कानपुर। शकील बंदायुनी 50 और 60 के दशक के फेमस उर्दू शायर और लिरिसिस्ट थे। शकील ने सबसे ज्यादा सांग्स म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के लिए लिखे थे। शकील ने 1961 से 1963 के बीच 'कहीं दीप जले कह दिल'  फिल्म बीस साल बाद (1963), 'हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं' फिल्म घराना (1962), और 'चौदहवीं का चांद हो' फिल्म चौदहवीं का चांद (1961)  के लिए लिखे अपने गानों के लिए लगातार तीन साल तक फिल्मफेयर अवार्ड जीते।

फिल्मों के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी

शकील बंदायुनी का असली नाम शकील अहमद था। साहित्य औऱ साहित्यकारों से जुड़ी साइट रेख्ता के मुताबिक बंदायुनी उन्होंने बंदायु में जन्म लेने के चलते पेन नेम के तौर पर जोड़ा था। घर पर शुरूआती एजुकेशन हासिल करने के बाद, उन्होंने 1942 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया।पढ़ाई के बाद उन्हें सप्लाई डिपार्टमेंट में क्लर्क की नौकरी मिल गई और वे दिल्ली में रहने लगे। इस दौरान जब वे दिल्ली में काम कर रहे थे, उन्होंने शहर के पास हो रहे मुशायरों में भाग लेना जारी रखा। 1944 में, उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और गीतकार बनने के लिए मुंबई चले आए।

पहली फिल्म से मिली कामयाबी

म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के साथ शकील अपनी पहली ही फिल्म 'दर्द' के गीतों के साथ हिट हो गए थे। इसके बाद नौशाद और शकील का साथ कई और फिल्मों में जारी रहा। नौशाद के एसोसिएशन में उनकी बेस्ट फिल्मों में बैजू बावरा (1952), मदर इंडिया (1957), और मुगल-ए-आज़म (1960) शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने उन्होंने संगीतकार हेमंत कुमार और रवि के लिए भी काम किया। 1970 में मुंबई में ही उनकी डेथ हो गयी।

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