कानपुर (इंटरनेट-डेस्क)। लोहड़ी का त्योहार भारत के उत्तरी हिस्सों में बहुत महत्व रखता है। मकर संक्रांति से एक दिन पहले यह पूरे उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार ज्यादातर सिख धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। हर साल त्योहार को पूरे समुदाय के साथ आनंद लेकर बड़े पैमाने पर मनाया जा जाता है। हालांकि इस साल लोगों को कोरोना वायरस के प्रसार को ध्यान में रखते हुए यह सलाह दी जाती है कि लोग इसे अपने परिवार और करीबी लोगों के साथ मनाएं और बड़े समारोहों से बचें। इस त्योहार पर, लोग ढोल की थाप पर नाचते हैं। इसके अलावा स्नैक्स और लजीज भोजन का आनंद लेते हैं। फसल से जुडा उत्सव होने से गजक, गुड़, मूंगफली और पॉपकॉर्न को भी आग में भी डाला जाता है।

लोहड़ी सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक है

यह कहा जाता है कि लोहड़ी मौसम का आखिरी ठंडा दिन होता है और उसके बाद, दिन बड़े और गर्म हो जाते हैं। इसके अलावा यह वसंत के मौसम का स्वागत करना शुरू कर देता है।

लोहड़ी को वर्ष की सबसे लंबी रात के रूप में जाना जाता है

लोहड़ी को सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात कहा जाता है। इसके बाद हर दिन काफी बड़ा हो जाता है। यही वजह है कि सूरज ढलने के बाद लोहड़ी का उत्सव शुरू होता है।

लोहड़ी एक फसल का त्यौहार है

उत्तर भारत के एक ग्रामीण इलाके में रहने वाले और कृषि क्षेत्रों में काम करने वाले लोग इसके बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस समय, सर्दियों की फसल लोहड़ी तक के दिनों में काटी जाती है और फिर त्योहार के दिन श्रम में शामिल सभी लोग बड़े अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं और पूरे धूमधाम के साथ इस त्योहार को मनाते हैं।

लोहड़ी पर लोग अलाव के चारों ओर घूमते हैं

ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति लोहड़ी पर अलाव के आसपास घूमता है, तो उसके जीवन में अच्छा बदलाव होने के साथ समय अच्छा हो जाता है। अग्नि देवता के कई भक्त इस प्रकार मानते हैं कि उनकी प्रार्थनाएं प्राप्त होती हैं और भक्तों को तत्काल उत्तर मिलता है।

लोहड़ी एक हिंदू धार्मिक त्योहार है

यह त्योहार देवी लोहड़ी और भगवान अग्नि को मनाने के लिए माना जाता है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह धार्मिक उत्सव या कृषि के रूप में शुरू हुआ था या नहीं।

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