मुंबई (पीटीआई)। बाम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को फिल्म निर्माता और टिप्स इंडस्ट्रीज के को-फाउंडर रमेश तौरानी को 1997 में संगीतकार गुलशन कुमार की हत्या के मामले में बरी कर दिया। साथ ही इस मामले में आरोपी अब्दुल रऊफ मर्चेंट को दोषी ठहराया गया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जस्टिस एस एस जाधव और जस्टिस एन आर बोरकर की खंडपीठ ने मामले के एक अन्य आरोपी- रऊफ के भाई अब्दुल राशिद मर्चेंट जो पहले बरी हो चुका था। उसे दोषी पाया है और उसे भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

1997 में हुई थी कैसेट किंग की हत्या
गुलशन कुमार, जिन्हें 'कैसेट किंग' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी अगस्त 1997 में उपनगरीय अंधेरी में एक मंदिर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसके प्रतिद्वंद्वियों ने उसे खत्म करने के लिए गैंगस्टर अबू सलेम को पैसे दिए थे। 29 अप्रैल 2002 को एक सत्र अदालत ने 19 में से 18 आरोपियों को बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने रऊफ को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 120 (बी) (आपराधिक साजिश), 392 (डकैती) और 397 (डकैती में गंभीर चोट पहुंचाना) और धारा 27 के तहत दोषी ठहराया।

महाराष्ट्र सरकार की याचिका खारिज
रऊफ ने बाद में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील की, जबकि राज्य सरकार ने तौरानी को बरी करने के खिलाफ अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए तौरानी की बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है। पीठ ने, हालांकि, रऊफ की दोषसिद्धि और उस पर लगाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा।

बरी आरोपी पाया गया दोषी
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, "एक अन्य आरोपी अब्दुल राशिद मर्चेंट जिसे बरी किया गया था, वह दोषी पाया गया है। राशिद को आईपीसी की धारा 302, 120 (बी) और भारतीय शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी ठहराया जाता है। आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। उसे तत्काल ट्रायल कोर्ट या डीएन नगर पुलिस स्टेशन पर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है।' पीठ ने यह भी कहा कि अब्दुल रऊफ मर्चेंट मुकदमे के दौरान अपने आचरण को देखते हुए छूट के हकदार नहीं होंगे।

जल्द करना होगा सरेंडर
अदालत ने कहा, "अपीलकर्ता (रऊफ) अपने आपराधिक इतिहास को देखते हुए छूट का हकदार नहीं होगा और न्याय और जनता के हित में वह किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है।" अदालत ने कहा कि हत्या के बाद रऊफ फरार हो गया था और उसे 2001 में ही गिरफ्तार किया गया था। पीठ ने कहा, '2009 में उन्हें (रऊफ को) फरलो मिल गई थी, लेकिन उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और 2016 में फिर से गिरफ्तार किया गया।' अदालत ने कहा कि अगर राशिद आत्मसमर्पण करने में विफल रहता है, तो सत्र अदालत गैर-जमानती वारंट जारी कर सकती है।

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