मुंबई। विनोद खन्ना का करियर एक खलनायक के रूप में शुरू हुआ और एक नायक तक पहुंचा।उनके अच्छे लुक्स के चलते लोग उन्हें नायक ही मानते रहे। 1997 में सक्रिय राजनीति में करियर शुरू करने के बावजूद, लगभग पांच दशकों तक, विनोद खन्ना ने अपनी इसी मर्दाना खूबसूरती के चलते हिंदी फिल्म जगत पर राज किया। 6 अक्टूबर, 1946 को अब पाकिस्तान के भाग, पेशावर में विनोद का जन्म हुआ था। उनके पिता एक कपड़ा और केमिकल बिजनेस जुड़े थे। अपने स्कूली दिनों के दौरान, विनोद खन्ना ने सोलहवां साल (1958) और मुग़ल-ए-आज़म (1960) जैसी महान फिल्में देखीं और वहीं हिंदी सिनेमा के लिए उनके मन में इंट्रस्ट पैदा हुआ।

विनोद खन्ना बर्थ एनिवर्सरी : तस्वीरों में देखिए बाॅलीवुड के डैशिंग सुपर स्टार का सफर

विलेन बन कर डेब्यु
विनोद खन्ना ने अभिनय में अपना हाथ आजमाने का फैसला किया और सुनील दत्त की 1968 में आयी फिल्म 'मन का मीत' में खलनायक के रूप में डेब्यु किया। यह कहना गलत नहीं होगा कि खन्ना एक ऐसे नायक साबित हुए जो उस दौर के स्टार की शैडो में भी गुम नहीं हो पाया था। कई फिल्मों में, उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय किया, और इस जोड़ी को बड़ी सफलता मिली, हांलाकि अपने एंग्री यंगमैन रोल्स के चलते अमिताभ उन पर भारी पड़ रहे थे।

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सपोर्टिंग रोल में भी स्टार
विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन के बीच टफ कंपटीशन था इसके बावजूद, 'अमर अकबर एंथोनी', 'परवरिश', 'रेशमा और शेरा', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'जमीर', 'हेरा फेरी' और 'खून पसीना' जैसी कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों में दोनों ने साथ काम किया। बच्चन इन फिल्मों नायक थे, लेकिन खन्ना सपोर्टिंग रोल में भी हल्के नहीं रहे।

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हीरो के रूप में बनी पहचान
विनोद खन्ना ने अपने शुरुआती वर्षों में 'पूरब और पश्चिम', 'आन मिलो सजना', 'सच्चा झूठा' और 'मेरा गांव मेरा देश' जैसी फिल्मों में खलनायक और सहायक भूमिकायें की, इसके बाद उन्हें पहला ब्रेक 1971 में हम तुम और वो में बतौर हीरो मिला। हालाकि, उन्हें पहली बार पहचान मिली गुलज़ार की 1971 में आयी फिल्म 'मेरे अपने' में श्याम के रूप में। 'एलान' और 'मेरा गांव मेरा देश' जैसी हिट फिल्मों ने इस पहचान को मजबूत किया। 70 से 80 के दशक के मध्य तक विनोद खन्ना अपने करियर के टॉप पर थे।

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वैराग्य की ओर
मिडडे की एक रिपोर्ट के अनुसार विनोद खन्ना ने अपने फैंस को उस समय शॉक्ड कर दिया, जब अपने करियर की ऊंचाई पर उन्होंने 1982 में संयुक्त राज्य अमेरिका में ओरेगन में अपने आध्यात्मिक गुरु, ओशो रजनीश को फॉलो करने के लिए बॉलीवुड छोड़ दिया।

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निजी जिंदगी
विनोद खन्ना ने 1971 में गीतांजलि से शादी की और उनके दो बेटे हुए राहुल खन्ना और अक्षय खन्ना। ओशो से जुड़ने के खन्ना के फैसले से शादी टूट गई और उनका तलाक हो गया। विनोद ने ओशो रजनीश के साथ रहने के लिए अपनी पत्नी गीतांजलि और बेटों को छोड़ दिया।

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पालिटिक्स में एंट्री
कपड़ा व्यापारियों के एक पंजाबी परिवार में पैदा हुए विनोद खन्ना ने 1997 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के लिए पंजाब को ही अपना राजनीतिक बेस चुना। वह पंजाब के गुरदासपुर से चुनाव लड़े और जीते। ये एक ऐसी सीट थी जिस पर वे 2009 में केवल एक बार हारे थे, लेकिन 2014 के आम चुनावों में फिर से जीत गए। 2002 में, अटल बिहारी वाजपेयी ने विनोद खन्ना को अपने मंत्रीमंडल में संस्कृति और पर्यटन मंत्री बनाया, बाद में उन्हें विदेश मंत्रालय दिया गया।

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हमेशा मिली जीत
विनोद खन्ना 140 से अधिक फिल्मों का हिस्सा रहे हैं। लाइफ के आखिर तक, वे बॉलीवुड में सक्रिय रहे थे। उनकी आखिरी यादगार फिल्मों में सलमान खान की 'दबंग' फ्रेंचाइजी और 2015 में शाहरुख खान की 'दिलवाले' थीं। विनोद खन्ना ने अपने बचपन के दिनों से ही जीत हासिल की थी। चाहे अभिनय हो या खेल उन्होंने सभी में पुरस्कार जीते थे। वह हमेशा विजेता रहे, चाहे वह 100 मीटर हो, 400 मीटर दौड़ हो या क्रॉस कंट्री। उनके स्कूल के साथियों ने बताया कि "वह बहुत अच्छे एथलीट थे।"

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