जिस दौर में लवर ब्वॉय और चॉकलेटी हीरोज अपनी पहचान बना चुके थे और सक्सेज की नयी नयी इबारतें लिख रहे थे. उस दौर में ओमपुरी ने अपनी अवरेज शक्लो सूरत के बावजूद ना सिर्फ हीरो बनने की हिम्मत दिखाई बल्कि अपने लिए एक अलग मुकाम भी बनाया. ओमपुरी और उनके नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के दौर से फ्रेंड बने एक्टर नसीरूद्दीन के बारे में शबाना आजमी ने एक बार कहा था कि ऐसी शक्ल ले कर कोई हीरो बनने के बारे में सोच भी कैसे सकता है. ये बात खुद नसीर और ओम पुरी ने एक टीवी टॉक शो पर कही थी.  लेकिन ओम पुरी ने ना केवल सोचा बल्कि अपने सपनों को हकीकत में तब्दील भी कर दिया.  

ओमपुरी ने अपनी शुरूआत बेशक आर्ट मूवीज जैसे 'भवनी भवाई', 'सदगति' और 'अर्द्धसत्य' जैसी फिल्में से की पर बाद में उन्होंने मेन स्ट्रीम या कमर्शियल सिनेमा जैसे 'गुप्त', 'आन' और 'अग्निपथ' में भी जगह बनाई और सक्सेज भी हासिल की.  कहां तो वो मेन स्ट्रीम फिल्मों में सीरियस रोल्स के भी लायक नहीं समझे जाते थे और कहां उन्होंने 'हेराफेरी', 'चुपके चुपके', 'चाची 420' और 'मेरे बाप पहले आप' जैसी फिल्मों में कॉमेडी भी कर के दिखाई.

ओमपुरी ने ब्रिटिश और हॉलिवुड फिल्मों में भी अपना एक मुकाम बनाया और वो वहां के भी लीड एक्टर्स में शामिल रहे हैं. उन्होंने हॉलिवुड फिल्म 'चार्लीज विल्संस वॉर' में जूलिया रॉबर्टस के साथ काम किया है. उन्होंने पहली विदेशी फिल्म रिर्चड एटनबरो कर 'गांधी' की थी. इसके अलावा और भी की हैं जिनमें 'ईस्ट इज ईस्ट', 'पैरोल ऑफिसर', 'सिटी ऑफ जॉय' और 'द घोस्ट एण्ड द डार्कनेस' शामिल हैं.

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