई कई बीमारियां हो जाती हैं। नया विभाग बनने से उन्हें अलग अलग विभागों में इलाज के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।

केंद्र सरकार ने भी उठाए सवाल

हाल ही में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी यूपी सरकार और केजीएमयू को नोटिस जारी रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर न बनने का कारण पूछा था। सूत्रो के मुताबिक केजीएमयू प्रशासन ने कहा है कि उन्हें केंद्र से भेजा गया तीन करोड़ की धनराशि मिली ही नहीं है। यही नहीं ह्यूमनराइट कमीशन ने भी नोटिस जारी किया था और पार्लियामेंट में भी इसके लिए प्रश्न पूछा जा चुका है, लेकिन अब तक प्रदेश सरकार के शासन के अधिकारियों ने मामले में कोई स्टेप नहीं उठाया। मामले में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ। रजनीश दुबे से उनका पक्ष जानने के लिए प्रयास कियागया लेकिन उन्होंने काल रिसीव नहीं की।

रीजनल जेरियाट्रिक सेंटर बनना है जिसके लिए अभी बजट नहीं मिल सका है। बजट न मिला तो भी मेडिसिन विभाग बनाएंगे और मरीजों को इलाज दिया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है।

प्रो। एमएलबी भट्ट, वीसी केजीएमयू

जेरियाट्रिक मेडिसिन के लिए ओपीडी में इलाज दिया जा रहा है। अलग से विभाग बनाने के बाद ही मरीजों को भर्ती कर इलाज की सुविधा दी जा सकेगी।

डॉ। कौसर उस्मान, आफिसिएटिंग हेड, जेरियाट्रिक मेडिसिन