वाराणसी (ब्यूरो)। विवादित जमीन की पंचायत और निर्दोष लोगों पर मुकदमा दर्ज कराते हुए धन उगाही की। कैंट, सारनाथ तो कभी सिगरा थाना इलाके में थानेदारों को अरदब में देकर होटल्स में रूम बुक कराकर मौज भी कर चुका है। पुलिस की नींद खुली तो फर्जी सदस्य का लेवल लेकर घूमने वाले अभिषेक मिश्रा को गुरुवार की रात शिवपुर एरिया से गिरफ्तार किया। शुक्रवार को विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया।
चुनाव के दौरान लिया था गनर
लोकसभा चुनाव के दौरान शहर में हुए कई कार्यक्रमों के जरिए अभिषेक मिश्रा ने एक बड़े अधिकारी को भ्रमित कर लिया। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो उक्त अधिकारी ने फर्जी सदस्य को गनर भी उपलब्ध करा दिया। इन पांच माह के दौरान जब कभी भी सीओ या आरआरआई ने कुछ पूछने की कोशिश की तो उच्चाधिकारियों का नाम लेकर अरदब में ले लेता था। अभिषेक के गनर रहे संतराम से भी विभागीय अधिकारियों ने लंबी पूछताछ की है। यह मालूम किया गया कि वह किससे मिलता था और कहां-कहां जाता था।
भेद खुला तो खंगाली फाइलें
फर्जी तरीके से गनर देने के मामले में पुलिस विभाग की खूब किरकिरी हुई है। भेद खुलने के बाद पुलिस लाइन में घंटों फाइलें खंगाली गईं। एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने सीओ लाइन, आरआई से जानकारी ली। वहीं सीओ लाइन मो। मुश्ताक ने गनर संबंधी सभी फाइलों की जांच पड़ताल करते हुए एक-एक व्यक्ति और उसे गनर दिए जाने की संस्तुति के बारे में पत्रावली देखी।
नहीं किया वेरीफिकेशन
कोर्ट के आदेश और शासन की संस्तुति वाले मामलों को छोड़ दें तो किसी भी व्यक्ति को गनर देने से पहले उसके बारे में एलआईयू से रिपोर्ट मांगी जाती है। रिपोर्ट मिलने के बाद जब व्यक्ति गनर देने योग्य बताया जाता है तब गनर दिया जाता है। लेकिन अभिषेक मिश्रा को गनर देने से पहले एलआईयू से कोई सत्यापन नहीं कराया गया। उसने खुद को राज्य सूचना आयोग का सदस्य बताया और गनर दे दिया गया। इसका लिखित आदेश तक नहीं किया गया।
ऐसे मिलता है गनर
किसी भी व्यक्ति को गनर तब दिया जाता है जब उसे शासन स्तर, मंडल स्तर व जिला स्तर पर संस्तुति हो। इसके अलावा कोर्ट के आदेश पर भी लोगों को सुरक्षा मुहैया करायी जाती है। साथ ही सांसद, विधायक, मंत्री, कमिश्नर, डीएम, वीडीए सचिव समेत पदेन व्यक्तियों को बिना किसी संस्तुति के गनर दिया जाता है।
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