PATNA: राज्यपाल फागू चौहान ने कहा है कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में मानवाधिकार से जुड़े अध्यायों को प्रमुखता से शामिल किया जाना श्रेयस्कर होगा। इससे नई पीढ़ी को मानवाधिकारों के प्रति सजग और संवेदनशील बनाने में मदद मिलेगी। वह मानवाधिकार दिवस पर अधिवेशन भवन सभागार में आयोजित बिहार मानवाधिकार आयोग के 11वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे।

समारोह का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए मानवाधिकारों का संरक्षण नितांत आवश्यक है, क्योंकि मानवाधिकार वस्तुत: स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा का अधिकार है। नागरिकों को सामान्य रूप से विभिन्न प्रकार के कानूनों से अधिकार प्राप्त होते हैं। परन्तु, मानवाधिकार नागरिकों के जन्मसिद्ध अधिकार हैं जिन्हें कानून बनाकर संरक्षण दिया गया है। राज्यपाल ने कहा कि मानवाधिकारों के संरक्षण के जरिए समाज के असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाले उपेक्षित एवं कमजोर वर्ग के व्यक्तियों के प्रति विशेष संवेदनशीलता दिखाने की आवश्यकता है। चूंकि ऐसे वर्ग के व्यक्ति अपने मानवाधिकारों के हनन को प्रमुखता से नहीं उठा पाते। बिहार मानवाधिकार आयोग के क्रियाकलापों पर संतोष व्यक्त करते हुए राज्यपाल ने कहा कि आयोग में मामलों के पंजीकरण एवं निष्पादन, दोनों में पर्याप्त प्रगति हुई है। वर्ष 2008 में जहां मात्र 100 मामलों का पंजीकरण एवं निष्पादन हुआ, वहीं 2018 में आठ हजार से भी अधिक मामलों को दर्ज किया गया है। राज्यपाल ने अबतक दायर वादों में 85 प्रतिशत से भी अधिक के निष्पादन पर प्रसन्नता व्यक्त की।

मानवाधिकारों की रक्षा नैतिक दायित्व

समारोह को संबोधित करते हुए बिहार मानवाधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष उज्जवल कुमार दुबे ने कहा कि अगर हम अपने कर्तव्यों का बेहतर ढंग से पालन करते हैं तो मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों में अपने आप कमी आ जाएगी। आयोग के सदस्य एवं पूर्व विकास आयुक्त शशिशेखर शर्मा ने कहा कि मानवाधिकार नैसर्गिक अधिकार है। गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा कि बिहार मानवाधिकार आयोग को राज्य सरकार हर संभव सहयोग प्रदान करती है। पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने इस मौके पर कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा हमारा नैतिक और सामाजिक दायित्व है।