कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। 17 मार्च 1990 को हरियाणा के हिसार में जन्मीं साइना नेहवाल भारत की फेमस महिला बैडमिंटन प्लेयर हैं। साइना का बैडमिंटन कोर्ट में उतरना उतना भी आसान नहीं था, जितना सब समझते हैं। इसका जिक्र उन्होंने खुद अपनी ऑटो बॉयोग्रॉफी में किया है। 'प्लेइंग टू विन' नाम की इस किताब में साइना ने अपनी पूरी जर्नी के बारे में बताया। साइना का पूरा बचपन हिसार में बीता। साइना के पिता हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में साइंटिस्ट थे। ऐसे में वह अपने परिवार के साथ कैंपस में बने क्वॉर्टर में रहते थे। एक तरफ पिता जहां ड्यूटी निभा रहे थे वहीं साइना बाकी बच्चों की तरह सुबह स्कूल और दोपहर में घर और फिर शाम को खेलने निकल जाया करती थी।

बन जाती कराटे चैंपियन, अगर नहीं होता ऐसा
आठ साल की उम्र में साइना के पिता का ट्रांसफर हैदराबाद हो गया। शहर नया था, लोग अनजान थे। ऐसे में घर पर मन नहीं लगता था। तब साइना ने कराटे क्लॉस ज्वॉइन कर ली। नन्हीं साइना रोज सुबह स्कूल से पहले एक घंटे के लिए कराटे सीखने जाया करती थी। करीब एक साल तक कराटे सीखते-सीखते साइना ने ब्राउन बेल्ट हासिल कर ली। मगर अब जो चुनौती उनके सामने आने वाली थी, वह काफी कठिन थी। अगले राउंड में जाने के लिए साइना को एक टेस्ट से गुजरना था, जिसमें प्रशिक्षु को सांस रोकर अपने पेट पर भारी वजन रखवाना होता है। साइना जब यह टेस्ट देने गईं तो 90 किलो का एक आदमी उनके पेट पर चढ़ा। भारी वजन के चलते साइना की हिम्मत जवाब दे गई और उन्होंने सांस छोड़ दी। जिसका नतीजा यह हुआ कि उनके पेट में तेज दर्द होने लगा। यह एक गलती साइना को काफी भारी पड़ी और उन्हें कराटे क्लॉस छोडऩी पड़ी।

माता-पिता रहे हैं बैडमिंटन प्लेयर
कराटे क्लॉस से बाहर होने के बाद साइना के पिता ने उनको आंध्र प्रदेश में बैडमिंटन समर कैंप ज्वॉइन करा दिया। साइना को बैडमिंटन सिखवाना उनके पिता के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि वह खुद बैडमिंटन प्लेयर रहे हैं जबकि साइना की मां हरियाणा की स्टेट टीम की तरफ से बैडमिंटन खेला करती थी। कहा जाता है कि जब साइना का जन्म हुआ था तो उनकी दादी ने एक महीने तक उनका चेहरा नहीं देखा। वजह थी उनकी दादी को घर में बेटा चाहिए था। हालांकि साइना की मां उषा नेहवाल ने हमेशा उनका साथ दिया। अगली सुबह साइना पिता के साथ लाल बहादुर स्टेडियम पहुंची जहां उन्होंने नानी प्रसाद और गोवर्धन रेड्डी की देखरेख में बैडमिंटन प्रैक्टिस शुरु की। हालांकि इस समर कैंप में सीटें फुल हो चुकी थी मगर पिता के आग्रह करने पर कोच ने साइन का दाखिला कर लिया। इसी के साथ साइना पहली बार बैडमिंटन कोर्ट पर उतरी और पहले ही स्मैश से कोच को प्रभावित कर दिया।

हार गईं फिर भी हुआ सलेक्शन
एक अच्छे बैडमिंटन प्लेयर के लिए जरूरी है कि वह रोजाना प्रैक्टिस करे और फिटनेस बनाए रखे। साइना को भी यही करना था, उनका मां डेली सुबह बेटी को स्टेडियम ले जाती जहां घंटो साइना अभ्यास करती और फिटनेस बनाए रखने के लिए दौड़ से लेकर स्कीपिंग सब करती थीं। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और कैंप का समापन हुआ। अब आगे की ट्रेनिंग के लिए कैंप में आए सभी बच्चों में किसी एक को चुनना था। इसका फैसला आपस में मैच कराकर किया गया। साइना का मुकाबला महाराष्ट्र की दीति नाम की लड़की से हुआ, जिससे वह हार गईं। मगर इसे किस्मत ही कहेंगे कि ऐन वक्त पर दीति ने अपना नाम वापस ले लिया और साइन को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुन लिया गया।

पहली कमाई थी 500 रुपये
साइना उस वक्त क्लॉस 4 में पढ़ रही थी। चूंकि वह पढऩे में होशियार थी, ऐसे में उन्हें पढ़ाई भी करनी थी और प्रैक्टिस भी। घर से स्टेडियम करीब 25 किमी दूर था। साइना के पिता उनको रोज सुबह 4 बजे उठाते और बस से स्टेडियम छोडऩे जाते थे। छह बजे घर लौटकर साइना स्कूल चली जाती थी और फिर मां उनको घर ले आती थी। यह शेड्यूल काफी बिजी था। साइना के मुताबिक, उस वक्त उनके पैर बहुत दर्द होते थे। रात-रात भर वह दर्द से कहराती रहती थी तब मां उनके पैरों की मॉलिश करके अगले दिन के लिए तैयार करती थी। खैर धीरे-धीरे यह रूटीन में बदल गया, फिर साइना ने कड़ी मेहनत शुरु की और अगली चुनौती के लिए खुद को तैयार किया। साल 1999 में साइना ने अंडर 10 डिस्ट्रिक्ट लेवल टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। यह प्रतियोगिता तिरुपति में आयोजित की गई थी। साइना के करियर की यह पहली प्रतिस्पर्धा थी। इसमें न सिर्फ उन्होंने बेहतर खेल दिखाया बल्कि ट्रॉफी भी अपने नाम की। उस वक्त साइना को ईनाम में 500 रुपये मिले थे। यह साइना की पहली कमाई थी। ये पैसे उन्होंने अपने पैरेंट्स को दे दिए।