वायुमंडलीय उड़ान पहलुओं का सत्यापन

नई पीढ़ी के प्रक्षेपण यान के विकास और अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक हासिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आज एक महत्वपूर्ण परीक्षण कर रहा है. मंगलवार को मिशन रेडीनेस रिव्यू एंड लांच ऑथोराइजेशन बोर्ड की बैठक में समय सारिणी तय हुई थी और मिशन की तैयारियों की समीक्षा के बाद 18 दिसम्बर सुबह प्रक्षेपण को मंजूरी दी गई थी. योजना के मुताबिक, श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने के तुरंत बाद प्रक्षेपण यान के जटिल वायुमंडलीय उड़ान पहलुओं के उड़ान सत्यापन करेगा और फिर तापीय प्रतिरोध, क्लस्टर फॉरमेशन में पैराशूट के संचालन, एयरो ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के साथ कू्र मॉडल के पृथ्वी के परिमंडल में फिर से प्रवेश करने की क्षमता का भी परीक्षण करेगा. इसके जरिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की अपनी योजना के लिए खुद को समर्थ बना रहा है, क्योंकि भारत सरकार ने अभी अंतरिक्ष अभियान में मानव भेजने की स्वीकृति नहीं दी है

रॉकेट पर 140 करोड़ रुपये खर्च

अधिकारियों के मुताबिक श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने और बंगाल की खाड़ी में गिरने की इस पूरी प्रक्रिया में करीब 20 से 30 मिनट का समय लगेगा. उन्होंने बताया कि समुद्र से 126 .16 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रक्षेपण के 325.52 सेकंड बाद कू्र मॉडल रॉकेट से अलग हो जाएगा. इसके बाद विशेष तरह से निर्मित पैराशूट मॉड्यूल की मदद से अंडमान निकोबार द्वीप में इंदिरा गांधी प्वाइंट से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में उसे आसानी से उतार लिया जाएगा. बाद में तटरक्षकों द्वारा उसे निकाल लिया जाएगा. इसरो ने बताया कि रॉकेट पर 140 करोड़ रूपए का खर्च और क्रू मॉड्यूल पर 15 करोड़ रूपए का खर्च आया. 6 30 टन वजन के जीएसएलवी-मार्क-3 का लगभग 3.6 5 टन वजनी कू्रमॉड्यूल को लेकर जाएगा.

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