कानपुर। 11 दिसंबर 1929 को मुंबई में जन्में सुभाष गुप्ते 50-60 के दशक में भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पिन गेंदबाज माने जाते थे। गुप्ते की गेंदबाजी की खासियत उनकी गुगली बाॅलिंग थी जिसे पढ़ पाना बड़े-बड़े बल्लेबाजों के लिए आसान नहीं था। उनकी गेंदबाजी से प्रभावित होकर एक बार गैरी सोबर्स ने यहां तक कह दिया था कि सुभाष की स्पिन के आगे शेन वार्न भी फेल हैं। हालांकि गुप्ते और वार्न अलग-अलग दौर के क्रिकेटर रहे हैं मगर वार्न की तरह गुप्ते ने भारत के लिए ज्यादा मैच तो नहीं खेले मगर जितने भी खेले उसमें इतिहास रच दिया।

इंग्लैंड के खिलाफ 1952 में किया डेब्यू
दाएं हाथ के स्पिनर सुभाष गुप्ते ने साल 1952 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया। ये मैच कोलकाता में खेला गया था जिसमें उन्हें एक भी विकेट नहीं मिला। मगर पाकिस्तान के खिलाफ मुंबई में अगला टेस्ट खेलते ही गुप्ते को अपना पहला टेस्ट शिकार मिल गया। इस मैच में गुप्ते ने पाकिस्तान के पांच बल्लेबाजों को पवेलियन भेजा। इसके बाद गुप्ते का करियर ग्राॅफ लगातार आगे बढ़ता गया।

एक साल में चटकाए 50 विकेट
सुभाष गुप्ते के टेस्ट करियर को रफ्तार तब मिली जब वह 1952-53 में वेस्टइंडीज दौरे पर गए। यहां उन्होंने कुल 50 विकेट चटकाए। यही नहीं इसमें से 27 विकेट उन्होंने ऐसी पिच पर लिए जो बैटिंग के लिए जानी जाती थी। इसके बाद 1954-55 में पाकिस्तान दौरे पर गुप्ते ने 21 विकेट लेकर पूरी दुनिया में अपनी फिरकी का जादू चला दिया था। फिर न्यूजीलैंड में 34 विकेट लेकर गुप्ते ने नया इतिहास रच दिया। इस बीच भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया गई जहां सुभाष गुप्ते की गेंदबाजी की चमक खो गई।


एक पारी में 9 विकेट लेकर की वापसी
एक बार कांफिडेंस लूज होने के बाद गुप्ते ने 1956-57 में वेस्टइंडीज के खिलाफ कानपुर टेस्ट में शानदार गेंदबाजी कर वापसी की। इस मैच में एक पारी में गुप्ते ने 9 विकेट लिए। यही नहीं सीरीज के अंत में गुप्ते के खाते में 22 विकेट आ गए। इसी के साथ गुप्ते का कांफिडेंस भी लौट आया। इंटरनेशनल करियर की बात करें तो सुभाष गुप्ते ने भारत के लिए करीब एक दशक से ज्यादा क्रिकेट खेला। इस दौरान उन्होंने 36 टेस्ट खेले जिसमें 149 विकेट हासिल किए। इसमें 12 बार उन्होंने पांच विकेट लेने का कारनामा किया। वहीं एक बार 10 विकेट लिया था।

त्रिनिदाद में हुआ प्यार
सुभाष गुप्ते को एक वेस्टइंडीज महिला से प्यार हुआ था जोकि त्रिनिदाद में रहती थी। क्रिकेट से रिटायरमेंट के बाद गुप्ते वहीं शिफ्ट हो गए और अंतिम सांस भी त्रिनिदाद में ली। बता दें 31 मई 2002 को भारतीय क्रिकेट टीम का यह सितारा दुनिया को अलविदा कह गया था।

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